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पोस्टर बॉयज़ : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

क्या हो जब बिना इजाजत लिए तीन पुरुषों के फोटो नसबंदी के पोस्टर पर छाप दिए जाए? हंगामा मच जाएगा क्योंकि आज भी भारत में और खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में नसबंदी को सीधे-सीधे मर्दानगी से जोड़ा जाता है। ऐसा ही होता है जगावर चौधरी (सनी देओल), विनय शर्मा (बॉबी देओल) और अर्जुन सिंह (श्रेयस तलपदे) के साथ। 'हमने नसबंदी करा ली है' के पोस्टर पर तीनों के फोटो छपते हैं तो उनकी जिंदगी में भूचाल आ जाता है। जगावर की बहन की सगाई टूट जाती है, विनय की पत्नी नाराज हो जाती है और अर्जुन सिंह की प्रेमिका शादी करने से इंकार कर देती है। 
 
वास्तविक घटना से प्रेरित 'पोस्टर बॉयज़' इसी नाम की मराठी फिल्म का हिंदी रिमेक है। इस कहानी पर हास्य फिल्म बनाने की भरपूर गुंजाइश थी, लेकिन इस संभावना को पूरी तरह दोहन नहीं किया गया। फिल्म का लेखन और निर्देशक का प्रस्तुतिकरण 'सब टीवी' पर प्रसारित होने वाले हास्य धारावाहिकों की तरह है। अजीब-सी हरकतें, उस पर 'फनी' सा बैकग्राउंड म्युजिक पर ठहाके लगाना सबके बस की बात नहीं है। हालांकि ये धारावाहिक बेहद लोकप्रिय हैं क्योंकि 'लो आईक्यू ह्यूमर' को भी पसंद किया जाता है और कई लोग 'रिलैक्स' होने के नाम पर इस तरह की कॉमेडी देखना पसंद भी करते हैं। 
 
तो जगावर, विनय और अर्जुन की जब जगहंसाई होती है तो वे उस आदमी की खोज करते हैं जिन्होंने पोस्टर पर उनके फोटो छाप दिए। जितनी छोटी लड़ाई वे सोच रहे थे उससे कहीं अधिक बड़ी लड़ाई उनको लड़नी पड़ती है। वे सरकार पर मुकदमा ठोंक देते हैं और स्वास्थ्य विभाग के मंत्री तथा कर्मचारी उन्हें गलत साबित करने की पूरी कोशिश करते हैं। 
 
फिल्म जैसे-जैसे अंत की ओर बढ़ती है, रूटीन हो जाती है। आंदोलन करना, सोशल मीडिया का सहारा लेकर आम आदमी को अपनी लड़ाई में शामिल करना, वीडियो और फोटो शेयर कर सरकार को नींद से जगाने वाला रास्ता कई फिल्मों में दोहराया जा चुका है और 'पोस्टर बॉयज़' के लेखकों ने बजाय कुछ नया सोचने के यही चिर-परिचित अंदाज अपनी बात को खत्म करने के लिए चुना है, लिहाजा फिल्म के अंत में कोई उतार-चढ़ाव देखने को नहीं मिलते। 
 
फिल्म का निर्देशन श्रेयस तलपदे ने किया है। उनकी सोच स्पष्ट नजर आती है कि वे सरल और सीधी फिल्म बनाना चाहते थे और वैसा ही उन्होंने प्रस्तुतिकरण रखा है। जितनी‍ निर्देशन की समझ थी, वैसा ही काम किया। कुछ अतिरिक्त करने का जोखिम नहीं उठाया। फिल्म की शुरुआत में तीनों लीड कैरेक्टर्स का एक-एक कर परिचय कराया। उनकी कुछ खासियत दिखाई। 
 
सनी और बॉबी की इमेज का ध्यान रखते हुए उनके सीन रचे गए। जैसे बॉबी देओल के मोबाइल की रिंग टोन उनकी ही हिट फिल्म 'सोल्जर' के गीत 'सोल्जर सोल्जर' पर आधारित थी। एक-दो बार तो ठीक लगती है, लेकिन जब बार-बार दोहराया जाता है तो यह बात अपनी खासियत खो देती है। सनी देओल की गुस्सैल छवि को ध्यान में रखते हुए कुछ हास्य सीन रचे गए हैं। उनके 'सेल्फी' के प्रति जुनून वाले सीन जरूर हंसाते हैं। अच्छा होता कि एक बढ़िया सा फाइट सीन भी रखा जाता ताकि सनी के फैंस की खुशी और बढ़ जाती। नसबंदी का महत्व और बेटा-बेटी एक समान वाले संदेशों के साथ फिल्म को खत्म किया गया है। 
 
फिल्म में कुछ ऐसे सीन हैं जो हंसाते हैं, खासतौर पर पहले हाफ में, लेकिन कुछ ऐसे दृश्य भी हैं जो खीज पैदा करते हैं, जैसे जब सनी देओल की बहन की सगाई टूट जाती है तो वह दूल्हे के पिता के पैरों में पगड़ी रखते हैं। अब तो कुछ नया करो यार, 50 और 60 के दशक की फिल्मों वाले सीन 2017 की फिल्म में देखना कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है। कुछ दशकों पुराने चुटकुले भी सुनने को मिलते हैं।  
 
59 वर्ष के सनी देओल ने अपने को फिट रखा है। उनका अभिनय अच्छा है, लेकिन निर्देशक अभी भी उनकी पुरानी छवि को दोहरा रहे हैं जिससे सनी को बचना चाहिए। इस फिल्म में भी 'बलवंत राय के कुत्ते', 'तारीख पे तारीख' और 'ढाई किलो का हाथ' सुनने को मिलता है। 
 
बॉबी देओल का हाथ कॉमेडी में तंग है, लेकिन उनके लिए 'सीधा-सादा' किरदार रखा गया है जिसमें वो जम गए। श्रेयस तलपदे का अभिनय ठीक-ठाक है और सनी-बॉबी के बराबर फुटेज उन्होंने अपने आपको भी दिए हैं। हीरोइनों में समीक्षा भटनागर का काम बेहतर है। सोनाली कुलकर्णी का ठीक से उपयोग नहीं किया गया। एली अवराम पर फिल्माया गीत 'कुडि़या शहर दी' बेहतर है। 
 
फिल्म को कम बजट में बनाया गया है और यह बात सिनेमाटोग्राफी, सेट, मेकअप के जरिये नजर आती है। 
 
कुल मिलाकर 'पोस्टर बॉयज़' एक औसत फिल्म है। 
 
बैनर : सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स प्रोडक्शन्स, सनी साउंड प्रा.लि.
निर्माता : सनी देओल, धर्मेन्द्र, श्रेयस तलपदे, दीप्ति तलपदे 
निर्देशक : श्रेयस तलपदे
संगीत : तनिष्क बागची
कलाकार : सनी देओल, बॉबी देओल, श्रेयस तलपदे, सोनाली कुलकर्णी, समीक्षा भटनागर
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 131 मिनट 
रेटिंग : 2/5 

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