सोनू सूद फिल्म 'सम्राट पृथ्वीराज' में चंद बरदाई के रोल में नजर आएंगे। इस फिल्म का निर्देशन किया है चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने। अपने इस रोल के बारे में, कोविड में मददगार साबित होने के बाद उनकी सोच और फिल्मों के ऑफस में क्या बदलाव आए इस पर सोनू सूद ने वेबदुनिया से विशेष बात की।
चंदबरदाई को पता था उसका अंत कब होगा
हम जब भी इतिहास की बात करते हैं तो इतिहास में हमेशा अलग-अलग वर्णन मिलते हैं। चंदबरदाई का जो वर्णन मैंने पढ़ा था, उस हिसाब से वह भविष्य देखने वाला व्यक्ति है। उसे यह पता था आगे आने वाले समय में क्या होने वाला है। वह बताता था कि कोई युद्ध करना चाहिए या नहीं। उसे यह भी मालूम था कि पृथ्वीराज का अंत कब होगा, उसका अंत कब होगा। ऐसे कैरेक्टर के लिए तैयारी करनी पड़ती है। मुझे लगता है मैं बहुत ही लकी रहा हूं क्योंकि मेरी मां इतिहास की प्रोफेसर रही हैं। बचपन से लेकर लंबे अरसे तक मेरी मां ने मुझे हमारे देश के वीरों की कहानियां सुनाई है। इन सब को जानते और सुनते हुए मैं बड़ा हुआ हूं। रोल की तैयारियों में ये जानकारियां मददगार साबित हुईं। ऊपर से आपके पास डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी जैसे निर्देशक हो तो आपको ज्यादा परेशानी उठाने की जरूरत पड़ती ही नहीं।
ऐतिहासिक घटनाओं पर बनी फिल्म का विरोध
वैसे भी जब कोई ऐतिहासिक घटना पर फिल्म बनाई जाती है तो उसमें हमेशा विरोधाभास होता ही है। एक ऐतिहासिक घटना अलग-अलग शख्स अपने तरीके से वर्णन करते हैं। जिसने जो वर्णन या संस्करण पढ़ा, उसे वही सच लगता है और बातें शुरू हो जाती हैं। एक कहता है कि मैं जो दिखा रहा हूं, वो सच है। दूसरा कहता है जो मैंने पढ़ा, वो सच है। विवाद हमेशा से होते रहे हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अड़ जाते हैं। जिन्हें विवाद खड़ा करने में मजा आता है। मुझे नहीं लगता कि कोई भी फिल्ममेकर ऐसा प्रोजेक्ट हाथ में लेगा कि अगर वो फलां विषय पर फिल्म बनाएगा तो विवाद खड़ा हो जाएगा। कोई भी फिल्म मेकर पृथ्वीराज या चंदबरदाई से ऐसा कोई काम नहीं करवाएगा जो उसने कहीं पढ़ा या देखा या सुना ना हो। मर्जी से कोई काम नहीं करवाया जाता है। रोल में अगर कोई चीज़ लिखी गई है तो वह कहीं न कहीं किसी किताब में जरूर लिखी गई होगी।
नई पीढ़ी को देखना चाहिए 'सम्राट पृथ्वीराज'
मुझे ऐसा लगता है कि इस समय हमारी नई युवा पीढ़ी सोशल मीडिया पर अपना पूरा समय व्यतीत करती है। ऐसे में इतिहास पर बनाई गई इतनी बड़ी और भव्य फिल्म को बैठकर एक साथ देखना चाहिए। कम से कम उस नई पीढ़ी को अपने इतिहास को जानने का मौका मिलेगा वरना ये कहानियां इतिहास में ही दबी रह जाएंगी।
इमेज बदली, अब निगेटिव रोल नहीं होते ऑफर
कोविड में लोगों की मदद के बाद मेरी अलग इमेज बन गई जिसका असर फिल्म और भूमिकाओं पर भी पड़ा है। निगेटिव रोल ऑफर नहीं हो रहे हैं। सब की सब सकारात्मक भूमिकाएं आ रही हैं। एक बार फिल्म शूट कर रहा था और फिर प्रोड्यूसर का फोन आया कि आपका रोल को बदलना पड़ रहा है क्योंकि आपकी इमेज इतनी पॉजिटिव हो चुकी है कि आप नेगेटिव रोल करेंगे तो हमें मार पड़ जाएगी। फिर रोल को वापस लिखा गया। उसमें तब्दीलियां की गई। मजे की बात यह थी कि फिल्म में एक शख्स मुझे मारने आ रहा था। उस शख्स ने निर्माता को कहा अगर मैंने सोनू को हाथ लगाया तो लोग मुझे पीटने लगेंगे। ऐसे समय में मुझे मेरे वो दिन याद आते हैं जब मैं मुंबई में नया-नया आया था। अलग-अलग जगह पर जाकर ऑडिशन देता था। जो रोल हाथ में आते थे, नेगेटिव रोल होते थे। मैं कर लेता था। मुझे बड़ा बुरा भी लगता था कि पॉजिटिव रोल क्यों नहीं मिलते। फिर सोचा कि मैं तो एंटरटेनर हूं। अच्छे का रोल करूं या बुरे का, रोल ही तो करना है।
सम्राट पृथ्वीराज के शूट के दौरान लोगों ने बजाई थी तालियां
हमारी फिल्म सम्राट पृथ्वीराज दो भागों में शूट हुई थी। कोविड से पहले और बाद में। कोविड के बाद में हम एक सेट पर थे। बहुत ही बड़ा सेट था। करीब 600 लोग थे और क्लाइमेक्स का शूट हो रहा था। जैसे ही मैं सेट पर पहुंचा वहां पर लोगों ने खड़े होकर मेरे लिए तालियां बजाईं। मुझे समझ में ही नहीं आया कि मैं इस बात पर कैसे रिएक्शन दूं। सभी लोग कॉस्ट्यूम में थे जिससे मैं उनको पहचान भी नहीं पा रहा था। किसी ने आकर मुझसे कहा कि आपकी वजह से मेरी मां का कैंसर का इलाज हो गया। किसी ने कहा कि आप महीनों से हमारी पूरी बस्ती को राशन भेज रहे हैं। किसी ने कहा कि परिवार में एक सदस्य के ब्रेन ट्यूमर का इलाज मैंने करवा दिया। यकीन मानिए, वह मेरी जिंदगी का सबसे बेहतरीन दिन था।
लोगों के जीवन का हिस्सा बनना ही कामयाबी
मेरे हिसाब से आप तभी कामयाब हो जाते हैं जब आप ऐसे लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन चुके होते हैं जिन्हें न तो आप जानते हैं और ना कभी मिलने वाले हैं। पहले मुझे लगता था कि मैं आगे कभी कोई फिल्म कर पाऊंगा या नहीं? मुझे आगे कोई फिल्म मिलने वाली है या नहीं? कैसा रोल होगा? क्या मेरे साथ काम करने वाले लोग मेरे बारे में अच्छा सोचेंगे या बुरा सोचेंगे? लेकिन कोविड काल के दौरान मेरी जिंदगी का एक नया अध्याय तैयार हो गया। इन लोगों के बीच जाता हूं तो फिल्म या रोल की कोई चिंता नहीं होती। जाने अनजाने कितने सारे लोगों के जीवन का हिस्सा बन गया हूं और मैं बहुत खुश हूं। आज भी मैं घर पहुंचूंगा तो घर के नीचे दो सौ या तीन सौ लोग खड़े होंगे। मैं उनसे मिलूंगा। उनसे बात करूंगा और उसी में खुश हो जाऊंगा। मेरे हिसाब से यही कामयाबी है।