हमने सोचा नहीं था कि खेल जीवन पर आधारित हमारी फिल्म 'तूफान' को हम उस समय लेकर आए जब टोक्यो में ओलंपिक की शुरुआत होने वाली हो। बात तो कुछ यूं है कि यह पिछले साल ही रिलीज होने वाली थी, लेकिन आप तो जानते हैं उस समय और कोविड के चलते बहुत सारी चीजों में बदलाव लाने पड़े थे। ऐसे में अब यह फिल्म रिलीज होकर लोगों के सामने हैं।
लेकिन फिर भी मुझे ऐसा लगता है कि हमारे फिल्म के जरिए हो सकता है कुछ लोग प्रेरित हो जाए। हो सकता उन्हें खेल भावना समझ में आए तो हमारे लिए यह उपलब्धि होगी। लेकिन इसके साथ ही मैं कहना चाहता हूं कि जो भी लोग हमारे देश की तरफ से टोक्यो में जा रहे हैं, वहां पर परफॉर्म कर रहे हैं उन सभी को मेरा बहुत सारी बधाई हो और बहुत सारी ऑल द बेस्ट है।
यह बिल्कुल मत सोचिए कि आप को मेडल ही जीत कर लाना है। आप नहीं भी लेकर आए तब भी हम आपका खुले दिल से स्वागत करने ही वाले हैं। आप हमारे देश से निकलकर हमारे देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी दूसरे देश में पहुंच गए हैं, हमारे लिए तो आप उसी दिन से विजेता बन गए हैं। अब बिल्कुल अपने ऊपर यह दबाव या तनाव ना ले कि आपको जीत कर ही लौटना है। नहीं, आप नहीं जीते तभी हमारे लिए आप हीरो ही रहने वाले हैं। आप वहां जाइए, बेहतर परफॉर्म कीजिए और हमें आप पर गर्व है।
यह कहना है फरहान अख्तर का, जिनके फिल्म तूफान दर्शकों के सामने आ गई है। बॉक्सिंग पर बनी यह फिल्म एक बार फिर से फरहान अख्तर के जीवन में खेल की भावना को लोगों के सामने लाने का एक मौका है। इस फिल्म में एक बार फिर से फरहान अख्तर राकेश ओमप्रकाश मेहरा के साथ मिलकर स्पोर्ट्स पर बनी एक फिल्म लोगों के सामने लेकर आए हैं। इसके पहले वह भाग मिल्खा भाग में भी एक साथ खेल भावना को प्रदर्शित करने वाली फिल्म लोगों के सामने ला चुके हैं।
वेबदुनिया से बात करते हुए फरहान ने बताया कि स्पोर्ट्स कई तरह के होते हैं एक होते हैं जो आप लोगों के साथ जुड़क खेलते हैं और कुछ एकल स्पोर्ट्स भी होते हैं एक अकेला खिलाड़ी जाकर परफॉर्म करता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह आपको खेल भावना नहीं सिखाता है। आप कितने भी बड़े खिलाड़ी हो जाएं, बॉक्सिंग करने अकेले जाकर परफॉर्म करें और बेहतरीन तरीके से आप अपना मेडल भी जीत लिया है।
लेकिन आप फिर भी अकेले नहीं होते। आपके पीछे बहुत बड़ी टीम होती है जो आप को प्रभावित करती है, प्रेरित करती है। आगे बढ़ने के लिए हौसला बढ़ाती है। तो खेल आपके जीवन में आपको बहुत सारी चीजें सिखा सकता है। सबसे पहले आपको सिखाता है कि आप लोगों से जुड़कर चलें।
खेल में एक बात बहुत अच्छी होती है कि यह आपको बहुत कुछ ऐसी चीजों सिखाता है जिसके बारे में आप सोच भी नहीं पाते हैं। आपकी टीम होती जो कई बार आपको बोलती है, आप जाओ और खेलो और अच्छा परफॉर्म करके आओ। तो फिर ये आपको खेल भावना भी सिखाता है। फिर आपको यदि सिखाता है कि आपकी जिंदगी में हर उस शख्स का अपना महत्व है। भले ही वह छोटा से छोटा क्यों न हो लेकिन आप जहां जिस मुकाम पर पहुंचना चाहते हैं या पहुंच गए। उसके पीछे इस छोटे से योगदान का भी उतना ही महत्व होता है। आपको खेल भावना स्पोर्ट्स सिखाता है।
स्पोर्ट्स नीचे गिर कर उठना भी सिखाता है। खेल बताता है कि अगर आप नीचे गिर गए हो और थक गए हो तो कोई बात नहीं थोड़ा सा आराम करो और फिर अपने आप को नए सिरे से तराशना शुरू कर दो। हमारे देश में जहां पर पढ़ाई को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता है जो कि अच्छी बात है, लेकिन मुझे लगता है कि सिर्फ पढ़ाई को महत्व देना कहीं ठीक नहीं है। खेल तो युवाओं के पास बच्चों के पास होना ही चाहिए। अगर कोई बच्चा या बच्ची चाहता है कि वह स्पोर्ट्स में आगे बढ़े तो फिर उसे अपने सपनों से समझौता नहीं करना चाहिए जहां आपको लगे कि किसी की रुचि खेल में ज्यादा है तो आपके दिल से एक आवाज आने की चाहिए कि चलिए मैं मदद करता हूं तुम्हारे सपनों तक पहुंचने में।
जहां तक मेरी रूचि का सवाल है तो हर भारतीय की तरह मुझे भी बचपन में ही क्रिकेट का इंजेक्शन लग गया था। क्रिकेट पसंद करता आया हूं बचपन से। लेकिन उसके बाद मुझे बास्केटबॉल भी पसंद है, फुटबॉल भी पसंद है, स्विमिंग भी और साइकिलिंग भी बहुत पसंद है। और अब बॉक्सिंग कर रहा हूं। दूर से देखकर ऐसा लगता है कि अरे कितना आसान है एक शख्स दूसरे शख्स को या एक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी को फुटबॉल पास कर रहा है। लेकिन असल में उसके पीछे कितनी मेहनत लगती है, देख कर लगता है, अरे वाह, बुमरा कितने अच्छे से लो कट बॉल डाल लेता है, लेकिन उसकी महीनों और सालों की मेहनत है। जब मैं ऐसी फिल्में करता हूं तो मुझे समझ में आता है कि एक छोटे से क्षण को बताने और जीतने के लिए कितनी सारी और सालों की मेहनत लगती है।
आप एक एक्टर तो है ही साथ ही आप एक निर्देशक भी है तो जब फिल्म बन रही थी तो क्या आपके अंदर का निर्देशक भी कुछ कहना चाहता था?
मैं एक्टर था और पूरा ध्यान मेरा अपने रोल पर था। मुझे किस तरीके से बेहतर तरीके से अपने रोल को करना है। इस बात पर था तो मैं जानता था कि मेरा ज्ञान अपने रोल तक सीमित है, लेकिन राकेश हो या जोया हो, इनके साथ काम करते समय मुझे इन पर पूरा भरोसा रहता है और यह भरोसा तो बिल्कुल रहता है कि यह निर्देशन दे रहे हैं या जो निर्देश दे रहे हैं वह सोच समझ कर दे रहे हैं। मैं सिर्फ एक रोल कर रहा हूं जबकि यह तो पूरी कहानी बता रहे हैं किसी भी फिल्म के हर। विभाग से और हर रूप से यह लोग वाकिफ़ हैं। तो मैं रोल पर ध्यान देता हूं और निर्देशन का काम निर्देशक पर छोड़ देता हूं।
आप एक बार फिर से राकेश ओमप्रकाश मेहरा के साथ काम कर रहे हैं कोई खास वजह?
मेरे लिए यह एक तरीके से रिपीट टेलीकास्ट कह सकता हूं। यह कहानी मेरे दिमाग में आई। एक बहुत अच्छे लेखक के अंजुम राजाबली मैंने उनसे बात की। उन्होंने मेरे लिए कहानी लिखी। यह कहानी लेकर मैं पहुंचा राकेश के पास और बताया कि भाई चलिए अब मेरी एक कहानी है। 15 या 20 मिनट का हमारा रीडिंग सेशन हुआ। उसके बाद उसने हां बोल दिया। हम ने हाथ मिलाया अब रिपीट टेलीकास्ट इसलिए क्योंकि इस समय तो यह कहानी मेरे दिमाग की उपज थी। लेकिन भाग मिल्खा भाग जो थी यह राकेश ओमप्रकाश मेहरा की कहानी थी।
मेरे पास 15 या 20 मिनट कि हमारी रीडिंग हुई थी। हम दोनों ने हाथ मिलाया था और कहां चले भाई भाग मिल्खा भाग बनाते हैं। राकेश के साथ काम करना मेरे लिए इतना अच्छा इसलिए रहता है क्योंकि मुझे पूरा यकीन है और पूरा विश्वास रहता है उन पर कि मैं जिस तरह की फिल्म देखना चाहता हूं या जिस तरह की फिल्म बना कर दिखाना चाहता हूं राकेश ओमप्रकाश बिल्कुल वैसी ही फिल्म बनाकर मेरे सामने लेकर आएंगे और हम दोनों मिलकर दर्शकों के सामने रखेंगे।