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कभी गैरेज में काम किया करते थे गुलजार, आपको पता है फिल्मकार का असली नाम?

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WD Entertainment Desk

, रविवार, 18 अगस्त 2024 (12:12 IST)
gulzar birthday: बॉलीवुड के जानेमाने फिल्मकार, शायर और गीतकार गुलजार 90 वर्ष के हो गए हैं। पंजाब अब पाकिस्तान के झेलम जिले के एक छोटे से कस्बे दीना में कालरा अरोरा सिख परिवार में 18 अगस्त 1934 को जन्में संपूर्ण सिंह कालरा गुलजार को स्कूल के दिनों से ही शेरो-शायरी और वाद्य संगीत का शौक था। कॉलेज के दिनों में उनका यह शौक परवान चढ़ने लगा और वह अक्सर मशहूर सितार वादक रविशंकर और सरोद वादक अली अकबर खान के कार्यक्रमों में जाया करते थे।
 
भारत विभाजन के बाद गुलजार का परिवार अमृतसर में बस गया लेकिन गुलजार ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई का रूख किया और वर्ली में एक गैरेज में कार मैकैनिक का काम करने लगे। गैरेज के पास ही एक बुकस्टोर वाला था जो आठ आने के किराए पर दो किताबें पढ़ने को देता था। गुलजार को वहीं पढ़ने का चस्का सा लग गया था।
 
एक दिन फिल्मकार विमल रॉय की कार खराब हो गई। संयोग से विमल रॉय उसी गैरेज पर पहुंचे गए जहां गुलजार काम किया करते थे। विमल रॉय ने गैरेज पर गुलजार और उनकी किताबों को देखा। पूछा कौन पढ़ता है यह सब? गुलजार ने कहा, मैं! विमल रॉय ने गुलजार को अपना पता देते हुए अगले दिन मिलने को बुलाया। गुलज़ार जब विमल रॉय के दफ़्तर गए तो उन्होंने कहा कि अब कभी गैरेज में मत जाना। इसके बाद वह विमल राय के सहायक बन गए।
 
गीतकार के रूप मे गुलजार ने पहला गाना 'मेरा गोरा अंग लेई ले' साल 1963 मे रिलीज विमल राय की फिल्म 'बंदिनी' के लिए लिखा। गुलजार इसके बाद कवि के रूप मे प्रोग्रेसिव रायर्टस एसोसिऐशन पी.डब्लू.ए से जुड़े गए। गुलजार ने साल 1971 मे रिलीज फिल्म 'मेरे अपने' के जरिए निर्देशन के क्षेत्र मे भी कदम रखा। इस फिल्म की सफलता के बाद गुलजार ने कोशिश, परिचय, अचानक, खूशबू, आंधी, मौसम, किनारा, किताब, नमकीन, अंगूर, इजाजत, लिबास, लेकिन, माचिस और हू तू तू जैसी कई फिल्में निदेर्शित भी की।
 
प्रारंभिक दिनों में गुलजार का झुकाव वामपंथी विचारधारा की तरफ था जो मेरे अपने और आंधी जैसी उनकी शुरुआती फिल्मों में दिखाई देता है। आंधी में भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की परोक्ष आलोचना की गई थी। हालांकि इस फिल्म पर कुछ समय के लिए पाबंदी भी लगा दी गई थी।
 
गुलजार साहित्यिक कहानियों और विचारों को फिल्मों में ढ़ालने की कला में भी सिद्धहस्त हैं। उनकी फिल्म अंगूर शेक्सपीयर की कहानी कॉमेडी आफ एरर्स, फिल्म मौसम एजे क्रोनिन्स के जूडास ट्री और फिल्म परिचय हॉलीवुड की क्लॉसिक फिल्म द साउंड आफ म्यूजिक पर आधारित थी। राहुल देव बर्मन के संगीत निर्देशन में गीतकार के रूप में गुलजार की प्रतिभा निखरी और उन्होंन दर्शकों और श्रोताओं को मुसाफिर हूं यारो फिल्म परिचय. तेरे बिना जिन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं फिल्म आंधी, मेरा कुछ सामान फिल्म इजाजत, तुझसे नाराज नहीं जिन्दगी फिल्म मासूम जैसे साहित्यिक अंदाज वाले गीत दिए। 
 
संजीव कुमार, जीतेन्द्र और जया भादुड़ी के अभिनय को निखारने में गुलजार ने अहम भूमिका निभाई थी। निर्देशन के अलावा गुलजार ने कई फिल्मों की पटकथा और संवाद भी लिखे। इसके अलावा गुलजार ने साल 1977 में किताब और किनारा फिल्मों का निर्माण भी किया। गुलजार को अपने गीतों के लिए अब तक 11 बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। 
 
गुलजार को तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। गुलजार के चमकदार करियर में एक गौरवपूर्ण नया अध्याय तब जुड़ गया जब साल 2009 में फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर में उनके गीत 'जय हो' को ऑस्कर अवार्ड से सम्मानित किया गया। भारतीय सिनेमा में गुलजार के योगदान को देखते हुए वर्ष 2004 में उन्हें देश के तीसरे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से अलंकृत किया गया।
 
उर्दू भाषा में गुलजार की लघु कहानी संग्रह धुआं को 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है। गुलजार ने काव्य की एक नई शैली विकसित की है, जिसे त्रिवेणी कहा जाता है। भारतीय सिनेमा जगत में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए गुलजार को फिल्म इंडस्ट्री के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

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