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शुभ मंगल सावधान : फिल्म समीक्षा

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हमें फॉलो करें शुभ मंगल सावधान

समय ताम्रकर

मर्दाना कमजोरी पर हिंदी में शायद ही पहले कोई फिल्म बनी होगी। इस विषय पर फिल्म बनाना रस्सी पर चलने जैसा है। जरा सा संतुलन बिगड़ा और धड़ाम। रेखा पार की और फिल्म अश्लील हो सकती थी, लेकिन निर्देशक आरएस प्रसन्ना फिल्म 'शुभ मंगल सावधान' में सधे हुए अंदाज से चले। यह फिल्म तमिल फिल्म 'कल्याणा सामयाल साधम' से प्रेरित है। कहानी का मूल प्लाट छोड़ सब कुछ बदल दिया गया है। 
 
कहानी मुदित (आयुष्मान खुराना) और सुगंधा (भूमि पेडनेकर) की है। मुदित को सुगंधा पसंद आ जाती है और वह ऑनलाइन रिश्ता भिजवाता है। सुगंधा के दिल में भी मुदित धीरे-धीरे बस जाता है। शादी तय हो जाती है। शादी के कुछ दिन पहले घर में सुगंधा अकेली रहती है और मुदित वहां आ पहुंचता है। दोनों अपने पर काबू नहीं रख पाते हैं। इसके पहले की वे कुछ कर बैठे मुदित अपने अंदर 'मर्दाना कमजोरी' पाता है। इसके बाद यह बात दोनों पक्षों में फैल जाती है और हास्यास्पद परिस्थितियां निर्मित होती हैं। 
 
इस गंभीर मुद्दे को फिल्म में हल्के-फुल्के अंदाज से दिखाया गया है। फिल्म में कई दृश्य ऐसे हैं जिन पर आपकी हंसी नहीं रूकती। खासतौर पर जब सुगंधा की मां अलीबाबा और गुफा वाला किस्सा सुनाती है, जब मुदित की कमजोरी के बारे में उसके और सुगंधा के पिता को पता चलता है, सुगंधा के पिता और उनके बड़े भाई की नोकझोंक, मुदित का फिर से बारात लाना वाले सीन उम्दा बन पड़े हैं। फिल्म का स्क्रीनप्ले हितेश केवल्य ने लिखा है और उन्होंने इस बात का ध्यान रखा है कि दर्शकों का भरपूर मनोरंजन हो।
 
कहानी की सबसे महत्पूर्ण बात यह है कि सुगंधा को जब पता चल जाता है कि मुदित एक कमजोरी से जूझ रहा है तब वह कभी की मुदित से रिश्ता तोड़ने की बात नहीं सोचती। लगातार उस पर उसके पिता दबाव भी डालते हैं, लेकिन वह नहीं मानती। वह सेक्स के बजाय प्यार को अहमियत देती है और इससे प्रेम कहानी पॉवरफुल बनती है। 
 
फिल्म दर्शकों को बांध कर रखती है, लेकिन कुछ दरारें समय-समय पर उभरती है। जैसे, मुदित अपने इलाज के बारे में कभी गंभीर नहीं लगता। बाबा बंगाली के पास जाने के बजाय वह डॉक्टर के पास क्यों नहीं जाता? एक बार सुगंधा के पिता उसे डॉक्टर के पास ले जाते हैं, लेकिन वे जानवरों के डॉक्टरों के पास क्यों ले जाते हैं यह समझ से परे है। 
 
फिल्म में एक दृश्य है कि शादी के ठीक पहले मुदित और सुगंधा एक कमरे में बंद हो जाते हैं। बाहर सारे लोग इस बात पर शर्त लगाते हैं कि कुछ होगा या नहीं। थोड़ी देर बाद वे बाहर आते हैं। मुदित कहता है हो गया और सुगंधा कहती है नहीं हुआ। असल में हुआ क्या, यह बताया नहीं गया। ठीक है, इस सीन से हास्य पैदा किया गया है, लेकिन दर्शक सोचते ही रह जाते हैं कि आखिर हुआ क्या? इसी तरह मुदित और उसकी एक्स गर्लफ्रेंड वाला किस्सा भी आधा-अधूरा सा है। इन कमियों के बावजूद फिल्म में थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद उम्दा सीन आते रहते हैं, लिहाजा कमियों पर ध्यान कम जाता है। 
 
निर्देशक के रूप में आरएस प्रसन्ना का काम अच्‍छा है। एक मध्मवर्गीय परिवार की तस्वीर उन्होंने अच्छे से पेश की है जो मॉडर्न भी होना चाहता है और थोड़ा डरता भी है। एक संवेदनशील विषय को उन्होंने अच्छे से हैंडल किया है और किरदारों को गहराई के साथ पेश किया है। 
 
आयुष्मान खुराना का अभिनय दमदार है और कुछ दृश्यों में उन्होंने अपनी चमक दिखाई है, लेकिन बाजी मार ले जाती हैं भूमि पेडनेकर। वे जब भी स्क्रीन पर आती हैं छा जाती हैं। एक तेज-तर्रार और मुदित को चाहने वाली लड़की के रोल में उन्होंने बेहतरीन अभिनय किया है। फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट का अभिनय भी शानदार है। नीरज सूद (सुगंधा के पिता), सीमा पाहवा (सुगंधा की मां), चितरंजन त्रिपाठी (मुदित के पिता), सुप्रिया शुक्ला (मुदित की मां) और ब्रजेन्द्र काला (सुगंधा के ताऊ) का अभिनय शानदार है। 
 
हल्की-फुल्की फिल्म पसंद करने वालों को 'शुभ मंगल सावधान' पसंद आ सकती है। 
 
बैनर : इरोस इंटरनेशनल, ए कलर यलो प्रोडक्शन 
निर्माता : आनंद एल. राय, कृषिका लुल्ला 
निर्देशक : आर.एस. प्रसन्ना 
संगीत : तनिष्क-वायु 
कलाकार : आयुष्मान खुराना, भूमि पेडनेकर, ब्रजेन्द्र काला, सीमा पाहवा, नीरज सूद, चितरंजन त्रिपाठी, सुप्रिया शुक्ला 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 1 घंटा 45 मिनट 25 सेकंड 
रेटिंग : 3/5 
 
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