Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

गुंजन सक्सेना - द कारगिल गर्ल : ‍फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें गुंजन सक्सेना - द कारगिल गर्ल : ‍फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

, शुक्रवार, 14 अगस्त 2020 (16:00 IST)
गुंजन सक्सेना - द कारगिल गर्ल की शुरुआत में ही बता दिया गया है यह फिल्म गुंजन सक्सेना के जीवन से प्रेरित है। मतलब साफ है क‍ि सिनेमैटिक लिबर्टी के नाम पर कुछ काल्पनिक प्रसंगों को भी संभवत: जोड़ा गया है। इससे फिल्म देखते समय मन में हमेशा संदेह रहता है कि हम जो स्क्रीन पर देख रहे हैं वो सच है या फिर निर्देशक-लेखक की कल्पना। हालांकि फिल्म से गुंजन सक्सेना जुड़ी रही और शायद ज्यादातर भाग इस कारण वास्तविक भी हो। 
 
फिल्मकार ने चतुराईपूर्वक फिल्म को तीन भागों में बांट दिया है। पहले भाग में दिखाया गया है कि किस तरह से बालिका गुंजन के मन में पॉयलट बनने इच्छा जागती है। 
 
प्लेन में भाई के साथ उसका इस बात पर विवाद होता है कि खिड़की खुली रखी जाए, लेकिन भाई नहीं मानता तो एअर होस्टेस गुंजन को पॉयलट के कैबिन में ले जाती है और वहां से जो नजारा गुंजन देखती है तो वह ठान लेती है कि बड़े होकर हवाई जहाज उड़ाना है। 
 
मां और भाई खिलाफ है, लेकिन पिता का फुल सपोर्ट उसे मिलता है। गुंजन तैयारी करती है और सिलेक्ट भी हो जाती है, लेकिन बात पैसों पर अटक जाती है। हालांकि जिस तरह से गुंजन के परिवार का रहन-सहन दिखाया गया है उससे मन यह बात नहीं मानता कि पैसों की कोई दिक्कत है। 
 
इसके बाद गुंजन इंडियन एअर फोर्स में दाखिला लेती है। फिल्म का यह हिस्सा इमोशनल है और पिता-पुत्री की खूबसूरत बांडिंग के जरिये बात को आगे बढ़ा गया है। कई खूबसूरत दृश्य हैं जहां पिता अपने बेटी के सपनों की रक्षा कर उसे सींचता है।   
 
फिल्म का दूसरा हिस्सा इंडियन एअर फोर्स की ट्रेनिंग को समर्पित है। इसमें महिलाओं के प्रति पुरुष की संकीर्ण सोच को उभारा गया है। गुंजन को ट्रेनिंग के दौरान महिला होने के नाते कई परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है। 
महिलाओं के लिए वहां शौचालय नहीं है। कोई उससे बात नहीं करता। महिला को सैल्यूट करने में पुरुषों का इगो हर्ट होता है। पार्टियों में उसे बुलाया नहीं जाता। ट्रेनिंग के दौरान उसे बार-बार जताया जाता है कि वह पुरुषों के मुकाबले कमजोर है और देश की रक्षा पुरुष बेहतर तरीके से करते हैं। 
 
यहां पर फिल्म कई बार अति नाटकीयता का शिकार हो गई है और इसी बात पर इंडियन एअर फोर्स ने भी आपत्ति ली है। 
 
फिल्म का अंतिम हिस्से में कारगिल युद्ध है जहां पर गुंजन अपनी बहादुरी भरे कारनामे दिखाती है और गर्व करने लायक योगदान देती है। यहां पर जल्दबाजी नजर आती है और बात में स्पष्टता का अभाव है। फिल्म के इस हिस्से को ज्यादा फुटेज दिए जाने थे। 
 
निर्देशक शरन शर्मा अपने लेखकों की सीमाएं जानते थे इसलिए उन्होंने फिल्म में इमोशन अच्छे पैदा किए और दर्शकों को बांध कर रखा। फिल्म को ज्यादा लंबा नहीं खींचा और अपनी बात दो घंटे के अंदर ही बयां कर दी। देशप्रेम को भुनाने की कोशिश उन्होंने नहीं की जिसकी सराहना की जा सकती है। 
 
लीड रोल जाह्नवी कपूर ने निभाया है और वे फिल्म की कमजोर कड़ी साबित हुई हैं। धड़क के मुकाबले में उनमें सुधार है, लेकिन अभी सुधार की बहुत ज्यादा जरूरत है। पूरी फिल्म में एक ही एक्सप्रेशन से काम नहीं चलाया जा सकता। उनमें वो 'स्पार्क' नजर नहीं आया जो इस तरह के रोल के लिए जरूरी होता है और इसका असर पूरी फिल्म पर होता है। 
 
फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट ने अपना काम खूबसूरती से किया है और इन सबसे जाह्नवी को सीखना चाहिए। पंकज त्रिपाठी, अंगद बेदी, मानव विज और विनीत कुमार नैसर्गिक और सहज लगे। मानुष नंदन की सिनेमाटोग्राफी बढ़िया है और अमित त्रिवेदी का संगीत औसत। 
 
गुंजन सक्सेना द कारगिल गर्ल ज्यादा अपेक्षाओं के साथ नहीं देखी जाए तो पसंद आ सकती है। 
 
निर्माता : करण जौहर, ज़ी स्टूडियोज़, हीरू यश जौहर, अपूर्व मेहता 
निर्देशक : शरन शर्मा 
संगीत : अमित त्रिवेदी
कलाकार : जाह्नवी कपूर, विनीत कुमार, अंगद बेदी, पंकज त्रिपाठी 
रेटिंग : 2.5/5 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

प्रेग्नेंसी के ऐलान के बाद काम पर लौटीं करीना कपूर, चेहरे पर दिखी खुशी