Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(चतुर्थी तिथि)
  • तिथि- पौष कृष्ण चतुर्थी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30, 12:20 से 3:30, 5:00 से 6:30 तक
  • व्रत/मुहूर्त-देवदर्शन
  • राहुकाल-दोप. 1:30 से 3:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

दिलीप कुमार से बने एआर रहमान, सिंगर ने क्यों अपनाया मुस्लिम धर्म?

6 जनवरी 1967 को तमिलनाडु में जन्में रहमान का रूझान बचपन के दिनों से ही संगीत की ओर था

हमें फॉलो करें दिलीप कुमार से बने एआर रहमान, सिंगर ने क्यों अपनाया मुस्लिम धर्म?

WD Entertainment Desk

, शनिवार, 6 जनवरी 2024 (17:17 IST)
  • रहमान के पिता मलयालम फिल्मों में संगीत दिया करते थे
  • रहमान ने म्यूजिक बैंड के जरिए करियर की शुरुआत की 
  • उनका पूरा नाम अल्लाह रखा रहमान है
AR Rahman Birthday: भारतीय सिनेमा संगीत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलाने वाले एआर रहमान 57 वर्ष के हो गए हैं। 6 जनवरी 1967 को तमिलनाडु में जन्में रहमान का रूझान बचपन के दिनों से ही संगीत की ओर था। उनके पिता आर.के. शेखर मलयालम फिल्मों के लिए संगीत दिया करते थे। रहमान भी अपने पिता की तरह ही संगीतकार बनना चाहते थे। 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

A post shared by ARR (@arrahman)

संगीत के प्रति रहमान के बढ़ते रूझान को देख उनके पिता ने उन्हे इस राह पर चलने के लिए प्रेरित किया और उन्हें संगीत की शिक्षा देने लगे। सिंथेसाइजर और हारमोनियम पर संगीत का रियाज करने वाले रहमान की 'कीबोर्ड' पर उंगलियां कमाल करती तो सुनने वाले मुग्ध रह जाते कि इतना छोटा बच्चा इतनी मधुर धुन कैसे बना सकता है। उस समय रहमान की उम्र महज छह वर्ष की थी।
एक बार रहमान के घर में उनके पिता के एक मित्र आए और जब उन्होंने रहमान की बनाई धुन सुनी तो सहसा उन्हे विश्वास नही हुआ उनकी परीक्षा लेने के लिए उन्होंने हारमोनियम के ऊपर कपडा रख दिया और रहमान से धुन निकालने के लिए कहा। हारमोनियम पर रखे कपड़े के बावजूद रहमान की उंगलियां बोर्ड पर थिरक उठी और उस धुन को सुन वह चकित रह गये। कुछ दिनो के बाद रहमान ने एक बैंड की नींव रखी जिसका नाम था 'नेमेसीस एवेन्यू।' वह इस बैंड में सिंथेसाइजर, पियानो, गिटार, हारमोनियम बजाते थे। 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

A post shared by ARR (@arrahman)

अपने संगीत के शुरूआती दौर से ही रहमान को सिंथेसाइजर ज्यादा अच्छा लगता था। उनका मानना था कि वह एक ऐसा वाद्य यंत्र है जिसमें संगीत और तकनीक का बेजोड मेल देखने को मिलता है। रहमान अभी संगीत सीख हीं रहे थे कि उनके सर से पिता का साया उठ गया लेकिन रहमान ने हिम्मत नही हारी और संगीत का रियाज सीखना जारी रखा।
 
वर्ष 1989 की बात है रहमान की छोटी बहन काफी बीमार पड गई और सभी चिकित्सको ने यहां तक कह दिया कि उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं है। रहमान ने अपनी छोटी बहन के जीवन की खातिर मंदिर-मस्जिदों में दुआएं मांगी जल्द हीं उनकी दुआ रंग लाई और उनकी बहन चमत्कारिक रूप से एकदम स्वस्थ हो गयी। इस चमत्कार को देख रहमान ने इस्लाम कबूल कर लिया और इसके बाद उनका नाम ए.एस. दिलीप कुमार से अल्लाह रखा रहमान यानि एआर रहमान हो गया।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

A post shared by ARR (@arrahman)

इस बीच रहमान ने मास्टर धनराज से संगीत की शिक्षा हासिल की और दक्षिण फिल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार इल्लय राजा के समूह के लिए 'कीबोर्ड' बजाना शुरू कर दिया उस समय रहमान की उम्र महज 11 वर्ष थी। इस दौरान रहमान ने कई बड़े एवं नामी संगीतकारों के साथ काम किया इसके बाद रहमान ने लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ म्यूजिक में स्कॉलरशिप का मौका मिला जहां से उन्होंने वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक की स्नातक की डिग्री भी हासिल की। 
स्नातक की डिग्री लेने के बाद रहमान घर आ गए और उन्होंने अपने घर में हीं एक म्यूजिक स्टूडियों खोला और उसका नाम पंचाथम रिकार्ड इन रखा। इस दौरान रहमान ने लगभग एक साल तक फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे और टीवी के लिए छोटे-मोटे संगीत देने और रेडियो जिंगल बनाने का काम करते रहे। 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

A post shared by ARR (@arrahman)

साल 1992 रहमान के सिने करियर का महत्वपूर्ण वर्ष साबित हुआ। अचानक उनकी मुलाकात फिल्म निर्देशक मणिरत्नम से हुई। मणि उन दिनो फिल्म रोजा के निर्माण में व्यस्त थे और अपनी फिल्म के लिए संगीतकार की तलाश में थे। उन्होंने रहमान को अपनी फिल्म में संगीत देने की पेशकश की। कश्मीर आतंकवाद के विषय पर आधारित इस फिल्म में रहमान ने अपने सुपरहिट संगीत से श्रोताओं का दिल जीत लिया और इसके साथ हीं वह सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये। 
 
इसके बाद रहमान ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और फिल्मों में अपने एक से बढकर एक एवं बेमिसाल संगीत से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद रहमान ने तिरूड़ा तिरूड़ा, बांबे, जैंटलमैन, इंडियन और कादलन आदि फिल्मों में भी सुपरहिट संगीत दिया और संगीत जगत में अपनी अलग पहचान बना ली। रहमान ने कर्नाटक संगीत, शास्त्रीय संगीत और आधुनिक संगीत का मिश्रणकर श्रोताओं को एक अलग संगीत देने का प्रयास किया। 
 
रहमान निर्माता-निर्देशको की पहली पसंद बन गए और वे रहमान को अपनी फिल्म में संगीत देने के लिए पेशकश करने लगे। वर्ष 1997 में भारतीय स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ पर उन्होंने स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ मिलकर मां तुझे सलाम का निर्माण किया। इसके बाद वर्ष 1999 में रहमान ने कॉरियोग्राफर शोभना, प्रभुदेवा और उनके डांसिंग समूह के साथ मिलकर माइकल जैक्सन के माइकल जैक्सन एंड फ्रैंड्स टूर के लिए म्यूनिख, जर्मनी में कार्यक्रम पेश किया। इसके बाद रहमान को म्यूजिक कान्सर्ट में भाग लेने के लिये विदेशो से भी प्रस्ताव आने लगे। उन्होंने पाश्चात्य संगीत के साथ साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत के मिश्रण को लोगों के सामने रखना शुरू कर दिया था।
 
एआर रहमान को बतौर संगीतकार अब तक दस बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इन सबके साथ ही अपने उत्कृष्ठ संगीत के लिये एआर रहमान को चार बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा जा चुका है। इन सबके साथ ही विश्व संगीत में महत्वपूर्ण योगदान के लिये वर्ष 2006 में उन्हें स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सम्मानित किया गया। 
 
रहमान के सिने करियर में एक नया अध्याय उस समय जुड गया जब ए आर रहमान ने फिल्म स्लमडॉग मिलिनेयर के लिए दो ऑस्कर पुरस्कार जीतकर नया इतिहास रच दिया। रहमान को 81वें एकादमी अवार्ड समारोह में इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। रहमान आज भी उसी जोशो खरोश के साथ संगीत जगत को अपने जादुई संगीत से सुशोभित कर रहे है।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

2023 में ग्लोबल बॉक्स ऑफिस पर बजा शाहरुख खान का डंका, सुपरस्टार की तीन फिल्मों ने किया इतना कलेक्शन