हसीन दिलरुबा की शुरुआत में ही एक विस्फोट होता है और उसमें रानी (तापसी पन्नू) का पति रिषु (विक्रांत मैसी) मारा जाता है। पुलिस जब मामले की तहकीकात करती है तो बात सामने आती है कि पति और पत्नी के रिश्ते सामान्य नहीं थे। रानी का रिषु के मौसेरे भाई नील (हर्षवर्धन राणे) से अफेयर था। यह बात रिषु भी जानता था। इसलिए शक की सुई रानी और नील की ओर इशारा कर रही थी।
हसीन दिलरुबा में लव स्टोरी के साथ क्राइम ड्रामा भी चलता है, लेकिन इसके बावजूद फिल्म देखते समय मजा नहीं आता है तो इसका दोष लेखक और निर्देशक को दिया जा सकता है। वे एक शानदार प्लाट पर शानदार फिल्म नहीं बना पाए। मर्डर मिस्ट्री का रोमांच तो नदारद है ही, रोमांस भी ऐसा नहीं है जो दिल को छू जाए।
फिल्म की शुरुआत शानदार है। चौंकाती है। लेकिन फिर ऐसा लगता है कि अब दिखाने के लिए कुछ नहीं है और बात को खींचा जा रहा है। फिल्म के कैरेक्टर्स को जिस तरह लिखा गया है वैसा वे व्यवहार करते नजर नहीं आते।
रानी को एकदम बिंदास लड़की दिखाया है जो शादी के बाद पहले दिन से ही सास और पति पर हावी हो जाती है, लेकिन बाद में अचानक बेचारी जैसा व्यवहार करने लग जाती है। रिषु को एकदम सीधा-सादा दिखाया गया है जो पत्नी को खुश करने के लिए हर जतन करता है, लेकिन बाद में वह अपनी पत्नी की हत्या करने पर आमादा हो जाता है।
किरदारों के व्यवहार में अचानक आया यह परिवर्तन कहानी की विश्वसनीयता को बहुत कम कर देता है। इसके लिए ठीक से सिचुएशन ही नहीं बनाई गई तो दर्शक किरदारों से जुड़ ही नहीं पाते।
फिल्म के शुरुआत में जिस तरह से किरदारों को दर्शा कर अच्छी फिल्म की उम्मीद जगाई थी वो कुछ मिनटों में धराशायी हो जाती है। दर्शक सिर्फ यह जानने के लिए ही बैठे रहते हैं कि अब तो आप कहानी का अंत बता दो, बात को लंबा मत खींचो। मर्डर मिस्ट्री का अंत बहुत चौंकाने वाला नहीं है या यूं कहे कि इस पर यकीन करना मुश्किल है। रोमांस के मामले में भी फिल्म पिछड़ती दिखाई देती है।
रानी जब मुसीबत में होती है तो उसकी मां और मौसी कहीं नहीं दिखाई देते, जबकि फिल्म की शुरुआत में रानी के हर मामले में वे दखल देती हैं।
कनिका ढिल्लन द्वारा लिखी गई यह फिल्म टुकड़ों में अच्छी लगती है वो भी शुरुआत दृश्यों के कारण। जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है ऐसे दृश्यों की संख्या कम होती जाती है।
विनिल मैथ्यू का डायरेक्शन औसत है। कहानी को ठीक तरह से वे पेश नहीं कर पाए। किरदार और दर्शकों के बीच की दूरी को वे पाट नहीं पाए। इस वजह से फिल्म सतही लगती है। गाने दमदार नहीं हैं।
तापसी पन्नू नि:संदेह अच्छी एक्ट्रेस हैं, लेकिन हसीन दिलरुबा में फॉर्म में नजर नहीं आईं, खासतौर पर रोमांटिक दृश्यों में वे सहज नहीं लगी। विक्रांत मैसी भोले लगे, लेकिन रोमांटिक नहीं और क्रूर तो बिलकुल नहीं। तापसी की सास बनी एक्ट्रेस की एक्टिंग बढ़िया रही। छोटे रोल में हर्षवर्धन राणे अपना असर छोड़ने में कामयाब रहे।
कुल मिलाकर यह दिलरुबा, हसीन नहीं है।
निर्देशक : विनिल मैथ्यू
कलाकार : तापसी पन्नू, विक्रांत मैसी, हर्षवर्धन राणे
* नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध * 2 घंटे 16 मिनट