गुलजार की ख्याति एक कवि और गीतकार के रूप में बहुत ज्यादा है। इसकी वजह यह है कि आज भी उनके लिखे गीत लोग गुनगुनाते रहते हैं। निर्देशक के रूप में भी गुलजार कुछ कम नहीं हैं। उन्होंने ब्लॉकबस्टर या सुपरहिट फिल्में तो नहीं बनाई, लेकिन ह्यूमन रिलेशिनशिप के इर्दगिर्द कई खूबसूरत फिल्मों को निर्देशित किया है जिसमें से ज्यादातर हिट रही हैं।
गुलजार पर बिमल रॉय, बासु भट्टाचार्य और ऋषिकेश मुखर्जी जैसे निर्देशकों का प्रभाव है। इन महान निर्देशकों ने मिडिल पाथ सिनेमा बनाया। इनकी फिल्मों में गंभीर बातों को सरल, मनोरंजक और दिल को छू लेने के अंदाज में पेश किया जाता था कि सभी को यह आसानी से समझ आ जाती थी। यही बातें गुलजार की फिल्मों में भी देखने को मिलती हैं।
अपने करियर की शुरुआत से ही गुलजार ने गानों के साथ-साथ फिल्मों के लिए संवाद और स्क्रीनप्ले भी लिखे। आशीर्वाद, आनंद, खामोशी जैसी यादगार फिल्मों में गुलजार का योगदान रहा। निर्देशक बनने के लिए जब गुलजार तैयार हुए तो उनकी फिल्म पर एनसी सिप्पी ने पैसा लगाया।
1969 में प्रसिद्ध निर्देशक तपन सिन्हा ने अपांजन नामक बंगाली फिल्म बनाई थी और यह गुलजार को बेहद पसंद आई। उन्होंने इसे हिंदी में 'मेरे अपने' (1971) नाम से बनाने का फैसला किया ताकि यह फिल्म ज्यादा से ज्यादा दर्शकों के बीच पहुंचे।
मीना कुमारी जैसी अभिनेत्री के जुड़ने से फिल्म का वजन बढ़ गया। विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा तब नवोदित कलाकार थे, जिन्हें गुलजार ने अपनी फिल्म में लिया। युवा ऊर्जा पर आधारित इस फिल्म ने अपने अनोखे विषय के कारण सभी का ध्यान आकर्षित किया। गुलजार के पैर एक निर्देशक के रूप में जम गए।
कोशिश (1972) के जरिये गुलजार ने भारी जोखिम उठाया, जब फिल्म के हीरो-हीरोइन को मूक-बधिर दिखाया। उस वक्त समानांतर सिनेमा का इतना चलन नहीं था और सिर्फ फॉर्मूला फिल्में ही बनती थीं। इस फिल्म की प्रेरणा गुलजार ने हॉलीवुड फिल्म द साउंड ऑफ म्युजिक से ली।
एक मूक-बधिर जोड़े को अपनी जिंदगी में किन परेशानियों से गुजरना पड़ता है? बिना ध्वनि के कैसी उनकी जिंदगी होती है? इस दर्द को गुलजार ने इतने अद्भुत तरीके से पेश किया कि फिल्म दिल को छू गई। कोशिश इस बात को साबित करती है कि शारीरिक रूप से कमजोरी के बावजूद ये आम इंसान से किसी तरह कम नहीं होते हैं। यह बॉलीवुड की क्लासिकल फिल्मों में से एक है। गुलजार को स्क्रीनप्ले के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। 2012 में रिलीज हुई बर्फी में हम कोशिश की झलक महसूस कर सकते हैं।
साहित्य से गुलजार को पुराना नाता रहा है। उन्होंने खूब पढ़ा-लिखा है। उनकी फिल्मों की ज्यादातर कहानियां साहित्य से ली गई हैं। परिचय की कहानी बंगाली उपन्यास रंगीन उत्तरें पर आधारित है। यह एक हल्की-फुल्की फिल्म है, जिसे बड़ों के साथ बच्चों ने भी पसंद किया। जीतेंद्र इस तरह का रोल भी कर सकते हैं, ये परिचय के बाद ही मालूम हुआ।
1973 में गुलजार ने अचानक नामक फिल्म निर्देशित की थी, जिसकी कम चर्चा हुई है। गुलजार की निर्देशक के रूप में जो छवि है, उससे अचानक बिलकुल अलग है। यह एक थ्रिलर मूवी है, जिसमें एक सैनिक अपनी पत्नी के अफेयर के बारे में जानकर उसकी हत्या कर देता है। प्रसिद्ध लेखक और फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास की लिखी कहानी एक रियल मर्डर केस पर आधारित थी।
गुलजार ने इसे मात्र 28 दिन में बना दिया। अपने काम के प्रति गुलजार कितने ईमानदार हैं कि गीतकार होने के बावजूद अचानक में उन्होंने एक भी गीत नहीं रखा क्योंकि स्क्रिप्ट इस बात की इजाजत नहीं देती थी।
आंधी (1975) गुलजार की बेहतरीन फिल्मों में से एक है। इस फिल्म के गाने कमाल के हैं। पोलिटिकल ड्रामे को गुलजार ने अपनी फिल्म का आधार बनाया। कुछ लोगों ने इस फिल्म को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से जोड़कर इसे देखा और आपातकाल के दौरान इस फिल्म पर प्रतिबंध भी लगाया था।
यह फिल्म कमलेश्वर द्वारा लिखे गए हिंदी उपन्यास काली आंधी पर आधारित है। इस फिल्म में गुलजार ने उस महिला की जद्दोजहद को दिखाया जो अपने राजनीतिक करियर को अपने प्रेम के स्थान पर प्राथमिकता देती है। खूबसूरत सुचित्रा सेन ने गिनी-चुनी हिंदी फिल्में की हैं, उसमें से आंधी एक है।
आंधी के साथ-साथ गुलजार ने मौसम फिल्म की शूटिंग भी की और मनुष्य स्वभाव पर बनी यह बेहतरीन फिल्म है। चंदा के साथ अमरनाथ संबंध बनाता है और वापस आने का वादा करता है। चंदा उसकी राह देखते हुए चल बसती है। बरसों बाद अमरनाथ वापस लौटता है। कजली से मिलने पर उसे पता चलता है कि वह उसी की बेटी है। कजली को सुधारकर वह अपना प्रायश्चित करने की कोशिश करता है। संजीव कुमार और शर्मिला टैगोर ने फिल्म में बेहतरीन अभिनय किया है। संगीतकार मदन मोहन के साथ गुलजार ने यही एकमात्र फिल्म की है और इस जोड़ी का दिल ढूंढता है सर्वश्रेष्ठ गीत है।
1975 में गुलजार की आंधी, मौसम के अलावा खुशबू भी रिलीज हुई। यह फिल्म शरत चंद्र चटोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित थी। 1977 में गुलजार ने किताब नामक फिल्म बच्चों के लिए बनाई। किनारा भी इसी वर्ष रिलीज हुई थी।
मीरा और कबीर गुलजार को बेहद पसंद हैं। हेमा मालिनी को लेकर मीरा (1979) नामक फिल्म उन्होंने बनाई जबकि कबीर पर टीवी धारावाहिक निर्देशित किया।
गंभीर फिल्म बनाने वाले गुलजार ने 1982 में भारत की बेहतरीन हास्य फिल्मों में से एक अंगूर बनाई। यह शेक्सपियर के नाटक द कॉमेडी ऑफ एरर्स पर आधारित है। इसी नाटक पर किशोर कुमार और असित सेन अभिनीत दो दूनी चार (1968) भी बन चुकी है। खास बात यह है कि दो दूनी चार को गुलजार ने ही लिखा है। डबल रोल का डबल मजा अंगूर में दर्शकों ने खूब लिया।
सत्तर के दशक में गुलजार निर्देशक के रूप में बेहद सक्रिय रहे, लेकिन अस्सी के दशक से उनका फिल्म बनाना कम हो गया। दरअसल अस्सी के दशक में फिल्मों का स्तर बहुत गिर गया। दर्शकों की रूचि बिगड़ गई, लिहाजा निर्माता लीक से हटकर बनने वाली फिल्मों पर पैसा लगाने में हिचकने लगे।
गुलजार द्वारा निर्देशित नमकीन (1982) और इजाजत (1988) बमुश्किल रिलीज हो पाई। लता मंगेशकर के लिए बनाई गई लेकिन (1991) असफल रही। नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी को लेकर बनाई गई लिबास भारत में रिलीज नहीं हो पाई।
1996 में गुलजार द्वारा निर्देशित फिल्म माचिस को अच्छी सफलता मिली। इस फिल्म में युवा वर्ग को माचिस से जोड़ा गया। हु तू तू (1999) गुलजार द्वारा निर्देशित आखिरी फिल्म है। इसके बाद उन्होंने कोई फिल्म निर्देशित नहीं की।
गुलजार ने अपनी ज्यादातर फिल्में संजीव कुमार, विनोद खन्ना, जीतेंद्र, हेमा मालिनी और जया बच्चन के साथ बनाई। इन कलाकारों को यादगार भूमिकाएं दी। आरडी बर्मन ने गुलजार की ज्यादातर फिल्मों में संगीत दिया। लता-आशा और किशोर ने गाने गाए। फ्लेशबैक के जरिये कहानी को स्क्रीन पर पेश करना गुलजार की खासियत रही।
अपनी संजीदा फिल्मों से गुलजार ने अपनी फिल्मों के जरिये जहां लोगों का मनोरंजन किया वही उन्हें सोचने पर भी मजबूर किया।