आयुष्मान खुराना अभिनीत फिल्म 'ड्रीम गर्ल' का निर्देशन राज शांडिल्य ने किया है जो कि कपिल शर्मा के लिए कई शो लिख चुके हैं। कपिल की शो की सफलता का आंकलन करते समय राज ने संभवत: इस बात पर भी विचार किया होगा कि इस शो में पुरुष, महिला पात्रों में नजर आते हैं और यह बात दर्शकों को बेहद अच्छी लगती है।
इसी बात को उन्होंने अपनी फिल्म 'ड्रीम गर्ल' में आगे बढ़ाया है। इस फिल्म का हीरो, कॉल सेंटर में लड़की की आवाज में 'प्यार-मोहब्बत' भरी बातें पुरुषों से करता है।
वैसे राज शांडिल्य का कहना है कि यह आइडिया उन्हें अपने दोस्त से मिला था जो फोन पर एक लड़की से बात करता था। बाद में उसे पता चला कि वह लड़का है।
करमवीर सिंह (आयुष्मान खुराना) बचपन से लड़कियों की आवाज में बात करने में माहिर है। इसलिए नाटक में भी उसे सीता का रोल मिलता है।
युवा होने पर बेरोजगार करमवीर एक कॉल सेंटर में नौकरी कर लेता हैं जहां वह आवाज बदल पूजा बन जाता है और फोन कॉल्स पर पुरुषों से मीठी-मीठी बातें करता है।
इसी बीच करम को माही (नुसरत भरूचा) से प्यार भी हो जाता है, लेकिन उसे करम यह नहीं बताता कि वह क्या करता है। उसे लगता है कि उसकी यह बात सामने आ जाएगी तो माही उसे ठुकरा देगी।
पूजा की आवाज के सैकड़ों लोग दीवाने हो जाते हैं। उससे मोहब्बत करने लगते हैं और कुछ तो शादी के लिए उतावले हो जाते हैं। करम की मुसीबत तब और बढ़ जाती है जब उसके आस-पास के ही लोग पूजा पर मर-मिटने लगते हैं।
पूजा बने करम को यह बात भी समझ आती है कि इस दुनिया में सोशल मीडिया पर हजारों दोस्त होने के बावजूद भी लोग वास्तव में कितने अकेले हैं।
राज शांडिल्य और निर्माण डी. सिंह द्वारा लिखी इस फिल्म में कॉमेडी की भरपूर गुंजाइश थी क्योंकि यह आइडिया अनोखा है, लेकिन इस आइडिए का पूरी तरह दोहन नहीं हो सका।
फिल्म की शुरुआत तेज और अच्छी है। करम का पूजा बनने तक सफर अच्छा लगता है, करम और उसके पिता (अन्नू कपूर) वाला ट्रेक बेहतरीन है। इसके बाद उम्मीद जागती है कि यह फिल्म और हंसाएगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता।
फिल्म देखते समय महसूस होने लगता है कि लेखकों के पास अब खजाना खाली होने लगा है। अब उनके पास देने को कुछ नहीं है। वे अपने यूनिक आइडिए को 'वन लाइनर' से खींच रहे हैं, इससे फिल्म में दोहराव आने लगता है और फिल्म कई जगह लड़खड़ाती है।
करम की यह बात समझना मुश्किल है कि वह अपनी मंगेतर से यह बात क्यों छिपाता है कि वह कॉल सेंटर पर काम करता है। माही उसके साथ सगाई कर लेती है, यह जाने बिना कि करम काम क्या करता है? कुल मिलाकर करम-माही की लव स्टोरी को फिल्म में किसी तरह निपटाया गया है।
विजय राज की शायरी वाले सीन भी खास प्रभाव नहीं छोड़ते। इसी तरह करम के बॉस को 'विलेन' की तरह दर्शाने के पीछे भी कोई खास तर्क नहीं नजर आता।
फिल्म में सकारात्मक पहलू भी हैं। एक तो फिल्म की कहानी का आइडिया ही जोरदार है और दर्शक इसी बात पर फिल्म को पसंद करने लगते हैं कि लड़की की आवाज में हीरो बात कर पुरुषों को रिझा रहा है।
कुछ सीन बेहतरीन भी हैं जिन पर आप जोरदार ठहाके लगाते हैं, जैसे करम के पिता का मुस्लिम बन जाना, करम और उसके पिता के बीच के संवाद, करम के पिता का पूजा से मिलने जाना, करम और माही के दादी के बीच के दृश्य।
राज शांडिल्य का निर्देशन औसत से बेहतर है। उन्हें कलाकारों का अच्छा साथ मिला इसलिए उन्होंने एक ठीक-ठाक फिल्म बना डाली। अच्छी बात यह रही कि उन्होंने फिल्म को फूहड़ नहीं होने दिया।
आयुष्मान खुराना लगातार ऐसी फिल्म कर रहे हैं जो लीक से हटकर हैं। ड्रीम गर्ल में भी वे स्क्रिप्ट से ऊंचे उठ कर अभिनय करते नजर आए और उन्होंने काफी हद तक फिल्म को बचा लिया। उनकी कॉमिक टाइमिंग और एक्सप्रेशन लाजवाब रहे।
रंगीले बाप के रूप में अन्नू कपूर ने भी दर्शकों को जम कर हंसाया है। नुसरत भरुचा के पास करने को ज्यादा कुछ नहीं था और उनकी एक्टिंग ठीक रही।
विजय राज ने 'बोरिंग शायरी' में भी अपने अभिनय से जान फूंकने की कोशिश की। राजेश शर्मा का रोल ठीक से लिखा नहीं गया। फिल्म में गाने की जगह नहीं बनती है, फिर भी रखे गए हैं।
'ड्रीम गर्ल' में अनोखे आइडिए का पूरी तरह फायदा नहीं उठाया गया है, बावजूद इसके कुछ नवीनता के कारण यह फिल्म 'वन टाइम वॉच' है।
बैनर : बालाजी टेलीफिल्म्स लि.
निर्माता : एकता कपूर, शोभा कपूर
निर्देशक : राज शांडिल्य
संगीत : मीत ब्रदर्स
कलाकार : आयुष्मान खुराना, नुसरत भरूचा, अन्नू कपूर, मनजोत सिंह, विजय राज
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 12 मिनट 29 सेकंड
रेटिंग : 2.5/5