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सनी देओल के साथ काम करना हमेशा याद रहेगा

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रूना आशीष

"फिल्म में मेरे किरदार का नाम हनीफ़ शेख़ है जो मुंबई के इलाके वर्ली की एक बस्ती का रहने वाला एक लड़का है। वह असल में एक सुसाइड बॉम्बर है लेकिन इस बीच उसका एक्सिडेंट हो जाता है और वो अपनी याददाश्त खो देता है। इसमें आम फ़िल्मों की तरह इस मानव बम को किसा भी रिमोट से नहीं उड़ाते बल्कि उसके दिल की धड़कन के साथ बम के ब्लास्ट होने का समय जोड़ा गया है।"
 
फिल्म ब्लैंक के ज़रिए बॉलीवुड में कदम रखने वाले करण कपाड़िया ने वेबदुनिया संवाददाता से बात करते हुए बताया, "जब मैं अपनी सारी यादें खो चुका होता हूँ तो पकड़ भी लिया जाता हूँ लेकिन मुझे खुद को समझ नहीं आता कि ये बम मेरे शरीर में कैसे आया? मुझे तो इस बात से भी हैरानी होती है कि कैसे मेरे रिफ्लैक्स इतने तेज़ हैं जबकि मुझे तो अपनी कोई ट्रेनिंग भी याद नहीं है।"
 
देश के एक बड़े आतंकी हमले 26/11 की बात करते हुए करण बताते हैं कि मैं उस समय 14 साल का था। मेरी अगले दिन इंग्लिश की परीक्षा भी थी। जब ये सब हुआ तो हम लोग मोबाइल पर मैसेज कर रहे थे कि कुछ हुआ है और अगले दिन परीक्षा ना भी हो। मुझे याद  कि हमारी स्कूल एक हफ्ते बंद रही थी। धीरे-धीरे जब सब बातें हमारे सामने आने लगीं तो समझ में आने लगा कि उस रात हमारे देश पर आतंकवादी हमला हुआ था। मुझे याद है कि सुबह ही मेरी बहनें ताज में गई थीं। उस समय लगा कि अगर कहीं वो शाम को ताज जाती तो कुछ भी हो सकता था। 
 
आपके दोस्तों ने इस पूरे वाकये को कैसे समझा? 
सब डरे हुए थे। सबको समझ में आ रहा था कि जो भी हुआ वो हमारे शहर और देश के लिए बहुत दु:खद था। हमारी स्कूल की टीचर्स बहुत अच्छी थीं। उन्होंने हम सभी को इसकी जानकारी दी और इसकी गंभीरता के बारे में बताया। उस समय समझ में आया कि काश ऐसा कोई भी हादसा कभी हमारे देश में ना हो। 
 
सनी देओल के साथ काम करने का तजुर्बा कैसा रहा?
मेरे लिए वो एक अविश्वसनीय सा अहसास था। मेरी माँ ने सालों तक उनके ड्रेस डिज़ाइन किए हैं। उस समय मेरे लिए वो बहुत अलग शख्स थे। जब मैं पहली बार उनके साथ शूट करने वाला था तो उन्होंने कहा था कि किसी भी बात को ना दिल पर लेना ना दिमाग में जाने देना। हमेशा ज़मीन पर बने रहना। उनके साथ जो शॉट मैंने किया था वो मेरा फिल्म का पहला डायलॉग था। उनके सामने काम करना हमेशा याद रहेगा। 
 
आपके जीजाजी यानी अक्षय कुमार ने आपको कोई पते की बात बताई?
उन्होंने समझाया कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं है। यह मान कर हमेशा काम करना। वैसे ये बात तो सिर्फ फ़िल्मों क्या हर जगह पर काम आती है। ये बात उन्होंने तब कही थी जब मैं थोड़ा छोटा था, लेकिन उनकी ये बात मुझे हमेशा याद रहती है। 
 
अपनी माँ सिंपल कपाड़िया की कौनसी फ़िल्में देखी है? 
मुझे बहुत याद नहीं। उनकी फिल्म 'अनुरोध' बहुत सालों पहले देखी थी। उनकी एक फिल्म नाम तो याद नहीं है जिसमें वह एक बाइक पर बैठी थीं और बाइक चलाते-चलाते दुश्मन को किक करती थीं। वो सीन मैं कभी नहीं भूल सकता। कितना अजीब दृश्य है। ये कैसे पॉसिबल है? 

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