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Prithviraj Kapoor ने अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के दिलों में किया राज

हमें फॉलो करें Prithviraj Kapoor ने अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के दिलों में किया राज

WD Entertainment Desk

, रविवार, 3 नवंबर 2024 (12:06 IST)
बॉलीवुड में पृथ्वीराज कपूर को ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने अपनी कड़क आवाज रौबदार भाव भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर लगभग चार दशकों तक सिने प्रेमियों के दिलों पर राज किया। 3 नवंबर 1906 को पश्चिमी पंजाब के लायलपुर अब पाकिस्तान में शहर में जन्में पृथ्वीराज कपूर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लयालपुर और लाहौर में पूरी की। पृथ्वीराज कपूर के पिता दीवान बशेस्वरनाथ कपूर पुलिस उपनिरीक्षक थे। बाद में उनके पिता का तबादला पेशावर में हो गया। पृथ्वीराज ने आगे की पढ़ाई पेशावर के एडवर्ड कॉलेज से की।
 
पृथ्वीराज कपूर ने कानून की पढाई बीच मे हीं छोड़ दी क्योंकि उस समय तक उनका रूझान थियेटर की ओर हो गया था। महज 18 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह हो गया। साल 1928 में अपनी चाची से आर्थिक सहायता लेकर पृथ्वीराज कपूर अपने सपनों के शहर मुंबई पहुंचे। पृथ्वीराज कपूर ने अपने करियर की शुरूआत 1928 में मुंबई में इंपीरियल फिल्म कंपनी से जुड़कर की। साल 1930 में बीपी मिश्रा की फिल्म 'सिनेमा गर्ल' में उन्होंने अभिनय किया। कुछ समय पश्चात एंडरसन की थियेटर कंपनी के नाटक शेक्सपियर में भी उन्होंने अभिनय किया। 
 
लगभग दो वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री मे संघर्ष करने के बाद पृथ्वीराज कपूर को साल 1931 में रिलीज पहली सवाक फिल्म आलमआरा में सहायक अभिनेता के रूप मे काम करने का मौका मिला। साल 1933 में पृथ्वीराज कपूर कोलकाता के मशहूर न्यू थियेटर के साथ जुड़े। साल 1933 मे प्रदर्शित फिल्म 'राजरानी' और वर्ष 1934 में देवकी बोस की फिल्म 'सीता' की कामयाबी के बाद बतौर अभिनेता पृथ्वीराज कपूर अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। 
 
साल 1937 में रिलीज फिल्म विद्यापति में पृथ्वीराज कपूर के अभिनय को दर्शकों ने काफी सराहा। साल 1938 में चंदूलाल शाह के रंजीत मूवीटोन के लिये पृथ्वीराज कपूर अनुबंधित किये गये। रंजीत मूवी के बैनर तले वर्ष 1940 में रिलीज फिल्म 'पागल' में पृथ्वीराज कपूर ने अपने सिने करियर मे पहली बार एंटी हीरो की भूमिका निभाई। वर्ष 1941 में सोहराब मोदी की फिल्म 'सिकंदर'  की सफलता के बाद वह कामयाबी के शिखर पर जा पहुंचे।
 
वर्ष 1944 में पृथ्वीराज कपूर ने अपनी खुद की थियेटर कंपनी 'पृथ्वी थियेटर' शुरू की। पृथ्वी थियेटर मे उन्होंने आधुनिक और शहरी विचारधारा का इस्तेमाल किया जो उस समय के फारसी और परंपरागत थियेटरों से काफी अलग था। धीरे-धीरे दर्शको का ध्यान थियेटर की ओर से हट गया क्योंकि उन दिनों दर्शकों पर रूपहले पर्दे का क्रेज ज्यादा ही हावी था। सोलह वर्ष में पृथ्वी थियेटर के 2662 शो हुए जिनमें पृथ्वीराज ने लगभग सभी में मुख्य किरदार निभाया। 
 
पृथ्वी थियेटर के बहुचर्चित नाटकों में दीवार, पठान गद्दार और पैसा शामिल है। पृथ्वीराज कपूर ने अपने थियेटर के जरिए कई छुपी प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का मौका दिया। जिनमें रामानंद सागर और शंकर जयकिशन जैसे बड़े नाम शामिल है। साठ का दशक आते आते पृथ्वीराज कपूर ने फिल्मों में काम करना काफी कम कर दिया। वर्ष 1960 में प्रदर्शित के. आसिफ की मुगले आजम मे उनके सामने अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे। इसके बावजूद पृथ्वीराज कपूर अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे।
 
वर्ष 1965 में रिलीज फिल्म 'आसमान महल' में पृथ्वीराज कपूर ने अपने सिने करियर की एक और न भूलने वाली भूमिका निभायी। वर्ष 1968 में रिलीज फिल्म तीन बहुरानियां मे पृथ्वीराज कपूर ने परिवार के मुखिया की भूमिका निभायी जो अपनी बहुरानियों को सच्चाई की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है। इसके साथ ही अपने पौत्र रणधीर कपूर की फिल्म 'कल आज और कल' में भी पृथ्वीराज कपूर ने यादगार भूमिका निभायी। वर्ष 1969 में पृथ्वीराज कपूर ने एक पंजाबी फिल्म 'नानक नाम जहां है' में भी अभिनय किया।
 
फिल्म की सफलता ने लगभग गुमनामी में आ चुके पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री को एक नया जीवन दिया। फिल्म इंडस्ट्री में उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें 1969 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। फिल्म इंडस्ट्री के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के से भी उन्हें सम्मानित किया गया। इस महान अभिनेता ने 29 मई 1972 को दुनिया को अलविदा कह दिया।

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