मस्ती सीरिज की पहली फिल्म 2004 में आई थी और उसने एडल्ट कॉमेडी को एक नई पहचान दी थी। वह फिल्म स्मार्ट, फनी और टाइम-पास के साथ-साथ यादगार भी थी। लेकिन इसके बाद सीरिज का ग्राफ ऐसे गिरा कि अब मस्ती 4 (2025) आकर जमीन के अंदर तक धँस गया है।
यह फिल्म उस गन्ने जैसी है जिसका रस निचोड़-निचोड़कर पूरी तरह निकाल दिया गया हो। फिल्म में देखने लायक कुछ भी नहीं है। सच में समझ नहीं आता कि निर्माता इस सीरिज को अब भी जिंदा क्यों रखे हुए हैं और ऊपर से मस्ती 5 का इशारा भी कर दिया है, यानी दर्शकों की और बेइज्जती बाकी है।
पहली तीन फिल्में इंद्र कुमार ने बनाई थीं, लेकिन मस्ती 4 को मिलाप मिलन जवेरी ने डायरेक्ट किया है और यहीं से पता चल जाता है कि आगे क्या होने वाला है।
मीत (विवेक ओबेरॉय), प्रेम (आफताब शिवदासानी) और अमर (रितेश देशमुख) अपनी-अपनी पत्नियों से बेहद परेशान हैं क्योंकि उनकी 'इच्छाएं' पूरी नहीं हो पा रही हैं। प्रेरणा उन्हें मिलती है कामराज (अरशद वारसी) से, जिसे उसकी पत्नी साल में एक बार 7 दिनों का लव वीजा देती है, यानी खुली छूट कि जाओ, अय्याशी कर आओ।
यह आइडिया अलग हो सकता था, लेकिन लेखक फारुख धोंडी और मिलाप जवेरी ने इसे ऐसी स्क्रिप्ट में बदला है जो साबित करती है कि कुछ स्क्रिप्ट्स लिखी ही नहीं जानी चाहिए। कहानी में लॉजिक, कॉमेडी, या क्रिएटिविटी, कुछ भी नहीं है।
फिल्म इस भरोसे पर आगे बढ़ती है कि घिसे-पिटे जोक्स जोड़ते जाओ और दर्शक पेट पकड़कर हंसते रहेंगे, लेकिन मजाल है कि आपके चेहरे पर एक सेकंड के लिए भी मुस्कान आ जाए।
तीनों एक्टर्स के इंट्रोडक्शन सीन इतने बकवास हैं कि आप शुरू के पांच मिनट में ही पछता जाते हैं। इसके बाद भी हर सीन तीन-तीन बार रिपीट होता है, एक रिएक्शन, फिर वही रिएक्शन, और फिर एक बार और। बकवास भी तीन गुना हो जाती है।
लव वीजा वाला कॉन्सेप्ट दिलचस्प हो सकता था, लेकिन लिखने वाले इसे ऐसे पेश करते हैं कि आपका बाल नोंचने का का मन करे। कुछ सीन इतने गंदे और बेस्वाद हैं कि आपको आंखें बंद करनी पड़ती हैं। फिल्म की कॉमेडी कॉमेडी नहीं, यातना बन जाती है।
मिलाप मिलन जवेरी ने निर्देशक की कुर्सी संभाली है, लेकिन यहां सिर्फ कैमरा ऑन करके सीन शूट कर देना निर्देशन नहीं कहलाता। अपनी तरफ से उन्होंने फिल्म में कोई योगदान नहीं दिया।
कॉमेडी की जगह बेतुकेपन का ढेर लगा दिया गया है। स्क्रीन पर जो कुछ भी परोसा गया है, वो ऐसा लगता है जैसे पेशेवरों ने नहीं, किसी स्कूल प्रोजेक्ट में आखिरी रात जागकर बनाया गया वीडियो हो।
विवेक ओबेरॉय और आफताब शिवदासानी अब ऐसे रोल्स में मिसफिट लगते हैं। उम्र भी दिखती है और एक्टिंग में भी भारीपन है। रितेश देशमुख आम तौर पर कॉमेडी में अच्छे लगते हैं, लेकिन यहां वे भी बाकी दोनों के साथ डूबते जहाज को और नीचे खींचते नज़र आते हैं।
रूही सिंह, श्रेया शर्मा और एलनाज नौरोजी सिर्फ ग्लैमर जोड़ने के लिए लाई गई हैं, उनका अभिनय से कोई वास्ता नहीं। अरशद वारसी और नरगिस फाखरी भी अपने छोटे-छोटे रोल्स में कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाते।
गाने आते हैं तो फिल्म वैसे भी रुक-रुककर चल रही होती है, लेकिन गानों के आने से ब्रेक और बड़े लगने लगते हैं। टेक्निकल लेवल पर फिल्म इतनी कमजोर है कि लगता है जैसे एडिटिंग, कैमरा वर्क और सेट डिजाइन सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए किए गए हों।
मस्ती 4 एक थकी, घिसी, बेजान और बेहद खराब फिल्म है। कहानी कमजोर, कॉमेडी घटिया, एक्टिंग लचर और निर्देशन तो पूछिए ही मत। अगर आप अपनी शांति, पैसा और मानसिक संतुलन बचाना चाहते हैं तो इस फिल्म से दूर रहें। इस साल की सबसे खराब फिल्मों में से एक।
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Mastiii4 (2025)
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निर्देशक: मिलाप मिलन ज़वेरी
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गीत: मैलो डी, मीत ब्रॉस, दानिश साबरी, संजीव चतुर्वेदी
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संगीत: मीत ब्रॉस, संजीव-दर्शन
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कलाकार: रितेश देशमुख, विवेक ओबेरॉय, आफताब शिवदासानी, तुषार कपूर, रूही सिंह, श्रेया शर्मा,एलनाज नौरोजी, अरशद वारसी, शादर रंघावा, नरगिस फाखरी
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सेंसर सर्टिफिकट : ए (केवल वयस्कों के लिए) * 2 घंटे 24 मिनट 17 सेकंट
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रेटिंग : 0/5