Shekhar Kapur: शेखर कपूर द्वारा निर्देशित 'मासूम' एक सिनेमाई रत्न है, जो बॉक्स ऑफिस नंबरों से आगे है। साल 1983 में रिलीज़ हुई यह फिल्म प्यार, माफी और परिवार की एक कालातीत कहानी है। इसका प्रभाव पीढ़ी दर पीढ़ी के दर्शकों के लिए एक भावनात्मक अनुभव लेकर आता है।
इससे पहले शेखर ने अपनी भावनाओं को इंस्टाग्राम पर व्यक्त करते हुए लिखा, हिंदी में होम के लिए शब्द घर है.. हाउस के लिए मकान है.. और मैं संपत्ति के लिए एक हिंदी शब्द खोजने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा हूं, एक ऐसा शब्द जो भावनाओं के एक छोटे से शब्द को भी धारण करता है?
उन्होंने लिखा, तो आप अपने घर को कैसे महत्व देते हैं? भावनाओं, यादों, जिंदगियों, पैदा हुए बच्चों के रूप में या उत्सवों की, हँसी की और आँसुओं की स्मृति में, एक घर या संपत्ति या रियल स्टेट के रूप में? फिर एक घर कब मकान बन गया, एक घर संपत्ति बन गया, एक संपत्ति रीयल स्टेट.. भावनात्मक मूल्य कब आर्थिक मूल्य में बदल गया?
शेखर कपूर ने लिखा, हमारी दुनिया मूल्य.. आर्थिक मूल्य से ग्रस्त है। ओपेनहाइमर वर्सेज बार्बी.. जो बॉक्स ऑफिस पर बेहतर है.. फिल्म की क्वालिटी बाद में आती है। क्या गद्दार 2 या पठान या बाहुबली बॉक्स ऑफिस पर बड़ी है? मुझे मासूम के बॉक्स ऑफिस या इसके वित्तीय मूल्य का कोई अंदाजा नहीं है.. सिवाय इसके कि मासूम, फिल्म का मूल्य इसमें है कि पीढ़ियां दर पीढ़ियां इसको देखती हैं और प्रभावित होती हैं।
शेखर कपूर ने लिखा, मैं मासूम को इसके भावनात्मक मूल्य से मापता हूं। यह भावनाओं का बैंक है, जिसे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी महसूस करते हैं..क्या हम एक समाज के रूप में बैंक में हमेशा पैसे के बजाय दिल से मूल्य का आकलन करना भूल गए हैं।
शेखर कपूर को हाल ही में आईजीएफ के यूके-इंडिया अवार्ड्स में प्रतिष्ठित 'लाइफटाइम कॉन्ट्रिब्यूशन टू यूके-इंडिया रिलेशन्स' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अपनी उपलब्धियों के अलावा उन्हें कई प्रशंसाएँ भी मिलीं, जिनमें उनकी हालिया फिल्म 'व्हाट्स लव गॉट टू डू विद इट' के लिए 'बेस्ट डायरेक्टर अवॉर्ड' भी शामिल है।
Edited By : Ankit Piplodiya