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भगवान बुद्ध के 10 उपदेश जो आज भी प्रासंगिक हैं

हमें फॉलो करें भगवान बुद्ध के 10 उपदेश जो आज भी प्रासंगिक हैं
Gautam Buddha 2023 
 

Gautam Buddha 10 Quotes : आज बुद्ध जयंती है। भगवान गौतम बुद्ध को कौन नहीं जानता? भगवान बुद्ध ने अपने जीवनकाल में कई उपदेश दिए हैं, वे समझदारी से जीवन जीने, सेहत का ध्यान रखने, क्रोध न करने, आध्यात्मिक जीवन जीने और किसी भी तरह की हिंसा न करने तथा जीवन में त्याग को अपनाने की सीख देते हैं।

आइए जानते हैं यहां भगवान बुद्ध के 10 खास उपदेश, जो वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं-gautam budhha
 
1. सत्य के बारे में बुद्ध कहते हैं कि- 3 चीजें ज्यादा देर तक छुपी नहीं रह सकतीं, वे हैं- सूर्य, चंद्रमा और सत्य। जिस तरह सूर्य रोज प्रत्यक्ष दिखाई देता है, चंद्रमा भी दिखाई देता हैं उसी तरह सत्य कभी न कभी सामने आ ही जाता है। अत: असत्य को अपने आचरण में ना उतारें, उससे दूर रहने में ही मनुष्य की भलाई है। 
 
2. चर्म धारण न करें- भगवान्‌ बोले- 'भिक्षुओं! महाचर्मों को, सिंह, बाघ और चीते के चर्म को नहीं धारण करना चाहिए। जो धारण करे, उसे दुक्कट (दुष्कृत) का दोष होता है।'
 
3. जीवन का उद्देश्‍य सही रखें- जीवन में किसी उद्देश्य या लक्ष्य तक पहुंचने से ज्यादा महत्वपूर्ण उस यात्रा को अच्छे से संपन्न करना होता है।   
 
4. प्रेम का मार्ग अपनाएं- बुराई से बुराई कभी खत्म नहीं होती। घृणा को तो केवल प्रेम द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है, यह एक अटूट सत्य है।   
 
5. खुद जैसा औरों को समझना- जैसे मैं हूं, वैसे ही वे हैं, और 'जैसे वे हैं, वैसा ही मैं हूं। इस प्रकार सबको अपने जैसा समझकर न किसी को मारें, न मारने को प्रेरित करें।
 
6. स्वयं पर विजय- जीवन में हजारों लड़ाइयां जीतने से अच्छा है कि तुम स्वयं पर विजय प्राप्त कर लो। फिर जीत हमेशा तुम्हारी होगी, इसे तुमसे कोई नहीं छीन सकता।   
 
7. दूसरों का बुरा न करें- अपनी प्राण-रक्षा के लिए भी जान-बूझकर किसी प्राणी का वध न करें। जहां मन हिंसा से मुड़ता है, वहां दुःख अवश्य ही शांत हो जाता है।
 
8. बैर-भाव न रखें- वैरियों के प्रति वैररहित होकर, अहा! हम कैसा आनंदमय जीवन बिता रहे हैं, वैरी मनुष्यों के बीच अवैरी होकर विहार कर रहे हैं! 
 
9. पशु हिंसा से बचें- पहले तीन ही रोग थे- इच्छा, क्षुधा और बुढ़ापा। पशु हिंसा के बढ़ते-बढ़ते वे अठ्‍ठान्यवे हो गए। ये याजक, ये पुरोहित, निर्दोष पशुओं का वध कराते हैं, धर्म का ध्वंस करते हैं। यज्ञ के नाम पर की गई यह पशु-हिंसा निश्चय ही निंदित और नीच कर्म है। प्राचीन पंडितों ने ऐसे याजकों की निंदा की है। 
 
10. दूसरों को सुख दें- मनुष्य यह विचार किया करता है कि मुझे जीने की इच्छा है मरने की नहीं, सुख की इच्छा है दुख की नहीं। यदि मैं अपनी ही तरह सुख की इच्छा करने वाले प्राणी को मार डालूं तो क्या यह बात उसे अच्छी लगेगी? इसलिए मनुष्य को प्राणीघात से स्वयं तो विरत हो ही जाना चाहिए। उसे दूसरों को भी हिंसा से विरत कराने का प्रयत्न करना चाहिए। 

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