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मिर्जिया : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा अपनी फिल्मों में कहानी को बेहतर तरीके से कहने के लिए जाने जाते हैं। 'अक्स', 'रंग दे बसंती' और 'भाग मिल्खा भाग' जैसी फिल्में इस बात का सबूत हैं। मेहरा की फिल्मों की खासियत मजबूत कहानी होती है। अपनी ताजा फिल्म 'मिर्जिया' में ओमप्रकाश मेहरा ने तकनीक पर खासा जोर दिया है। फिल्म को भव्य और दर्शनीय तो उन्होंने बना दिया है, लेकिन कहानी की कमजोरी फिल्म को ले डूबी है। मजबूत कंटेंट के अभाव में सिर्फ विजुअल ट्रीट के बूते पर कब तक दर्शकों को बांधा जा सकता था। 
 
मिर्जा-साहिबां की लोककथा से प्रेरित कहानी 'मिर्जिया' में दिखाई गई है। फिल्म में दो कहानी समानांतर चलती हैं। एक कहानी वर्षों पुरानी है जिसमें दो प्रेमियों के प्रेम के खिलाफ जमाना है। दूसरी आज के दौर में सेट है और यह आदिल-सूची की कहानी है। हालात आज भी वही है। एक बार फिर दुनिया प्रेमियों को मिलने नहीं देती। दो कहानियों को दिखाने का केवल यही तुक हो सकता है कि प्यार के खिलाफ दुनिया वर्षों पूर्व भी थी और अब भी है। 
 
राकेश ओमप्रकाश मेहरा 'रंग दे बसंती' में इस तरह का प्रयोग कर चुके हैं जब उन्होंने अतीत और वर्तमान की कहानियों के तार आपस में जोड़े थे, लेकिन 'मिर्जिया' में यह प्रयोग बुरी तरह असफल रहा है। इन दोनों कहानियों को दिखाने का कोई ठोस उद्देश्य नहीं है। पुरानी कहानी को बहुत ही अच्छी तरह शूट किया गया है। लद्दाख की वादियों में बिना किसी संवाद के इसे फिल्माया गया है। लेकिन इसका कोई ओर-छोर नहीं है। इसमें सिर्फ तकनीकी बाजीगरी है। 
दूसरी कहानी राजस्थान के रेगिस्तान में फिल्माई गई है। जिसमें दिखाया गया है कि आदिल और सूची बचपन से एक-दूसरे को चाहते हैं। उनका अलगाव होता है और वर्षों बाद वे मिलते हैं। सूची की शादी होने वाली है और अचानक आदिल सामने आ जाता है। इस कहानी में प्रेमियों के मिलन और बिछुड़ने को गीत-संगीत के जरिये कुछ उभारने की कोशिश की गई है, लेकिन ये बातें दर्शकों के दिल को जरा नहीं छूती। सब कुछ नकली सा लगता है। 
 
फिल्म की स्क्रिप्ट गुलजार ने लिखी है। गुलजार ने गीतों के जरिये कहानी को आगे बढ़ाया है। ना‍यक-नायिका के मनोदशा का वर्णन गीतों के जरिये पता चलता है। पूरी फिल्म काव्यात्मक तरीके से चलती है और पृष्ठभूमि में लगातार 'होता है, इश्क में अक्सर ऐसा होता है, चोट कहीं लगती है जाकर, जख्म कहीं पर होता है' जैसी बेहतरीन लाइनें सुनने को मिलती हैं। लेकिन फिल्म देखने के बाद महसूस होता है कि स्क्रिप्ट राइटर और निर्देशक के दृष्टिकोण का तालमेल नहीं हो पाया जिसका सीधा असर फिल्म पर पड़ा है।
 
निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने फिल्म को भव्य बनाया है। कभी लोहार को तो कभी लोक कलाकारों को सूत्रधार बनाते हुए उन्होंने अपनी बात कही है। मुश्किल बात यह थी उनके लिए,  कि कहने को बात छोटी सी थी उनके पास और वक्त बहुत ज्यादा। गीत-संगीत, आंखों को सुकून देने वाले लोकेशन, भव्यता से सजा कर उन्होंने कहानी पेश की है, लेकिन पूरे समय तक वे दर्शकों को बांध कर नहीं रख पाए। उनका दृश्यों को सुंदर बनाने पर ज्यादा जोर रहा है भले ही वे कहानी में फिट बैठते हों या नहीं। साथ ही दोनों कहानी के बीच वे कोई तालमेल नहीं बना पाए जिससे अतीत वाली कहानी निरर्थक लगती है। 
 
गुलजार के गीत और शंकर-एहसान-लॉय का संगीत फिल्म का प्लस पाइंट है। पॉवेल डिल्लस की सिनेमाटोग्राफी लाजवाब है। राजस्थान और लद्दाख को उन्होंने इतनी सुंदरता के साथ पेश किया है कि स्क्रीन से नजर हटाना मुश्किल है। 
 
'मिर्जिया' से अनिल कपूर के बेटे हर्षवर्धन कपूर ने अपने अभिनय के सफर की शुरुआत की है। उन्हें ज्यादा अवसर तो नहीं मिले हैं, लेकिन एक अच्छे अभिनेता बनने के गुण उनमें नजर आते हैं। सैयामी खेर का अभिनय सीन दर सीन अच्छा-बुरा होता रहा है। उन्हें अपने अभिनय पर काफी मेहनत की जरूरत है।
 
मिर्जिया से कई प्रतिभाशाली लोग जुड़े हुए हैं, लेकिन परिणाम अपेक्षा से नीचे रहा है।
 
बैनर : सिनेस्तान फिल्म कम्पनी प्रा.लि., राकेश ओमप्रकाश मेहरा पिक्चर्स
निर्माता : पीएस भारती मेहरा, रोहित खट्टर, राजीव टंडन, राकेश ओमप्रकाश मेहरा 
निर्देशक : राकेश ओमप्रकाश मेहरा 
संगीत : शंकर-एहसान-लॉय 
कलाकार : हर्षवर्धन कपूर, सैयामी खेर, ओम पुरी 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 9 मिनट 45 सेकंड 
रेटिंग : 2/5  

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