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स्ट्रीट डांसर 3डी : फिल्म समीक्षा

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हमें फॉलो करें स्ट्रीट डांसर 3डी

समय ताम्रकर

, शुक्रवार, 24 जनवरी 2020 (14:09 IST)
एबीसीडी सीरिज की दो सफल फिल्म बनाने के बाद निर्देशक रेमो डिसूजा ओवर एंबिशियस हो गए और उन्होंने देसी सुपरहीरो का कैरेक्टर लेकर 'फ्लाइंग जट्ट' नामक हादसा रचा। शिखर सितारा सलमान खान को लेकर भी वे 'रेस 3' को सफल नहीं बना पाए जो कि ईद पर रिलीज हुई और ऐसे समय रिलीज फिल्म की सफलता के अवसर बढ़ जाते हैं।
 
इन दो असफलताओं के बाद रेमो ने 'बैक टू बेसिक्स' के सिद्धांत पर अमल किया और उसी विषय को चुना जिस पर उन्होंने शुरुआती दो फिल्में बनाई थीं। 
 
स्ट्रीट डांसर 3डी भी ऐसी फिल्म है जिसकी कहानी डांस के इर्दगिर्द घूमती है, लेकिन ये रेमो की एक और कमजोर फिल्म है। यानी रेमो वो काम भी ठीक से नहीं कर पाए जिसमें वे पारंगत हैं। 
 
कहानी को इस बार इंग्लैंड ले जाया गया है। सहज (वरुण धवन) स्ट्रीट डांसर्स नामक एक डांस ग्रुप का हिस्सा है। सहज ग्राउंड ज़ीरो नामक डांस कॉम्पिटिशन जीत कर अपने भाई इंदर (पुनीत पाठक) का सपना पूरा करना चाहता है। 
 
स्ट्रीट डांसर्स के आए दिन रूल ब्रेकर्स नामक डांस ग्रुप से झगड़े होते रहते हैं जिसकी लीडर इनायत (श्रद्धा कपूर) है। इस ग्रुप में सभी पाकिस्तान मूल के हैं। 
 
झगड़े क्यों होते रहते हैं? इस पर खास फोकस नहीं किया गया है। बस होते रहते हैं और यह मान लेना चाहिए। ये लोग अन्ना (प्रभुदेवा) के रेस्तरां में भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट मैच देखते हैं और लड़ते रहते हैं। 

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अन्ना का मानना है कि यदि ये दोनों ग्रुप्स मिल जाए तो वे ग्राउंड ज़ीरो जीत सकते हैं। वो ऐसा क्यों सोचता है, यह भी नहीं बताया गया है। बस आपको मान लेना है। 
 
ग्राउंड ज़ीरो कॉम्पिटिशन शुरू होती है। रूल ब्रेकर्स हिस्सा लेता है। सहज अंग्रेजों के ग्रुप में मिल जाता है और उनकी तरफ से हिस्सा लेता है। 
 
रूल ब्रेकर्स जीतते हुए फाइनल में पहुंच जाती है। वो कैसे जीत रही है? यह पता नहीं चलता। बस फिल्म में दिखाया जा रहा है तो आपको मान लेना है कि वो जीत रही है। भले ही सामने वाला ग्रुप उससे बेहतर डांस कर रहा है। 

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फाइनल में रूल ब्रेकर्स हारने लगती है तो अचानक सहज की 'आंख' खुल जाती है, उसे 'ज्ञान' होता है कि उसे तो रूल ब्रेकर्स वालों से मिल जाना चाहिए। वह बीच में कूद पड़ता है और डांस करने लगता है। 
 
ग्राउंड ज़ीरो कॉम्पिटिशन को लेकर फिल्म में बड़ी-बड़ी बातें की गई हैं तो क्या वहां कोई ऐसा नियम नहीं है कि कोई डांसर दो ग्रुप्स से हिस्सा नहीं ले सकता है? ऐसा नियम तो गली-मोहल्लों में चलने वाले कॉम्पिटिशन में भी होता है। 
 
बहरहाल, कहानी लिखने वाले रेमो डिसूजा को लगा कि केवल डांस से काम नहीं चलेगा। थोड़ा इमोशन डाला जाए। थोड़ा 'मैसेज' डाला जाए तो कहने को भी रहेगा कि हमारी फिल्म 'मैसेज' भी देती है। 
 
उन्होंने इंग्लैंड में अप्रवासियों की दुर्दशा दिखाई है और रूल ब्रेकर्स यह तय करता है कि यदि वे ग्राउंड ज़ीरो कॉम्पिटिशन जीतेंगे तो प्राइज़ मनी का उपयोग इन लोगों को अपने देश वापस लौटने के लिए देंगे। 
 
यह वाला ट्रेक वैसा ही है जैसा कि कुछ लोग चैरिटी इसीलिए करते हैं ताकि फोटो खिंचवा कर सोशल मीडिया पर लगा सकें। 
 
इस बेतुकी कहानी पर लिखा स्क्रीनप्ले भी दमदार नहीं है। कई सारी बातों को समेटने की कोशिश की गई है, लेकिन एक भी असर नहीं छोड़ती। 
 
फिल्म से मनोरंजन भी नहीं होता। कुछ फूहड़ संवादों और दृश्यों से हंसाने की नाकाम कोशिश की गई है। रोमांस फिल्म में नदारद है। हिंदुस्तान-पाकिस्तान वाला 'तीखा' ट्रेक भी बोथरा साबित हुआ है। 
 
थोड़ी-थोड़ी देर में डांस रखा गया है, लेकिन इसमें 'वॉव फैक्टर नहीं है। सब कुछ देखा-दिखाया और रोबोटिक लगता है। 
 
निर्देशक के रूप में रेमो निराश करते हैं। वे डांस को पिरोने वाली न कहानी ढंग से लिख पाए और न ही उनका कहानी को प्रस्तुत करने का तरीका अच्छा है। 
 
पूरी फिल्म बिखरी-बिखरी लगती है और दर्शक फिल्म से कनेक्ट ही नहीं हो पाते। न वे डांस के रूप में दर्शकों में जोश पैदा कर पाए और न ही इमोशन्स से दर्शकों के मन में हलचल मचा पाए। 
 
फिल्म का संगीत औसत है। इक्के-दुक्के गीत छोड़ दिए जाएं तो बाकी बेकार हैं। केवल एक पुराने हिट गाने पर प्रभुदेवा डांस करते अच्छे लगे हैं। 
 
वरुण धवन का अभिनय औसत है। स्क्रिप्ट उनके किरदार को उभार नहीं पाई और न ही वरुण अपने अभिनय के बूते पर स्क्रिप्ट से ऊपर उठ कर नजर आए। यही हाल श्रद्धा कपूर का रहा है। दोनों के किरदार ऐसे लिखे गए हैं कि 'हीरो/ हीरोइन' वाल बात ही महसूस नहीं होती। 
 
प्रभुदेवा का किरदार नहीं भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ता। केवल 'स्टार वैल्यू' बढ़ाने के लिए उनको रखा गया है। नोरा फतेही ने साबित किया कि वे फिल्म में सबसे अच्छी डांसर हैं। अपारशक्ति खुराना सहित बाकी कलाकारों का अभिनय औसत है। 
 
केवल बूबू, पॉडी, सुशी, डी जैसे नाम रखने और 'ब्रो' 'हाय' 'गाइज़' जैसे शब्दों का इस्तेमाल से ही फिल्म कूल नहीं हो जाती, बिना ठोस कहानी के ये बातें खोखली लगती हैं। 
 
केवल डांस के लिए भी यह फिल्म देखने लायक नहीं है क्योंकि इससे बेहतर डांस 'डांस रियलिटी शो' और 'यू ट्यूब' पर देखने को मिलते हैं। 
 
 
निर्माता : भूषण कुमार, दिव्या खोसला कुमार, कृष्ण कुमार, लिज़ेल डिसूजा
निर्देशक : रेमो डिसूज़ा
संगीत : सचिन-जिगर, तनिष्क बागची, बादशाह
कलाकार : वरुण धवन, श्रद्धा कपूर, प्रभुदेवा, नोरा फतेही, अपारशक्ति खुराना
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 2 घंटे 30 मिनट 
रेटिंग : 1.5/5 

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