"जितना कि मैं सिनेमा थिएटर या बड़ी स्क्रीन को मिस कर रहा हूं उससे कहीं गुना ज्यादा मेरी फिल्म राधे बड़ी स्क्रीन को मिस कर रही है।
यह कहना है सलमान खान का जो राधे: योर मोस्ट वांटेड भाई फिल्म के प्रमोशन के इंटरव्यू के दौरान मीडिया वालों से रूबरू हुए और उन्होंने अपने दिल की बात कही। सलमान ने अपनी बातें आगे बढ़ाते हुए कहा, "सोचा तो हमने भी यही था कि इस फिल्म को हम सिनेमा हॉल्स में ही रिलीज करें लेकिन क्या करें? यह फिल्म हम पिछले साल रिलीज करने वाले थे और उसके पहले लॉकडाउन लग गया। फिर लगा 15 या 20 दिन के बाद यह खुलेगा तब सिनेमा हॉल में रिलीज कर देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लॉकडाउन बढ़ता गया। फिर हमने सोचा क्यों न इसे एक साल बाद रिलीज किया जाए लेकिन साल भर बाद भी कोरोना का कहर जारी है तो हमने इसे रिलीज करने की ठान ली। कई लोगों ने कहा फिल्म को सिनेमा हॉल में ही प्रदर्शित करें ना कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर। मैंने सोचा अगर कि यदि सिनेमाघर खुले और तब भी करोना नहीं गया तो ऐसा न हो कि लोग फिल्म देखने आए और बीमारी का शिकार हो जाए। बेहतर है समय की मांग को देखते हुए इसे और ही प्लेटफार्म पर रिलीज किया जाए। जब कोरोना का कहर खत्म हो जाएगा तब हम निश्चित तौर पर इस फिल्म को थियेटर में रिलीज करेंगे।"
इस फिल्म को रिलीज करने में ओटीटी प्लेटफॉर्म जी का और हमारा दोनों का ही नुकसान होने वाला है क्योंकि इसके पहले जब भी फिल्में रिलीज होती थी, बड़े तौर पर रिलीज होती थी। देशभर में, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिलीज होती थी तो हम कभी 100, 200 या 300 करोड़ का आंकड़ा पार कर लेते थे। इस समय में देश में 15 या 20 जगह ही ऐसी होंगी जहां सिनेमा हॉल खुले होंगे। वहां फिल्म रिलीज भी होगी तो बहुत बड़ी कमाई होने नहीं वाली है। ऐसे में मैंने और जी वालों ने सोचा कि हाथ मिलाते हैं और नुकसान दोनों मिलकर उठाएंगे। बिल्कुल नुकसान है इस कदम को उठाने से, लेकिन अभी का जो समय चल रहा है, लोग बहुत परेशान है। बहुत अवसाद या डिप्रेशन से गुजर रहे हैं। ऐसे में मेरी फिल्म अगर किसी का मनोरंजन कर दे, उन्हें एंटरटेन कर दे, बस वही मेरे लिए कमाई हो जाएगी।
लोग अभी भी सड़कों पर घूम रहे हैं। इकट्ठा हो रहे हैं। क्या कहा जाए इन सब लोगों के लिए। बहुत मुश्किल समय है। दूसरी लहर बहुत ही ज्यादा खतरनाक है। मैं तो यही कहता हूं कि जितने भी नियम हैं उनका कड़ाई से पालन किया जाए। वैक्सीन जरूर लगवाई जाए। वैक्सीन लगाने के बाद आपके पास यह गारंटी नहीं है कि आपको कभी कोरोना नहीं होगा, लेकिन कम से कम आप वेंटिलेटर वाली सिचुएशन में या फिर ऑक्सीजन सिलेंडर मांगने की सिचुएशन में नहीं पहुंचेंगे। मैं तो सभी लोगों से गुजारिश करता हूं कि अपनी सेफ्टी देखें। परेशानी वाली बात यह है कि यह बीमारी एक साथ कई सारे लोगों को हो जाती है। ऐसे में उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिलती। अस्पताल भरे पड़े हुए हैं, बेड नहीं मिल रहे हैं और इसमें किसी को दोष नहीं दिया जा सकता। कई बार मौत इसलिए हो जाती है क्योंकि हम समय पर इलाज नहीं करते हैं। जब तक हम हॉस्पिटल पहुंचते हैं तब तक इंफेक्शन पूरे फेफड़ों में फैल चुका होता है। तो, बहुत ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत है।
फिल्म इंडस्ट्री बुरे समय में हमेशा लोगों की मदद के लिए आगे आती है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं क्यों दूसरी भाषाओं की इंडस्ट्री भी हमेशा आगे आती रही हैं। हाल ही में हमने 45 से 50 हजार दिहाड़ी मजदूरों की मदद की है। कम से कम कुछ समय के लिए तो वे मुंबई में अपनी देखभाल कर ही सकेंगे। दो दिन पहले मुझे पता चला कि मेरे एक फैन क्लब है ने अपने पैसों से आगे बढ़कर लोगों की मदद की है। मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं जितना उनके लिए शुक्रिया कहूं उतना कम है। मैं जितना उनके लिए गर्वित महसूस कर रहा हूं, उतना कम है और इसी वजह से मैंने उन लोगों के लिए ट्वीट भी किया था।
लोग बीमार पड़ रहे हैं। खाने के लिए पैसा नहीं है तो दवाइयों के लिए पैसा कहां से लाएंगे? बेहतर है कि लोग घर पर रहे और अपना ध्यान रखें। बाहर निकलने की जरूरत न हो तो नहीं निकले। लॉकडाउन नियमों का कड़ाई से पालन किया जाए ताकि यह बीमारी चली जाए और सब कुछ सामान्य हो जाए। मुझे इस दौरान कई लोगों ने मैसेज किए। कई लोगों ने अपने करीबियों को खोया। कुछ लोगों ने कहा कि अगर मैं किसी अस्पताल या डॉक्टर को कह दूं तो उनके किसी अपने के लिए बिस्तर मिल जाएगा। लेकिन अब आप बताइए मैं कैसे ऐसा कर सकता हूं? मैं कैसे कह दूं कि मेरे परिचित हैं उनके लिए एक बिस्तर खाली करवाइए, जबकि यह जानते हुए भी कि वहां किसी की बहन, बेटी मां, पिता या भाई लेटा हुआ है। उसे जिंदगी की जरूरत है। तो, यह काम मैं चाह कर भी नहीं कर पाया। हां, कभी बिस्तर खाली हो और मेरे एक फोन से किसी का काम हो रहा हो तो मैं वह काम बिल्कुल कर दूंगा। कभी-कभी सोचता हूं। अगर यह मेरी हालत है तो आम लोगों की क्या हालत होगी? मेरे पिताजी किसान और खेतीबाड़ी से जुड़े हुए रहे हैं। हमारे पास एक बड़ा सा फार्महाउस है। हम वहां हैं और सुरक्षित हैं। लेकिन एक ही कमरे में 5-6 रहने वाले लोगों की हालत क्या होगी, सोच कर भी मुझे डर लगता है।
कई बार ऐसा होता है कि लोगों के अपने गुजर जाते हैं। दूसरे कहते हैं कि अपने आप को मजबूत बनाइए। हम सभी एक बात बड़े अच्छे से जानते हैं कि यह सब बातें हैं। जिसके ऊपर गुजर रही होती है, जिसने अपने करीबी को खोया है, उसका दर्द वही जान सकता है। कितने लोग हैं जो ऐसी हालत में भी अपने आप को नार्मल बनाए हुए हैं? इस समय में अगर मुझे किसी भी चीज का बहुत ज्यादा बुरा लगा है तो वह है कालाबाजारी का। ऑक्सीजन की कालाबाजारी कर रहे हैं। दवाइयों की कालाबाजारी कर रहे हैं। जो 200 या 300 की दवाई है, उसे डुप्लीकेट बनाते हैं और 50 - 50 हजार में बेच रहे हैं। यानी दुख इस बात का है कि आप इस समय लोगों की जिंदगी बचा सकते हैं लेकिन आप कालाबाजारी जैसा घिनौना काम कर रहे हैं? कौन है यह लोग जो इस तरीके का काम करते हैं? क्या उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई मर रहा है? मेरा यकीन है, हम जो करते हैं वैसा का वैसा भुगतना भी पड़ता है। और उन लोगों को इसका नतीजा भुगतना होगा।