Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(अमावस्या तिथि)
  • तिथि- पौष कृष्ण अमावस्या
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत/मुहूर्त- पौषी अमावस्या, सोमवती अमावस्या
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

भगवान बुद्ध नेपाली थे या भारतीय?

हमें फॉलो करें भगवान बुद्ध नेपाली थे या भारतीय?

अनिरुद्ध जोशी

, सोमवार, 10 अगस्त 2020 (11:48 IST)
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा भगवान गौतम बुद्ध को 'भारतीय महापुरुष' कहे जाने पर ऐतराज जताया और फिर से अयोध्या को नेपाल के बीरगंज के पास होने का दावा करते हुए वहां पर राम मंदिर बनाए जाने की घोषणा की है। इस पर भारत ने कहा कि टिप्पणी में साझा बौद्ध विरासत को संदर्भित किया था। भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी कर कहा है कि इसमें कोई शक नहीं कि भगवान गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी में हुआ था।


गौतम बुद्ध का जब जन्म हुआ तब उस दौर में नेपाल को नेपाल कहा जाता होगा या नहीं यह रिसर्च का विषय हो सकता है परंतु भारतीय संदर्भ के अनुसार उस काल में भारत की सीमाओं के अंतर्गत उत्तर में हिमालय, पश्‍चिम, पूर्व और दक्षिण में समुद्र होने के पुराण और वेदों में प्रमाण मिलते हैं। 
 
गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले नेपाल के लुम्बिनी वन में हुआ। उनकी माता कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी जब अपने नैहर देवदह जा रही थीं, तो उन्होंने रास्ते में लुम्बिनी वन में बुद्ध को जन्म दिया। कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास उस काल में लुम्बिनी वन हुआ करता था। उनका जन्म नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे और उनका सम्मान समूचे भारतवर्ष में था। सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था।
 
वैराग्य प्राप्ति के बाद एक रात को सिद्धार्थ ने अपनी पत्नी यशोधरा और बेटे राहुल को देखा जो सो रहे थे। दोनों के मस्तक पर हाथ रखा और फिर धीरे से किवाड़ खोलकर महल से बाहर निकले और घोड़े पर सवार हो गए। रातोरात वे 30 योजन दूर गोरखपुर के पास अमोना नदी के तट पर जा पहुंचे। वहां उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारे और केश काटकर खुद को संन्यस्त कर दिया। इसके बाद वे जीवनपर्यन्त भारतवर्ष में धम्म का प्रचार करते रहे।
 
 
16 महाजनपद : बौद्ध काल के दौरान सोलह महाजनपद सुविख्यात हैं। अंग, मगध, काशी, कोशल, वज्जि, मल्ल, चेदी, वत्स, कुरू, पांचाल, मत्स्य, सूरसेन, अशमक, अवन्ति, कम्बोज तथा गान्धार। बौद्ध ग्रन्थ अगुत्तरनिकाय एवं महावस्तु तथा जैन ग्रन्थ भगवती सूत्र से 16 महाजनपदों के बारे में सूचना मिलती है।
 
इन महाजनपदों के अतिरिक्त दस गणराज्य थे जो इस प्रकार थे कपिलवस्तु के शाक्य, अल्लकय बुली, केसपुत्र के कालाम, रामग्राम के कोलिय, सुसभागिरि के भाग, पावा के भल्ल, कुशीनारा के मल्ल, यिप्पलिवन के मोरिय, मिथिला के विदेइ तथा वैशाली के लिच्छवि।
 
 
उपरोक्त में से कोशल राज्य के पश्चिम में गोमती, दक्षिण में रुचिका या स्यन्दिका, पूर्व में विदेह (मिथिला) से कोशल को अलग करने वाली सदा नीरा तथा उत्तर में वर्तमान नेपाल की पहाड़ियां थीं। सरयू नदी इसे दो भागों में विभाजित करती थी। उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल। उत्तर कोशल की आरंभिक राजधानी श्रावस्ती थी। बाद में यह अयोध्या हो गई। दशिण कोशल की राजधानी कुशावती थी। प्रसेनजित और विदुधान के प्रयास से कोशल राज्य का विस्तार हुआ तब काशी, मल्ल और शाक्य संघ इसके अंतर्गत हो चले थे। 'भद्दसाल' जातक से सूचित होता है कि शाक्य प्रदेश कोसल राज्य के अधीन था। बाद में सम्राट अशोक के समय में कलिंग को छोड़कर संपूर्ण भारत मगध उसके अधिन था। 
 
कपुलिवस्तु और लुम्बिनी : श्रावस्ती का समकालीन नगर कपिलवस्तु प्राचीन समय में शाक्य वंश की राजधानी थी। यह राजधानी गोरखपुर से 97 किलोमीटर दूर स्थित है। गौतम बुद्ध के काल में भारतवर्ष के इस नगर की समृद्धिशाली नगरों में इसकी गणना होती थी। मान्यता अनुसार यह भूमि कपिल मुनि की तपोभूमि होने के कारण कपिलवस्तु कही जाने लगी।
 
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला के उत्तरी भाग में पिपरावां नामक स्थान से 9 मील उत्तर-पश्चिम तथा रुमिनीदेई या प्राचीन लुंबिनी से 15 मील पश्चिम की ओर मेमिराकोट के पास प्राचीन कपिलवस्तु की स्थिति बताई जाती है। सौंदरानंद-काव्य में महाकवि अश्वघोष ने कपिलवस्तु के बसाई जाने का विस्तृत वर्णन किया है। इसी में उन्होंने कपितल मुनि के आश्रम के उल्लेख भी किया है। यह आश्रम हिमाचल के अंचल में स्थित था।
 
 
कुछ लोग कहते हैं कि श्रीमद्भागवत महापुराण और विष्णुपुराण में हमें शाक्यों की वंशावली के बारे में उल्लेख पढ़ने को मिलता है। कहते हैं कि राम के 2 पुत्रों लव और कुश में से कुश का वंश ही आगे चल पाया। कुश के वंश में ही आगे चलकर 50वीं पीढ़ी में महाभारत काल में शल्य हुए। इन्हीं शल्य की लगभग 25वीं पीढ़ी में ही गौतम बुद्ध हुए थे। हालांकि यह संपूर्ण विषय अभी रिसर्च का विषय है।

यह समझना अभी बाकी है कि नेपाल का नाम नेपाल कब और कैसे रखा गया और क्या यह नाम बुद्धकाल में भी विद्यमान था? यदि था तो कहां तक थी उसकी सीमाएं और यदि नहीं तो कपिलवस्तु या लुम्बिनी क्या स्वतंत्र राज्य थे या कि भारतीय महाजनपदों के अंतर्गत उनकी स्थिति थी? ऐसे कई प्रश्न है इसलिए अभी यह मानना की गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल में हुआ था या भारत में अभी जल्दबाजी होगी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : कैसे मनाएं शुभ पर्व,जानिए उत्तम समय और पंजीरी के फायदे