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जाट, धर्मेन्द्र, बॉबी और आज के दौर की एक्शन मूवी के बारे में सनी देओल

मैं बहुत ज्यादा फिल्में नहीं देखता हूं। मैं कम ही देखना पसंद करता हूं, लेकिन जितनी भी देखता हूं उसे देखकर लगता है कि सभी लोग ठीक कर रहे हैं

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रूना आशीष

, मंगलवार, 8 अप्रैल 2025 (07:02 IST)
मैं अपने पापा के बहुत करीब हूं। बचपन से उनको देखता आया हूं और सोचता रहा हूं कि बड़े होकर उन्हीं के जैसा बनूंगा। पापा जैसी बहुत सारी चीज है जो मुझ में भी है। वो मेरे आइडल रहे हैं। पापा के अंदर बहुत अच्छी बातें हैं। देखें कितने अलग अलग तरीके की फिल्में की हुई है। एकदम वर्सेटाइल एक्टर रहे हैं। एक्शन रोमांटिक सारे तरीके की फिल्में उनकी है। उस समय की लिखाई बहुत अलग होती थी जो पापा को ध्यान में रखकर लिखी जाती थी। वो निर्देशक और निर्माता से रिश्ते निभाते बहुत अच्छे से थे। 
 
मैं मेरे पापा के बहुत करीब हो और मैं बहुत प्यार करता हूं। यह कहना है सनी देओल का, जो बहुत ही जल्द फिल्म 'जाट' में नजर आने वाले हैं। इस फिल्म में एक बार फिर से सनी देओल के दमदार डायलॉग और एक्शन अंदाज लोगों को लुभाने वाला है। फिल्म के प्रमोशन इंटरव्यू के दौरान सनी देओल ने वेबदुनिया से खास बातचीत की। 
 
सनी देओल ने बताया कि मुझे संगीत सुनना बहुत पसंद आता है। कभी कभी लगता है कि काश एक्टिंग के साथ साथ में गाना गा भी सकता तो कितनी अच्छी बात होती है। म्यूजिक में मैं सभी तरीके का संगीत सुन लेता हूं। वैसे भी कितने अलग अलग तरीके के संगीत मौजूद है। कहीं पॉप है, कहीं रॉक है, कहीं अंडरग्राउंड म्यूजिक है। हां, अगर बात कहूं कि कौन सा संगीत कम समझ में आता है या कम पसंद आता है तो वह शास्त्रीय संगीत है। दरअसल मुझे शास्त्रीय संगीत बहुत समझ में नहीं आता है। यह कहिए मैं अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ हूं कि मुझे शास्त्रीय संगीत की समझ हो। 
 
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सनी ने कहा, वहीं मुझे रैप में भी बहुत ज्यादा नहीं लुभाता है। रैप के दौरान क्या बोल रहे हैं, मेरे समझ में नहीं आता। गानों की ट्यून अच्छी लगती है लेकिन वह क्या बोलते हैं कुछ समझ नहीं पाता हूं। वैसे इन दिनों में सतिंदर सरताज जी को बहुत सुनता हूं। वह मुझे बहुत पसंद आ रहे हैं। एक बार उनके गाने सुनना शुरू किए फिर ऐसा लगा कि उनकी तरफ और उनके गानों की तरफ खींचता चला जा रहा हूं। कितने पढ़े लिखे हैं, वह डॉक्टरेट कर चुके हैं। गाना खुद गाते भी हैं, लिखते भी हैं। 
 
इन दिनों बॉबी देओल आपके छोटे भाई को बहुत पसंद किया जा रहा है वह भी नकारात्मक रोल के लिए। बॉबी के इस नई सफलता को कैसे देखते हैं
बॉबी तो हमेशा से ही सफल रहा है। बहुत अलग अलग तरीके के किरदार भी वह करता रहा है। उसमें बहुत टैलेंट है। पर वो कहते हैं ना कि सामान तो दुकान में पड़ा हुआ है, लेकिन दुकानदार है कि उसे सजाता ही नहीं तो मैं बहुत गुस्सा कर रहा था। इस बात पर कि मेरा भाई इतना टैलेंटेड है कितना अच्छा खासा दिखता है उसका अपना स्वैग है। अच्छा डांस भी कर लेता है। फिर क्यों ऐसा होता है कि उसे फिल्मों में नहीं लिया जा रहा है? 
 
जहां तक बात है उसकी एक्टिंग टैलेंट की तो वह हमेशा से अच्छा काम करता रहा है भले ही वह पॉजिटिव किरदार निभाए या नेगेटिव किरदार निभाए, वह तो एक्टर है जो किरदार सामने आएगा उसे वैसे रंग में ढलना होगा और काम करना होगा। लेकिन कलाकार होना ज्यादा बड़ी बात है। अब अमरीश पुरी साहब का ही नाम ले लीजिए कितने बेहतरीन कलाकार रह चुके अपने समय के? लेकिन इन सब में होता क्या है कि कई बार लोग, एक्टर को एक कैटेगरी में डाल देते हैं कि यह निगेटिव रोल निभाएगा या पॉजिटिव रोल रहेगा जबकि यह ठीक नहीं है। कई बार फिल्म इंडस्ट्री पर गुस्सा आता था कि मेरे भाई को क्यों काम नहीं दे रहे इतना अच्छा करता है वह? लेकिन यह जिंदगी है यह ऐसे ही उतार चढ़ाव दिखाती है तो मैंने भी इस बात को मान लिया था पर अभी बहुत खुश हूं अपने भाई के लिए।
 
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आने वाले दिनों में आपकी फिल्म लाहौर, बॉर्डर 2 और रामायण भी है यानी आपके फैंस की तो चांदी ही चांदी। 
मैं तो हमेशा से काम करना चाहता था और वह भी खूब सारा। अब कहता हूं गदर 1 से मेरी दुकान बंद हो गई थी और गदर 2 से मेरी दुकानों खुली है। मेरे सामने जिस तरीके के रोल आ रहे हैं, वह देखकर बड़ा मजा आता है। यानी काम तो मैं बहुत करना चाहता था, लेकिन कोई फिल्ममेकर सामने नहीं आते थे जो मुझे लेकर काम करना चाहिए। ओटीटी भी आ गया तो उससे बहुत फायदा हो गया है। बहुत सारी फिल्में या ऐसे किरदार होंगे ऐसी कहानियां होंगी जो शायद सिनेमा हॉल में बताने में थोड़ी तकलीफ होगी तो ओटीटी पर बता दीजिए। मुझे बहुत अच्छा लगता है कि ओटीटी प्लेटफार्म की वजह से आपको कहानियां कहने के लिए एक नई जगह मिल गई है। 
 
जाट के निर्देशक गोपीचंद के बारे में क्या कहेंगे? 
जाट के निर्देशक गोपीचंद का काम बहुत अच्छा है। उनका सक्सेस ग्राफ बहुत अच्छा है। उनका फिल्में बनाने का तरीका भी बहुत अच्छा है और मुझे तो ऐसा लगता है कि हर तरीके के दर्शक मौजूद होते हैं। आपको बस उनके तरीके की फिल्में बनाना आनी चाहिए। सिनेमा के जरिए आपको अपने इमोशंस दिखाने होते हैं,  जो जाट में दिखाए हैं।  हम लोगों के समय की जो फिल्में बनती थी या हम जो एक्टर हुआ करते थे, वह भी बहुत सारे इमोशंस के बीच में रहकर हम लोग काम किया करते थे। हमारे समय में हम निर्देशक को बहुत ज्यादा मान दिया करते थे।
 
लेकिन अब नए तरीके से जो फिल्में बनती हैं या जो माहौल है वह बिल्कुल अलग है। इन सब के बीच में हमने हमारी जड़े कहीं खो दी। दक्षिण भारतीय फिल्मों में अभी भी वो ट्रेंड बरकरार है। वह बिल्कुल लोगों के सामने आकर कहते हैं कि यह हमारी जड़े हैं और हम ऐसी फिल्में बनाते हैं। आपके सामने जो लेकर आते हैं ऐसे में अब कुछ बात अलग हो गई है। मुंबई में ही दक्षिण मुंबई कि अगर मैं बात करता हूं तो वहां कुछ अलग तरीके के लोग रहते हैं। अलग सोच वाले लोग रहते हैं। 
 
सिनेमा में काम करने वाले लोग वहां से आते हैं आजकल और अमूमन यह देखा गया है कि अगर कॉर्पोरेट की दुनिया में भी फिल्मों में दखलअंदाजी बढ़ रही है तो कॉर्पोरेट की दुनिया भी दक्षिण मुंबई से आती है। वही सोच लेकर फिर सिनेमा बनाते हैं, वह गलत नहीं है क्योंकि उनकी दुनिया इतने समय में इतनी जगह में सिमटी है? जो कहानी बता रहे हैं और फिल्में बना रहे हैं, वह कभी गांव में जाकर नहीं ढूंढते हैं। दक्षिण मुंबई के अलावा भी क्या है, यह वह नहीं जानते हैं। 
 
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सलमान ने हाल ही में कहा कि आजकल मल्टी हीरो फिल्म नहीं बन रही है।
समय बहुत बदल चुका है। हमारे समय में हम कोई सीन कर रहे होते थे शॉट देने के बाद निर्देशक की तरफ देखते थे। मॉनिटर सिर्फ निर्देशक के पास होता था और मॉनिटर पर देखने के बाद अगर निर्देशक ने कहा, टेक ओके हैं तो उसके बाद कोई सवाल जवाब नहीं होता था। आज ऐसा नहीं है आज के समय में सभी लोगों को टेक देखना होता है। जैसे ही शॉर्ट हुआ एक्टर्स भी आकर मॉनिटर में देखेंगे और फिर वह भी बात करेंगे। 
 
सब लोगों की सोच एक साथ चलानी पड़ती है। यह भी हो सकता है आज के समय में यही चलता है और यही बात अपना ली गई हैं। वैसे भी हम लोग दूसरों की नकल करने में ज्यादा खुश होने लग गए हैं। किसने कह दिया कि यह स्टाइल अच्छी है तो अपना स्वैग छोड़कर हम कहने लगते हैं कि अच्छा सब लोग ही पहन रहे तो मुझे भी इसी तरह के कपड़े ले लेना चाहिए। भले ही वह मुझ पर अच्छा लगे या ना लगे। 
 
सनी आपके समय में आपके लुक्स, आप के डायलॉग, आपकी रोमांटिक फिल्में हो, आपका एक्शन हो, सभी पसंद आती थी। आज के एक्शन फिल्मों के बारे में क्या कहेंगे और क्या कहीं कोई एक्टर आपको अपने जैसा लगता है?
मैं बहुत ज्यादा फिल्में नहीं देखता हूं। मैं कम ही देखना पसंद करता हूं, लेकिन जितनी भी देखता हूं उसे देखकर लगता है कि सभी लोग ठीक कर रहे हैं, अच्छा ही कर रहे हैं क्योंकि अगर वह किसी तरीके के एक्शन कर रहे हैं। लोगों को पसंद आ रहा है तो बस बात तय हो जाती है कि अच्छा है। जहां तक मेरी बात है तो मैं बिल्कुल इमोशन में डूबकर एक्टिंग किया करता था और मेरे एक्शन में भी इमोशंस हुआ करते थे। एक्शन के पीछे कोई कारण है इसलिए वह हाथ उठा रहा है। 
 
अब ब्रूस ली को ही ले लीजिए। अपनी तकनीक दिखाने के लिए लड़ रहा है। ऐसा नहीं है। उसके पीछे उसके दिल में कोई भाव आया है। तभी जाकर उसने अपनी फाइट शुरू की है। वैसे ही अब सोचिए ना कोई फाइटिंग सीन हो और उस एक्टर को जो भाव में डूब कर एक्शन करना है, अगर उस समय मुझ में भी वही भाव उत्पन्न हो जाए तो वह एक्शन भी नहीं लगता वह एक नैसर्गिक क्रिया लगने लग जाती है और जहां तक कहूं यह बात की किस में अपनी छाप दिखाई देती है तो वह मेरे बेटे करण में दिखाई देती है। पल पल दिल के पास पास में मेरे बेटे ने जो एक्शन किया था उसमें देखिए एकदम से आपको मेरी याद आ जाती होगी।

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