फिल्म निर्माता-निर्देशक रवि टंडन का 86 वर्ष की आयु में 11 फरवरी 2022 को निधन हो गया। ज्यादातर लोग उन्हें फिल्म अभिनेत्री रवीना टंडन के पिता के रूप में पहचानते हैं, लेकिन रवि टंडन ने कई बड़े सितारों के साथ फिल्में बनाई हैं। आगरा में जन्मे रवि टंडन बाद में मुंबई चले आए। इक्का-दुक्का फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया। लव इन शिमला (1960) और 'ये रास्ते हैं प्यार के' (1963) में रवि सहायक निर्देशक बने।
1973 में उन्होंने अपनी लिखी कहानी पर क्राइम थ्रिलर मूवी 'अनहोनी' प्रोड्यूस और निर्देशित की। इस फिल्म में संजीव कुमार, लीना चंदावरकर जैसे सितारे थे और यह फिल्म काफी पसंद की गई। इसके बाद रवि के पैर फिल्म इंडस्ट्री में जम गए। 1974 में रवि द्वारा निर्देशित फिल्म 'मजबूर' काफी पसंद की गई। सलीम-जावेद द्वारा लिखी गई इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, परवीन बाबी, प्राण, मदनपुरी जैसे स्टार कलाकार थे। यह फिल्म हिट रही। यह भी एक थ्रिलर मूवी थी।
1975 में ऋषि कपूर और नीतू सिंह को लेकर 'खेल खेल में' रवि ने निर्देशित की। इस फिल्म का हिट म्यूजिक, युवा सितारे और सस्पेंस ड्रामा ने दर्शकों पर जादू कर दिया। यह फिल्म भी हिट रही।
रवि ने इसके बाद 'अपने रंग हजार' (1975), जिंदगी (1976), चोर हो तो ऐसा (1978), झूठा कहीं का (1979), वक्त की दीवार (1981) फिल्में बनाईं। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट से औसत रहीं। हालांकि इन फिल्मों में उस दौर के बड़े कलाकार, शशि कपूर, संजीव कुमार, ऋषि कपूर जैसे सितारे थे। 1982 में रवि ने अमिताभ बच्चन को लेकर 'खुद्दार' बनाई जो खूब चली।
फिर रवि को आन और शान (1984), राही बदल गए (1985) जैसी फिल्मों के असफल होने से झटका लगा। 1986 में उन्होंने अपने बेटे को हीरो बना कर 'एक मैं और एक तू' बनाई, लेकिन असफलता ही हाथ लगी। 1987 में राजेश खन्ना, श्रीदेवी, स्मिता पाटिल को लेकर 'नज़राना' बनाई। इस फिल्म की असफलता के बाद रवि टंडन ने फिल्म निर्देशन से तौबा कर ली।
रवि का मृदु स्वभाव ही था कि उनके साथ बड़े सितारों ने कभी काम करने से मना नहीं किया। अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर, संजीव कुमार, परवीन बाबी, लीना चंदावरकर जैसे स्टार ने एक से ज्यादा फिल्में की। राजेश खन्ना, शशि कपूर, श्रीदेवी, स्मिता पाटिल जैसे सितारे भी उनकी फिल्मों में नजर आए।
1982 में रिलीज फिल्म 'खुद्दार' के पीछे एक मजेदार किस्सा है। अमिताभ के कहने पर रवि टंडन ने यह फिल्म निर्देशित की थी। यह फिल्म अमिताभ ने अपने दोस्त और फिल्म अभिनेता महमूद के भाई अनवर अली को आर्थिक रूप से उबारने के लिए बनाई थी।
अनवर अली का अमिताभ अहसान मानते थे। जब अमिताभ फिल्म इंडस्ट्री में अपना स्थान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे तब अनवर अली ने अमिताभ को रहने के लिए छत दी थी। खाने-पीने का इंतजाम किया था। तब अमिताभ कड़की के दौर से गुजर रहे थे और अनवर अली के पास पैसा था। बाद में अमिताभ सुपरस्टार बन गए। अनवर अली के कहने पर ही अमिताभ को फिल्म 'बॉम्बे टू गोवा' (1973) में लीड रोल निभाने को मिला था।
1980 के आसपास अनवर अली आर्थिक संकट में आ गए। किसी बात से नाराज होकर भाई मेहमूद ने उन्हें घर से और अपनी कंपनी से निकाल दिया। कार की चाबी तक रख ली। अनवर अली मुसीबत में फंस गए। वे अपने सबसे बड़े भाई उस्मान अली के पास पहुंचे। उस्मान का एक दोस्त मदद के लिए तैयार हो गया, लेकिन उसने एक शर्त रख दी कि अमिताभ को लेकर अनवर अली एक फिल्म प्रोड्यूस करें तभी वह मदद करेगा। उसका मानना था कि अमिताभ की फिल्म के जरिये ही अनवर उसका पैसा लौटा पाएंगे।
अनवर अली ने अमिताभ के पास जाकर सारी बात बताई और अमिताभ फौरन काम करने के लिए तैयार हो गए। अमिताभ ने साइनिंग अमाउंट लेने से भी मना कर दिया। अमिताभ ने एक शर्त रखी कि कहानी के लिए लेखक उनकी पसंद का होगा। अनवर मान गए।
पहले सलीम जावेद से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने बहुत ज्यादा पैसे मांगे। तब अमिताभ ने कादर खान को कहानी लिखने के लिए कहा। निर्देशक की बागडोर अमिताभ ने रवि टंडन को सौंप दी। सभी से कहा गया कि उनकी मार्केट प्राइस नहीं मिलेगी। हीरोइन के रूप में रेखा को चुना गया, लेकिन वे कुछ कारणों से फिल्म नहीं कर पाई।
रेखा की जगह परवीन बाबी को लिया गया। जब फिल्म आधी बन कर तैयार हुई तो परवीन बाबी, रजनीश (ओशो) की चेली बन गईं और फिल्म लटक गई। किसी तरह फिल्म पूरी कर रिलीज की भई और यह सुपरहिट रही। इस तरह से अमिताभ ने अनवर को आर्थिक संकट से उबार लिया और इसमें रवि टंडन का भी योगदान रहा।
रवि टंडन द्वारा निर्देशित फिल्में:
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अनहोनी (1973)
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मजबूर (1974)
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निर्माण (1974)
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खेल खेल में (1975)
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अपने रंग हजार (1975)
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जिंदगी (1976)
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चोर हो तो ऐसा (1978)
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मुकद्दर (1978)
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झूठा कहीं का (1979)
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वक्त की दीवार (1981)
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खुद्दार (1982)
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आन और शान (1984)
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राही बादल गए (1985)
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एक मैं और एक तू (1986)
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नज़राना (1987)