मुझे बहुत अलग अलग तरीके की फिल्म करने का मौका मिलता है और मैं ऐसे ही फिल्में करना पसंद करता हूं। सिर्फ द बंगाल फाइल्स ही नहीं, बल्कि इन दिनों में कई अलग फ्लेवर की फिल्म कर रहा हूं जो कल्चरली भी एक दूसरे से अलग है। नवाजुद्दीन के साथ में फौजी कर रहा हूं जो कि देश भक्ति से भरी फिल्म है। रजनी के साथ में जेलर कर रहा हूं। वही प्रजापति 2 यह फिल्म भी कर रहा हूं और यह सभी अलग तरीके की फिल्में हैं।
यह कहना है मिथुन चक्रवर्ती का जो 'द बंगाल फाइल्स' में एक बहुत अलग रूप से नजर आ रहे हैं। अपनी इसी फिल्म के बारे में बातचीत करने के लिए मिथुन दादा ज़ूम के जरिए पत्रकारों से जुड़े। यूं तो यह इंटरव्यू एक होटल में होना था लेकिन उस दिन मुंबई बारिश में पूरी तरबतर हो चुकी थी। एक जगह से दूसरी जगह पहुंचना लगभग नामुमकिन सा हो गया था। ऐसे में जो लोग नहीं पहुंच पा रहे थे, उनके लिए पीआर टीम ने ज़ूम मीटिंग का इंतजाम कराया।
हालांकि मिथुन दा की तबीयत उन दिनों में थोड़ी नासाज़ चल रही थी। इसलिए समय जरा कम मिला लेकिन बातें फिर भी जोरदार मिल गई। अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए मिथुन दा बताते हैं कि पता नहीं ऐसा क्यों होता है कि हम हमारे देश के अंदर जो सच्चाई है उससे भी मुंह मोड़ने को तैयार बैठे रहते हैं। यह सच है कि हमारी यह फिल्म सच्चाई के प्रहार जितनी कठोर है। जिन लोगों ने अपने प्रदेश में इस फिल्म का ट्रेलर तक रिलीज नहीं होने दिया उनसे मैं पूछता हूं कि जब ट्रेलर देखा ही नहीं तो कैसे समझ में आ गया कि यह फिल्म और यह ट्रेलर प्रदेश वासियों के लिए अच्छा है या नहीं है।
देख तो लीजिए, फिर बात कीजिए। पोस्टर जला दिए, छीना-छपटी कर ली। यह सब एक प्लान्ड तरीके से किया गया है। सोची समझी साजिश के तहत किया गया है। नोआखली में जो हुआ उसमें सिर्फ इतना लिख दिया कि एक ऐस वाक्या हुआ था। किसी ने बताया ही नहीं कि इसमें नरसंहार हुआ था। कोलकाता किलिंग में भी एक लाइन में खत्म कर दिया। क्या किसी ने नहीं बताया कि असलियत क्या थी?
मैं क्या कई ऐसी पीढ़ियां है जो नोआखली के बारे में कुछ भी नहीं जानती हैं? 40000 हिंदुओं को मार डाला गया। नरसंहार है यह जनोसाइड है। ऐसा क्या है इसमें जो हमारे देश में हुआ और गलत बताया जा रहा है। क्यों आप सच्चाई सुनना और देखना नहीं चाहते हैं?"
देश के कुछ वर्ग इसे प्रोपेगेंडा फिल्म भी बता रहे हैं।
अब इसमें प्रोपेगेंडा जैसा क्या हो गया और फिल्म कैसे प्रोपेगेंडा हो गई। सच्चाई बता दी तो प्रोपेगेंडा हो गया। सच्चाई से इतना दूर क्यों भागना है और यह सब गिने-चुने लोग हैं जो अपने आप को सेक्युलर बताते हैं? एक सूडो इंटेलेक्चुअल लोग हैं, जिनको लगता है जो बोल दिया वही सही है। पता नहीं कैसे सेक्युलर हैं ये लोग, एक बीफ खाता है और एक सूअर खाता है। तो फिर कैसे सेक्युलर हो गए सेक्यूलर तो तब हुआ जब कोई व्यक्ति दोनों खाए।
इस फिल्म का नाम पहले दिल्ली फाइल्स था, फिर बाद में बंगाल फाइल्स क्यों कर दिया क्या?
बिल्कुल पहले इसका नाम दिल्ली फाइल्स हुआ करता था, लेकिन यह फिल्म जो है बताती है, बंगाल के नोआखाली में क्या हुआ था और उसके बाद कोलकाता में क्या हुआ था। कोलकाता किलिंग के बारे में जानकारी दे रही है और यह देखने के बाद हमें लगा द बंगाल फाइल्स ज्यादा बेहतर नाम होगा।
अपने यह फिल्म क्यों की? क्या यह बंगाल के बारे में है इसलिए आपने यह फिल्म करने की सोच ली नहीं?
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। विवेक अग्निहोत्री जब भी कोई कहानी लिखता है तो बहुत सोच समझकर विचार करके लिखता है और हर कैरेक्टर को वह बहुत अच्छे से लिखता भी है और परदे पर दिखाता भी है। मुझे बड़ा चैलेंजिंग लग रहा था यह रोल। मतलब एक दिन तो यह हालत हो गई कि मैंने उसे कह दिया कि इतना मुश्किल किरदार तो मुझे दे रहे हो। मैं तो नहीं कर सकूंगा। सोच लें मैं जो किरदार निभा रहा हूं, उसकी जुबान जला दी गई। पीटा गया यह वह व्यक्ति है जो कचरे में पड़ा हुआ खाना खाता है। कहीं भी सो जाता है और ऐसे में जब भी कहानी कहता है तो कहेगा कैसे?
उसके बाद मिथुन दा ने तुतलाते हुए एक डायलॉग कहा। और हम सभी पत्रकारों को समझ में आ गया कि रोल इतना आसान तो नहीं था? इसके बाद मिथुन दा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि जब इतना मुश्किल किरदार मैं करने जाता हूं। बहुत सारा! मेहनत के पीछे लगी होती है। लेकिन मैंने भी सोच लिया है कि अब अपने जिंदगी में वही काम करूंगा जो मुझे अंदर तक हिला कर रख दे और जो मुझे बहुत ही ज्यादा रोचक लगे।
इस फिल्म के जरिए आप क्या संदेश देना चाहते हैं।
यही संदेश देना चाहते हैं कि हमने कुछ नाम सुने थे। अब उसकी पूरी कहानी बता रहे हैं। मैंने हमेशा यह सुना कि आजादी के समय नोआखाली हत्याकांड हुआ। फिर कोलकाता हत्याकांड हुआ, लेकिन उस हत्याकांड में क्या हुआ कैसे हुआ नहीं बताया और ना ही किसी ने इस सच्चाई को लोगों के सामने आने दिया। सिर्फ मेरी पीढ़ी नहीं पीढ़ी दर पीढ़ी इस को दबाए रखा। किसने इस सच्चाई से लोगों को अलग रखा क्यों रखा और अब जब बाहर ला रहे हैं तो तकलीफ क्यों हो रही है? बस यही एक संदेश है जो फिल्म के साथ मैं लोगों को देना चाहता हूं।