बप्पी लहरी हिंदी फिल्मों में पॉप संगीत के लिए प्रसिद्ध थे और पश्चिमी धुनों के कायल थे परन्तु बंगाल में बनी 'गुरु दक्षिणा' फिल्म में बप्पी के शास्त्रीय संगीत ने तहलका मचा दिया था। यह अजीब बात थी कि बप्पी हिंदी में पॉप और बंगला में शास्त्रीय गाने देते थे। हिंदी में 'गुरु दक्षिणा' जैसा संगीत क्यों नहीं देते?
बप्पी का कहना था कि जब निर्माता बलात्कार और बदले की कहानी लेकर आता है तो शास्त्रीय संगीत के लिए कहां गुंजाइश रह जाती है। उन्होंने 'शीशे का घर' फिल्म में शास्त्रीय आधारित धुनें दी थी।
बप्पी ने जब हिंदी फिल्मों में प्रवेश किया तो लक्ष्मी-प्यारे, राहुल देव बर्मन और सदाबहार कल्याणजी-आनंद जी छाए हुए थे। उन दिनों बप्पी लहरी बहुत कम पैसे में छोटे निर्माताओं के लिए काम करने लगे थे इसीलिए लोग उन्हें 'गरीब निर्माता का राहुल देव बर्मन' कहा करते थे।
बाद में पांसा पलट गया। पांसा पलटने के लिए 'पॉप' और मिथुन के थिरकते हुए कदमों ने बहुत मदद की। 'डांस-डांस' की 'बीट' रशिया और चीन में भी प्रसिद्ध हुई। यह अजीब बात थी कि 'आवारा हूं' के माधुर्य के बाद 'मैं हूं डिस्को डांसर' लाल देशों में भी चल पड़ा। नकल के माल ने असल को बाजार से बाहर कर दिया। बप्पी लहरी के आते ही खोटे सिक्के चल पड़े और 'छोटे नवाब' हरम में कैद हो गए।
बप्पी की पहली प्रसिद्ध धुन थी 'बंबई से आया मेरा दोस्त, सलाम करो।' इसके बाद कवायद की अदा में फिल्मांकित होने वाले गानों के लिए बप्पी लहरी ने मद्रास में अपना कैम्प बना लिया। मद्रास के निर्माताओं को समय और पैसा बचाने का शौक है। बप्पी लहरी ने उनके लिए एक दिन में तीन गाने रिकॉर्ड कर दिए और पूरी फिल्म का संगीत एक सप्ताह में बना दिया।
जेट युग की लहर पर सवार बप्पी, प्रकाश मेहरा के कैम्प में जा पहुंचे और 'शराबी' और 'नमक हलाल' की सफलता उनके झोले में जा गिरी। 'रपट जाएं, लिपट जाएं' की मतवाली रिद्म को बहुत पसंद किया गया। प्रकाश मेहरा खुद गानों के मुखड़े लिखने के शौकीन थे और बप्पी को तब ठीक से हिंदी आती नहीं थी। दोनों की जोड़ी जम गई।
बप्पी अजीबोगरीब पोशाक पहनते थे और वहीं ढंग उन्होंने संगीत में भी अपनाया। उनमें स्वाभाविक प्रतिभा की कमी नहीं थी जैसा कि उन्होंने अपने बंगाली संगीत में सिद्ध किया था। परन्तु 'गति' के फेर में मति मारी गई और 'पॉप किंग' बनकर विदेशों में छा जाने का सपना उनकी हकीकत बन गया।
(पुस्तक 'सरगम का सफर' से साभार)