मोगैम्बो खुश हुआ, बॉलीवुड इतिहास का एक बहुत ही प्रसिद्ध संवाद है। यह फिल्म 'मि. इंडिया' का है जो 1987 में रिलीज हुई थी। बरसों बीत गए, लेकिन यह डायलॉग आज भी लोगों की जुबां पर है। अत्यंत साधारण सा संवाद है। बोलचाल की भाषा जैसा, लेकिन जिस तरीके से इसे अमरीश पुरी ने फिल्म में बार-बार बोला, यह लोकप्रिय हो गया। ध्यान देने की बात यह है कि फिल्म में अमरीश पुरी ने खलनायक की भूमिका अदा की थी और खलनायक का संवाद हीरो के संवादों पर भारी पड़ा।
शेखर कपूर द्वारा निर्देशित इस फिल्म में हीरो के रोल में अनिल कपूर हैं और हीरोइन थीं श्रीदेवी। फिल्म के निर्माता हैं बोनी कपूर। बोनी ने अपने भाई अनिल के करियर को रफ्तार देने के लिए इस फिल्म का निर्माण किया था। उस दौर में श्रीदेवी नंबर वन एक्ट्रेस थीं।
बोनी इस फिल्म में श्रीदेवी को ही अनिल की हीरोइन बनाना चाहते थे, ताकि श्रीदेवी को देखने दर्शक सिनेमाघर आएं और इसी बहाने छोटे भाई की गाड़ी भी चल निकले।
श्रीदेवी उस दौर की सबसे महंगी नायिका थीं। वे आठ से साढ़े आठ लाख प्रति फिल्म लेती थीं। बोनी ने उन्हें दस लाख से भी ज्यादा रुपये देकर साइन किया। खुद श्रीदेवी हैरत में पड़ गई थीं।
फिल्म में विलेन का किरदार भी दमदार था। इस रोल के लिए अनुपम खेर को चुना गया। उनका स्क्रीन टेस्ट हुआ। फिल्म की टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची कि अनुपम विलेन के रूप डरा नहीं पा रहे हैं बल्कि फनी लग रहे हैं।
अनुपम की जगह अमरीश पुरी को लिया गया। शेखर कपूर को वे 'परफेक्ट' लगे। अमरीश ने मोगैम्बो को इस तरह से निभाया कि दर्शक फिल्म देखते समय उनसे डरते रहे। अमरीश पुरी को भी फीस के रूप में दस लाख रुपये मिले। उस दौर में किसी विलेन को इतनी बड़ी रकम पहले कभी नहीं मिली थी।
फिल्म रिलीज हुई। पसंद की गई। मि. इंडिया के बराबर मोगैम्बो को भी याद किया गया और इसके पीछे अमरीश पुरी का यादगार अभिनय रहा।