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पार्श्वगायक नहीं अभिनेता बनना चाहते थे मुकेश, दर्द भरे नगमों से मिली लोकप्रियता

हमें फॉलो करें पार्श्वगायक नहीं अभिनेता बनना चाहते थे मुकेश, दर्द भरे नगमों से मिली लोकप्रियता

WD Entertainment Desk

, सोमवार, 22 जुलाई 2024 (12:29 IST)
Mukesh Birth Anniversary: दर्द भरे नगमों के बेताज बादशाह मुकेश ने अपने पार्श्वगायन ने लगभग तीन दशक तक श्रोताओं को अपना दीवाना बनाया लेकिन वह अभिनेता के तौर पर अपनी पहचान बनाना चाहते थे। मुकेश चंद माथुर का जन्म 22 जुलाई 1923 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता लाला जोरावर चंद माथुर एक इंजीनियर थे और वह चाहते थे कि मुकेश उनके नक्शे कदम पर चलें। 
 
लेकिन मुकेश अपने जमाने के प्रसिद्ध गायक अभिनेता कुंदनलाल सहगल के प्रशंसक थे और उन्हीं की तरह गायक अभिनेता बनने का ख्वाब देखा करते थे। मुकेश ने दसवीं तक पढ़ाई करने के बाद स्कूल छोड़ दिया और दिल्ली लोक निर्माण विभाग में सहायक सर्वेयर की नौकरी कर ली। जहां उन्होंने सात महीने तक काम किया। इसी दौरान अपनी बहन की शादी में गीत गाते समय उनके दूर के रिश्तेदार मशहूर अभिनेता मोतीलाल ने उनकी आवाज सुनी और प्रभावित होकर वह उन्हें 1940 में मुंबई ले आए। उन्होंने मुकेश को अपने साथ रखकर पंडित जगन्नाथ प्रसाद से संगीत सिखाने का भी प्रबंध किया।
 
इसी दौरान मुकेश को एक हिन्दी फिल्म निर्दोष (1941) में अभिनेता बनने का मौका मिल गया जिसमें उन्होंने अभिनेता-गायक के रूप में संगीतकार अशोक घोष के निर्देशन में अपना पहला गीत 'दिल ही बुझा हुआ हो तो' भी गाया। हालांकि, यह फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह से नकार दी गई। इसके बाद मुकेश ने दुख-सुख, आदाब अर्ज जैसी कुछ और फिल्मों में भी काम किया लेकिन पहचान बनाने में कामयाब नहीं हो सके। 
मोतीलाल प्रसिद्ध संगीतकार अनिल विश्वास के पास मुकेश को लेकर गए और उनसे अनुरोध किया कि वह अपनी फिल्म में मुकेश से कोई गीत गवाएं। वर्ष 1945 में प्रदर्शित फिल्म 'पहली नजर' में अनिल विश्वास के संगीत निर्देशन में 'दिल जलता है तो जलने दे' गीत के बाद मुकेश कुछ हद तक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए।
 
मुकेश ने इस गीत को सहगल की शैली में ही गाया था। सहगल ने जब यह गीत सुना तो उन्होंने कहा था 'अजीब बात है, मुझे याद नहीं आता कि मैंने कभी यह गीत गाया है'। इसी गीत को सुनने के बाद सहगल ने मुकेश को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। सहगल की गायकी के अंदाज से प्रभावित रहने के कारण अपनी शुरूआती दौर की फिल्मों में मुकेश सहगल के अंदाज मे ही गीत गाया करते थे। लेकिन वर्ष 1948 मे नौशाद के संगीत निर्देशन में फिल्म अंदाज के बाद मुकेश ने गायकी का अपना अलग अंदाज बनाया।
 
मुकेश के दिल में यह ख्वाहिश थी कि वह गायक के साथ-साथ अभिनेता के रूप मे भी अपनी पहचान बनाए। बतौर अभिनेता वर्ष 1953 में प्रदर्शित माशूका और वर्ष 1956 में प्रदर्शित फिल्म अनुराग की विफलता के बाद उन्होने पुनः गाने की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया। इसके बाद वर्ष 1958 मे प्रदर्शित फिल्म यहूदी के गाने 'ये मेरा दीवानापन है' की कामयाबी के बाद मुकेश को एक बार फिर से बतौर गायक अपनी पहचान मिली। इसके बाद मुकेश ने एक से बढ़कर एक गीत गाकर श्रोताओ को भाव विभोर कर दिया।
 
मुकेश ने अपने तीन दशक के सिने करियर मे 200 से भी ज्यादा फिल्मों के लिए गीत गाए। गायक मुकेश को उनके गाए गीतो के लिए चार बार फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वर्ष 1974 मे प्रदर्शित रजनी गंधा के गाने 'कई बार यूही देखा' के लिए मुकेश राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए। 
 
मुकेश, राज कपूर की फिल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' के गाने 'चंचल निर्मल शीतल' की रिकार्डिंग पूरी करने के बाद वह अमेरीका में एक कंसर्ट में भाग लेने के लिए चले गए। जहां 27 अगस्त 1976 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनके अनन्य मित्र राज कपूर को जब उनकी मौत की खबर मिली तो उनके मुंह से बरबस निकल गया 'मुकेश के जाने से मेरी आवाज और आत्मा दोनों चली गई'।

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