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बैड न्यूज से पहली बार कॉमेडी जॉनर में कदम रख रहीं तृप्ति डिमरी, फिल्म को लेकर कही यह बात

हमें फॉलो करें बैड न्यूज से पहली बार कॉमेडी जॉनर में कदम रख रहीं तृप्ति डिमरी, फिल्म को लेकर कही यह बात

रूना आशीष

, गुरुवार, 18 जुलाई 2024 (12:29 IST)
Tripti Dimri Interview: मैंने अपनी जिंदगी में कभी भी कॉमेडी फिल्म नहीं की थी। बैड न्यूज़ करने के पहले जितनी भी फिल्में की, जितना भी काम किया वह अलग जॉनर की थी। वह अलग तरीके की फिल्में थी। लेकिन बैड न्यूज बहुत ही अलग कॉमेडी मुझे लग रही थी। क्या होता है कोई भी अभिनेता किसी न किसी जॉनर में जाकर अपने आपको सुखद महसूस करता है। आरामदायक लगता है और मैंने भी लगभग वही किया था। 
 
मुझे लगा था कि मुझे इसी तरीके की फिल्में करनी चाहिए, क्योंकि ठीक है यह सब। मैं तो शुक्रगुजार रहूंगी आनंद सर की जिन्होंने मुझे यह फिल्म ऑफर की। वर्ना पुराना काम देख कर मुझे कौन कॉमेडी ऑफर करता और यह तब की बात है जब मैंने एनिमल की भी नहीं थी। उन्होंने मुझे रोल सुनाया और मैं थोड़ी सी शर्मीली हूं ऐसे में मैं स्क्रिप्ट सुनकर इतना हंसी और उसके बाद निर्देशक सर से पूछा स्क्रिप्ट बड़ी अच्छी, लेकिन यह सब होगा कैसे? इसलिए यह फिल्म करने में मुझे डर लग रहा था। 
 
मुझे लगता है कि जिस चीज को करने में डर लगे वह तो निश्चित तौर पर कर ही लेनी चाहिए। यह कहना है तृप्ति डिमरी का जिन्हें इन दिनों लोग नेशनल क्रश बुलाते हैं। अपनी अगली फिल्म बैड न्यूज़ के प्रमोशन इंटरव्यू के दौरान तृप्ति ने मीडिया के कई सवालों का खुलकर जवाब दिया। 
 
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इस फिल्म में आप एक मां का किरदार निभा रही हैं। कैसे आत्मसात किया इस रोल को, क्योंकि आप तो असलियत में मां नहीं हैं? 
मैंने अपनी बहन से बात की थी और समझने की कोशिश की कि कैसा लगता है जब आप मां बनने वाले होते हैं। मैं कई ऐसे लोगों को जानती थी जो हाल ही में मातृत्व का लाभ उठा चुके हैं, उनसे बात की और मुझे लगा कि कैसे हर 3 महीने में आप का शरीर पूर्ण तरीके से बदल जाता है। आप सिर्फ शारीरिक तौर पर नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक तौर पर भी बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव देखती है। 
 
मैं यही सोचती थी कि यह सब असलियत में तो मैंने देखा नहीं है लेकिन जिसने भी किया है यह सब महसूस उसके लिए कितना थका देने वाला रहा होगा। वैसे तो मेरी फिल्म बैड न्यूज कॉमेडी से भरपूर है। लेकिन जब भी हम ऐसे रोल ऐसे सीन करते थे जहां पर बच्चे की बात हो और वह भी एक नहीं दो-दो बच्चों की बात हो तो हम बहुत ज्यादा संजीदगी से और बहुत इमोशनल होकर इन सारे सींस को करते थे। हमारे सेट पर दो बच्चे भी आए थे। आप जब फिल्म देखेंगे तब आपको समझ में आएगा कि मैं क्या बात कर रही हूं? 
 
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पोस्टर बॉयज में अपने श्रेयस तलपड़े के साथ काम किया कुछ यादें है उसकी और अब जब कोई फिल्म चलती है तो क्या देखती है? 
यह तो आप उस समय की बात कर रही हैं जो मुझे एक्टिंग का क ख ग भी नहीं आता था। हुआ यह कि मुझे मुंबई में एक एड फिल्म का ऑडिशन देना था। मैं ऑडिशन देने आई संतूर में मां के रोल के लिए मुझे ऑडिशन देना था। मेरा सिलेक्शन भी हो गया। मैंने एड किया और बस घर चली गई। मुझे लगा अरे वाह एक्टिंग तो बड़ी आसान है। पता नहीं क्यों लोग 15 साल इसी में बिता देते हैं। फिर जब मैंने फिल्म करना शुरू की लैला मजनूं किया तब जाकर लगाकर बाप रे अब मामला थोड़ा संजीदा हो गए हैं। ऐसे ही काम नहीं चलेगा। अब एक्टिंग की अच्छे से ट्रेनिंग भी लेनी पड़ेगी और सारी वह बातें सीखनी पड़ेगी जो मुझे बेहतर एक्ट्रेस बनाने में मदद कर सकती है। 
 
आपको जब कोई नेशनल क्रश कहकर बुलाता तो कैसा लगता है
अच्छा ही लगता है कभी कोई आपकी तारीफ करें तो मजा ही आता है सुनकर मुझे। हालांकि मुझे ज्यादा अच्छा तब लगेगा जब लोग मुझे अपने कैरेक्टर की वजह से याद रखें। मेरे अभिनय की वजह से याद रखें। अभी भी जम्मू-कश्मीर में मुझे लैला करके ही बुलाया जाता है। बुलबुल की ही बात ले लीजिए जब मैं बुलबुल करने वाली थी तब कई सारे लोगों ने मुझे कहा कि यह मत करो। तुम पहले यह थीएट्रिकल लैला मजनू कर चुकी हो। फिर क्यों ओटीटी में जा रही हो क्योंकि उस समय ओटीटी बहुत नया हुआ करता था, पर मैंने किसी की बात नहीं मानी। मुझे उसकी स्क्रिप्ट इतनी अच्छी लगी कि मैंने वह काम कर ली। अब देखिए बुलबुल की वजह से ही मुझे एनिमल मिली और बुलबुल की ही वजह से मुझे बैड न्यूज मिली। 
 
अपने अच्छे एक्टर जैसे रणबीर कपूर के साथ, बॉबी देओल के साथ काम किया और अब विक्की कौशल जैसे कलाकार के साथ काम कर रही हैं। कभी थोड़ा सा डर लगा। 
बिल्कुल, डर तो लगता ही है। आपको लगता है कि आप कहां पहुंच गए और आपके सामने कौन एक्टर खड़ा है? लेकिन फिर सेट पर जवाब जाते हैं। उनके साथ बातचीत करते हैं तो आपको उनके लिए इज्जत बढ़ जाती है कि देखिए वह जानते हुए भी कि मैं बहुत नई हूं फिर भी उन्होंने मुझे महसूस नहीं कराया। सब कुछ इतना आसानी से हो गया या कितने अच्छे से बातचीत करते हैं। यह सब बातें दिमाग में भी चलने लगती है। और फिर बाद में लगता है कि देखी कहां से कहां तक आ पहुंची हूं मैं?
 
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पहले के प्रेशर में और अब के प्रेशर में कितना अंतर आया? 
अंतर तो बहुत कुछ आया है। पहले बड़ी निडर हुआ करती थी मैं बड़े ही ऊपरी और सतही तौर पर चीजों को लिया करती थी। हुआ तो हुआ काम नहीं हुआ तब भी कोई बात नहीं है। और वह क्या होता है ना ज्यादा लोग मुझे पहचानते नहीं थे। कोई बड़ा नाम भी नहीं था। जितना कम लोग जानते हैं, उतना कम परेशानी होती है। लेकिन अब वह बात नहीं है। मुझे ऐसा लगता है कि आपकी एक उम्र होती है जब आप बिल्कुल भी डरते नहीं हैं। अभी बात सोच कर डर लगता है कैसे मैं दिल्ली से उठकर मुंबई में काम करने लगी। वरना मैं तो इतनी अंतर्मुखी थी कि घर के किसी कार्यक्रम में भी जाऊं तो एक कुर्सी लेकर कोने में बैठ जाया करती थी।
 
यही सोचती रहती थी कि कोई मुझे देखे नहीं या मुझसे कोई बात ना करने के लिए आए। जब मैंने अपने माता-पिता से बात की कि मुझे एक्टिंग करनी है तो वह इतने ज्यादा अचंभे में पड़ गए कि कहां तो तुमसे घर वालों के बीच में बात करते नहीं बनता है। कहां तुम दूसरे शहर में जाकर काम के लिए अलग अलग तरीके के लोगों से बात करोगी। लेकिन मुझे लगता है कि किस चीज का सामना कर लेना, उस डर को हरा देना होता है। मुझमें बहुत अंतर आया है। अब मैं इतनी अंतर मुखिया शर्मीले स्वभाव की नहीं रही हूं। मैंने समय के साथ अपने को बदला है। 

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