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फारुख शेख : छोटे कद के बड़े अभिनेता

हमें फॉलो करें फारुख शेख : छोटे कद के बड़े अभिनेता

समय ताम्रकर

, शनिवार, 25 मार्च 2023 (11:33 IST)
फारुख शेख जैसे अभिनेता ने सीधे-सादे, भोले-भाले और प्रेम के प्रपंच से अनजान नायक के रोल को जिस सादगी के साथ परदे पर उतारा है वो बेमिसाल है। शायद ऐसे रोल उनकी शख्सियत पर फबते थे। फिल्म गमन (1978) में उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचल से पैसे कमाने के लिए मुंबई रवाना हुआ एक मुस्लिम युवक महानगर के आतंक से ग्रसित है। फिल्म में शहरयार का गीत 'सीने में जलन आँखों में तूफान-सा क्यों है, इस शहर में हर शख्स परेशां-सा क्यों है'- फारुख शेख की फिल्म करियर की असली दास्तान है।
फारुख : बीए, एलएलबी
असली जीवन में फारुख सादा जीवन और उच्च विचार वाले थे और उनके पास बीए, एलएलबी की डिग्री थी। 25 मार्च, 1948 को गुजरात के अमरोली (सूरत) में जन्मे फारुख ने वकालात का पेशा अपने बस का नहीं माना और वे रंगमंच की ओर मुड़ गए। उनके परिवार से कभी कोई बंदा परफॉर्मिंग आर्ट्स के क्षेत्र में कभी नहीं गया। उनकी दो बेटियों को भी बड़ा या छोटा परदा कभी रास नहीं आया। मगर फारुख 'इप्टा' से जुड़ गए। वहाँ उन्हें फिल्मकार एमएस सथ्यू, अभिनेता बलराज साहनी और लेखिका इस्मत चुगताई तथा राजेंद्रसिंह बेदी का साथ मिला। यही वजह रही कि फिल्म गरम हवा (1973) की टीम में उन्हें शामिल कर लिया गया। फिल्म फाइनेंस कारपोरेशन से उस समय ऐसी फिल्मों को कर्ज दिया जाता था, जिसमें कम पैसे लेकर लगातार शूटिंग करने वाले कलाकार हों। आगरा और फतेहपुर सीकरी में लगातार दो महीने तक फिल्म की शूटिंग की गई। पूरी यूनिट एक परिवार की तरह साथ रही और इस तरह साम्प्रदायिक सद्भाव पर एक कालजयी फिल्म दर्शकों के सामने आई। गरम हवा के असली हीरो, तो बलराज साहनी थे, मगर फारुख के रोल को भी पसंद किया गया।
 
राय मोशाय का न्यौता
सत्यजीत राय ने फिल्म गरम हवा देखी और फारुख को अपनी पहली हिंदी फिल्म शतरंज के खिलाड़ी के लिए आमंत्रित किया। उस समय फारुख विदेश यात्रा पर थे। राय मोशाय ने इंतजार किया। इस तरह सथ्यू और सत्यजीत राय का कला स्पर्श फारुख को मिला, जो उनके अभिनय को निखारने में मददगार बना।
 
फारुख जब कॉलेज में पढ़ते थे, तो उन दिनों नाटकों का निर्देशन रमेश तलवार करते थे। यश चोपड़ा की गीत-संगीत प्रधान रोमांटिक फिल्म नूरी उन्हीं की सिफारिश पर फारुख को मिली थी। फारुख ने भी सोचा कि कमर्शियल फिल्मों में किस्मत को आजमाया जाए।
 
कश्मीर के भरदवाह गाँव में कंपकपाती ठंड में नूरी की शूटिंग की गई। त्रिशूल में छोटा रोल करने वाली पूनम ढिल्लो को नायिका बनाया गया। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई, लेकिन फारुख को ज्यादा खुशी नहीं हुई। फिल्म में उन्हें अपनी मर्जी के खिलाफ पेड़ों के इर्दगिर्द चक्कर लगाने वाले जैसे रोमांटिक सीन उन्हें करने पड़े थे।
 
अक्सर वे कहते थे कि नूरी बहुत ही सामान्य फिल्म थी, पता नहीं कैसे सफल हो गई। नूरी जैसे उन्हें कई रोल ऑफर हुए, लेकिन ऐसे बकवास रोल करने के बजाय उन्होंने घर पर लंबे समय तक बैठना मंजूर किया।
 
चश्मे बद्दूर : दीप्ति का साथ
फारुख की बेरोजगारी के आलम में सई परांजपे ने अपनी फिल्म चश्मे बद्दूर के लिए उनका दरवाजा खटखटाया। फारुख शेख, रवि बासवानी और राकेश बेदी तीन दोस्त हैं। एक साथ फक्कडपनन से रहते हैं और महानगर में लड़कियों का पीछा कर उन्हें पटाने की कोशिश करते हैं।
 
यह फिल्म इतनी कमाल की बनी कि आज भी लोग इसे याद करते हैं। इस फिल्म से फारुख और दीप्ति नवल की जोड़ी बनी और लोकप्रिय होकर अनेक फिल्मों में दोहराई गई। सई ने भी इसी जोड़ी को अपनी अगली फिल्म 'कथा' में दोहराया जो उनके मराठी नाटक का हिंदी संस्करण है। कछुए और खरगोश की परंपरागत कहानी को आधुनिक संदर्भ में दिखाया गया है।
 
कछुए के रोल में नसीरुद्दीन शाह हैं और खरगोश के रोल में फारुख। दोनों की मंजिल है दीप्ति नवल। फिल्म में कछुए की जीत बताई गई है। आमतौर पर दब्बू किस्म की भूमिकाएँ निभाने वाले फारुख ने इसमें एक तेज तर्रार युवक की भूमिक निभाई और नसीरुद्दीन जैसे अभिनेता से जमकर टक्कर ली।
 
फिल्म बाजार 1982 में प्रदर्शित हुई थी। इसे सागर सरहदी ने निर्देशित किया था। इसमें फारुख ने गरीब, बेरोजगार मुस्लिम युवा का रोल संजीदगी के साथ निभाया। नसीर और स्मिता जैसे कलाकारों की उपस्थिति के बावजूद फारुख को नोटिस किया गया।
 
रेखा से डर गए थे फारुख!
फारुख के संजीदा अभिनय से सजी एक और फिल्म है- एक पल। इस फिल्म से कल्पना लाजिमी ने अपने निर्देशकीय जीवन की शुरुआत की थी। यह फिल्म सिनेमाघरों में ठीक से प्रदर्शित नहीं हो पाई थी। सिर्फ फिल्म फेस्टिवल की शोभा बनकर रह गई। गुरुदत्त के भाई आत्माराम के सहयोग से बनी इस फिल्म में फारुख उम्दा रोल निभाया था।
 
फारुख की अधिकांश फिल्में कला फिल्मों की श्रेणी में मानी जाती हैं। नसीर-शबाना-दीप्ति नवल के साथ फारुख की उपस्थिति फिल्म को एक अलग गति देने में समर्थ है। फिल्म लोरी, अंजुमन जैसी फिल्में इसके उदाहरण हैं। मुजफ्फर अली ने फारुख को तीन फिल्मों गमन, अंजुमन और उमराव जान में निर्देशित किया है। इनमें से उमराव जान फारुख को एक श्रेष्ठ अभिनेता के रूप में स्थापित करती है। वैसे अभिनेत्री रेखा के बारे में तरह-तरह की कहानियाँ-किस्से सुनकर पहले वे काम करने के लिए तैयार नहीं थे। बाद में रेखा उन्हें उम्दा अभिनेत्री लगी।
 
ऋषिदा का स्पर्श
फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी की दो फिल्मों रंग बिरंगी तथा किसी से ना कहना के अलावा टीवी धारावाहिक भी में फारुख ने अभिनय किया है। बड़े परदे से मन भरने के बाद वे छोटे परदे की ओर मुखातिब हुए। निर्देशक प्रवीण निश्चल ने शरत बाबू के उपन्यास श्रीकांत पर जो धारावाहिक बना वो लंबे समय तक चला। फारुख ने इतने दिनों तक श्रीकांत के किरदार को अपने दर्शकों के दिल-दिमाग में जीवंत बनाए रखा।
 
कुछ और धारावाहिक करने के बाद फारुख ने काफी परिश्रम और शोध कार्य से अपना टॉक शो जीना इसी का नाम है प्रस्तुत किया। यह अपने ढंग का अनोखा कार्यक्रम था। इसमें प्रस्तुत कलाकार को उसके बचपन के दोस्त-सहपाठी और परिवार के सदस्यों के साथ पेश कर चौंक दिया जाता था।
 
फारुख फिल्मी दुनिया के चकाचौंध, पार्टी, प्रचार में कभी डूबे नहीं। अपनी चाल से चले। अपनी पसंद के किरदार किए। नाटक उनका पहला प्यार है। तुम्हारी अमृता नाटक को उन्होंने कई देशों में मंचित किया है। वे सितारा कभी बनना नहीं चाहते थे। हमेशा आम आदमी की तरह रहे। 28 दिसंबर, 2013 को अचानक उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया जिससे उनके चाहने वालों को करारा झटका लगा। 

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