किसी भी अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह को व्यवस्थित रूप से आयोजित करने के लिए कम से कम 6 महीने तक निरंतर तैयारी की ज़रूरी होती है, परंतु हमने 13 वें बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव को सिर्फ 32 दिनों में आयोजित करने का चुनौती भरा काम किया है। यह आसान नहीं था, लेकिन मुख्यमंत्री श्री बसवराज बोम्मई, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग और हमारी सहयोगी टीम के ज़बरदस्त सहयोग ने इसे संभव बनाया जिससे हम महोत्सव को दर्शकों के बीच सफलतापूर्वक आयोजित कर सके। बेंगलुरु फ़िल्म महोत्सव के डायरेक्टर और कर्नाटक चल चित्र एकेडमी के चेयरमैन सुनील पुराणिक ने यह बात कही। वे महोत्सव की पुरस्कार संध्या पर चर्चा कर रहे थे।
वर्चुअल से हायब्रिड फेस्टिवल तक: उन्होंने कहा, ओमिक्रान के बढ़ते संकट की वजह से लग रहा था इस साल भी यह महोत्सव टल जाएगा। हम वर्चुअल फिल्म फेस्टिवल की तैयारी कर रहे थे। परंतु मुख्यमंत्री ने हमें घोषणा से पहले दस दिन रूकने को कहा। 27 जनवरी 2022 को उन्होंने हायब्रिड फिल्म महोत्सव का साहस भरा निर्णय लिया। हमने भी संकल्प लिया कि हम आयोजन को पूरी शक्ति लगाकर प्रबंधित करेंगे। सबकुछ ठीक रहा और हम महज़ 32 दिनों के बेहद कम समय में इस आयोजन को कर दिखाने में सफल रहे। इसके पीछे हमारे संगठन या कोर टीम के साथ मिलकर मेरे काम करने का अनुभव भी है। इस अनुभव ने भी प्रबंधन को गति दी। हमने एक अच्छी टीम बनाई और फिर मैदान में पक्के इरादे के साथ उतर गए। कम समय में महोत्सव के नियोजन की स्थिति महामारी की विषम परिस्थिति की वजह से बनी। सही मानो में इतने बड़े आयोजन के लिए 6 महीने की तैयारी आवश्यक होती है।
दो साल का संयुक्त फ़िल्म महोत्सव: सुनील पुराणिक कन्नड़ और मलयाली फ़िल्मों के एक्टर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर रहे हैं। वे अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों की जूरी से भी जुड़े रहे हैं। उन्होंने बताया, चूंकि पिछले बार भी महामारी की वजह से महोत्सव टल गया था। इसलिए इस बार हम पर 2021 और 2022 के लिये संयुक्त रूप से महोत्सव को आयोजित करने का दायित्व था। इसमें दोनों ही सालों की विजेता फ़िल्मों को पुरस्कृत किया गया। मुझे ख़ुशी है कि हर दिन करीब ढाई से तीन हज़ार दर्शकों की उत्सव में मौजूदगी रही। बड़ी संख्या में दर्शकों ने उत्सव को प्रतिदिन देखा। सुनील पुराणिक ने बताया - बेंगलुरू इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (BIFFES) जो 2006 में शुरू हुआ था, उसे इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फिल्म प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के रूप में मान्यता दी गई है। यह भी हमारे लिये गर्व की बात रही।
55 देशों से आईं 200 से अधिक फिल्मों का प्रदर्शन: समारोह में इस बार 55 देशों की 200 से ज़्यादा फ़िल्में दिखाईं गईं। मुख्य रूप से समारोह ओरेन मॉल में आयोजित हुआ। इसमें 11 सिने स्क्रीन पर फिल्में दिखाई गईं। इसी तरह सुचित्रा अकादमी में भी शो रखे गए। अच्छी बात यह रही कि ना तो एक भी शो रद्द हुआ ना ही परिवर्तित हुआ। इसके लिए हमारी टेक्निकल टीम ने अथक प्रयास किया। हमारे कला निर्देशक वयोवृद्ध श्री नरहरि राव जी के अनुभव का लाभ मिला। वे 82 वर्ष के हैं, परंतु उन्होंने महोत्सव की सफलता के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। मैं इसलिये भी सौभाग्यशाली हूँ क्योंकि इस समारोह के लिए मुझे मेरी टीम का भी बड़ा सहयोग मिला, मैं अच्छी तरह से इस काम को प्रबंधित कर सका। मुख्यमंत्री जी के साथ ही हमारे सूचना एवं जनसंपर्क विभाग का भी हमें ज़बरदस्त सहयोग मिला। सभी ने इसकी सफलता के लिये अथक प्रयास किए।
मैसूर में होगा फ़िल्म सिटी का निर्माण : मैसूर में फिल्म सिटी बनाने की भी मुख्यमंत्री ने इस बार घोषणा की है। फिल्म सिटी के लिए हमारी लंबे समय से मांग रही है। अगले बजट सत्र में इसके बारे में प्रावधान भी रखा जाएगा। मुख्यमंत्री जी ने एक और महत्वपूर्ण बात कही है, वो यह कि अब हर साल 3 मार्च से 10 मार्च तक यह उत्सव बेंगलुरु में आयोजित होगा। उन्होंने हमें हर संभव मदद दी, हमारे साथियों ने मिल-जुलकर महोत्सव के लिए काम किया। इसीलिए यह समारोह ठीक ढंग से संपन्न हो सका। इस बार हमने 6 हज़ार डेलिगेट्स के लिये प्रवेश पत्र जारी किए थे। जबकि करीब सोलह सौ लोगों ने ऑनलाइन पंजीकरण किया था। उनमें से करीब नौ सौ दर्शक ऐसे थे जो महोत्सव की ऑनलाइन प्रदर्शित फिल्मों को देख रहे थे। यह अपने आप में एक बड़ी बात है। शायद भारत के किसी भी फ़िल्म महोत्सव के ऑनलाइन दर्शकों के फिल्म देखने के मामले में यह सबसे बड़ी संख्या है। इस तरह जो बेंगलुरु नहीं भी आ सका, उसने इसमें दिखाई गईं फ़िल्मों को देखने का लाभ लिया। इस वर्चुअल आयोजन की कामयाबी से हमारी आगे लिये ज़िम्मेदारी भी बढ़ी है।
जूरी ने किया योग्य फिल्मों का चयन: हमें खुशी है कि हमारी जूरी ने बहुत ही अच्छी फ़िल्मों का चयन किया और जिन्हें पुरस्कृत किया गया। असल में किसी भी महोत्सव की जान उसमें प्रदर्शित होने वाली फिल्में हैं। अगर फ़िल्में अच्छी हैं और उनके प्रदर्शन तकनीकी तौर पर शानदार हैं तो दर्शक ख़ुद ब ख़ुद महोत्सव का हिस्सा बन जाते हैं। हमारे यहां पर तीन सेगमेंट हैं। पहला, कन्नड़ सिने प्रतिस्पर्धा, दूसरा, चित्र भारती नेशनल सेगमेंट, एक एशियन सेगमेंट है। एशियन फिल्मों के कॉम्पटीशन सेगमेंट की वजह से भी बंगलुरू के इस फिल्म समारोह को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली है। 13वें संस्करण की सफलता से हमें संतोष है लेकिन हमें अभी भी बहुत कुछ अच्छा करना है, अपनी कमियों को पहचानकर आगे बढ़ना है। सीखने की प्रक्रिया चलते रहना चाहिए। वैसे भी इतने बड़े आयोजन में कुछ रह जाना, छूट जाना स्वाभाविक है। मगर हमें विश्वास है, हम 14 वें संस्करण को इससे भी बेहतर, बड़ा और शानदार बनाने की कोशिश करेंगे।
(शकील अख़्तर वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं। आप भारत के अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव और कर्नाटक सरकार के बेंगलुरु फ़िल्म महोत्सव की चयन समितियों के सदस्य रहे हैं।)