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इलेक्शन और पॉलिटिकल मैनेजमेंट में करियर की संभावनाएं

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डॉ. संदीप भट्ट

एक मीडिया रिर्पोट बताती है कि दो साल पहले तक एक संसदीय क्षेत्र में बड़े राजनैतिक दल 10 से 15 करोड़ रुपए तक खर्च करते हैं। ठीक ऐसे ही राज्यों में होने वाले विधानसभाओं के चुनावों में भी जमकर खर्च होता है। नगरीय निकायों और पंचायतों में भी प्रत्याशियों के व्यय का बजट लाखों रुपए तक जाता है। इस तरह मैनेजमेंट के नजरिए से देखें तो राजनीति के प्रबंधन या पॉलिटिकल मैनेजमेंट पर पार्टियों और प्रत्याशियों को बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है। हालांकि यह कोई संगठित या सुव्यवस्थित बाजार या क्षेत्र तो नहीं है लेकिन पूरे देश के लोकसभा चुनावों को ही अकेले देखें तो आंकलन है कि सभी प्रमुख राजनैतिक दलों द्वारा इसमें हजारों करोड़ खर्च होते हैं। इसलिए करियर के लिहाज से इलेक्शन और पॉलिटिकल मैनेजमेंट एक संभावनाओं वाल क्षेत्र है।
 
*दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हमारे देश में हर चुनाव बहुत व्यापक स्तर पर होते हैं।
 
*इस क्षेत्र में सटीक ग्राउंड रिसर्च करने वाले लोगों की भारी आवश्यकता है।
 
*पॉलिटिकल पार्टियों और राजनेता आज मैनेजमेंट को सबसे ज्यादा अहमियत देते हैं।
 
*बड़े राजनैतिक दलों के साथ प्रत्याशी अपने स्तर पर भी पीआर और रिसर्च टीम्स को काम देते हैं।
 
*फोकस्ड और रिजल्ट ओरिएंटेट फ्रीलांसर्स, कंसल्टैंसियों के लिए भारतीय चुनाव में अनंत संभावनाएं मौजूद हैं।
 
*चुनाव अब सिर्फ पब्लिसिटी और पीआर तक ही सीमित नहीं बल्कि ईवेंट मैनेजमेंट और फीडबैक रिसर्च आदि क्षेत्रों में भी स्कोप है।
 
क्या है इलेक्शन और पॉलिटिकल मैनेजमेंट: 
 
पीके यानी प्रशांत किशोर को कौन नहीं जानता। विदेशों में उच्च शिक्षित पीके पिछले कुछ सालों से भारतीय राजनीति में एक स्टार हैसियत रखने वाले शख्स हैं। जानकार मानते हैं कि पीके एक पॉलिटिकल स्ट्रैटेजिस्ट यानी राजनैतिक रणनीतिकार हैं और पार्टियां उनकी सलाह से कई चुनाव जीती हैं। बीजेपी हो या जेडीयू या ममता बनर्जी की टीएमसी या फिर कांग्रेस, हर दल में पीके का नाम चर्चा में रहता है। एक पॉलिटिक्स और इलेक्शन कंसल्टैंट बतौर उनका करियर बेहतरीन रहा है। पीके की सफलता का राज इससे ही समझा जा सकता है कि वे वन मैन इंस्टिट्यूशन जैसे स्थापित हो चुके हैं। बहरहाल देश के चुनावों में रणनीति बनाने से लेकर प्रचार-प्रसार, कम्युनिकेशन आदि गतिविधियों को क्रियान्वित करने के लिए कई बड़ी एजेंसियों और फ्रीलांस कंसल्टैंट मौजूद हैं। 
 
इन संस्थाओं या कंसल्टैंट्स का काम अपने प्रत्याशियों या क्लाइंट पार्टी को चुनाव जितवाना है। हालांकि हर बार सफलता हाथ लगे ऐसा नहीं होता लेकिन फिर भी जितनी बेहतरीन रणनीति होगी, उसका क्रियान्वयन होगा और मैनेजमेंट अच्छा होगा, सक्सेस रेट यानी सफलता की दर भी उतनी ही अच्छी होगी। बीते कुछ सालों में इलेक्शन मैनेजमेंट के क्षेत्र में कई लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर अच्छा-खासा काम मिला है। युवा पेशेवर और रिसचर्स के लिए इलेक्शन और पॉलिटिकल मैनेजमेंट आज एक तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है।
 
क्षेत्र और उसकी आवश्यकता :
 
अब चुनाव परंपरागत तौर पर नहीं लड़े जा रहे। इन दिनों विधानसभा या लोकसभा चुनावों में प्रमुख राजनैतिक दल रिसर्च एक्सपर्ट्‍स, राजनैतिक रणनीतिकारों और मैनेजमेंट कंसल्टैंट्स की पूरी टीम्स के समन्वय के साथ मैदान में उतर रहे हैं। इससे चुनावों के लिए या कहें तो राजनीति में इमेज मैनेजमेंट, राजनीतिक रणनीतिकार और रिसर्च के विशेषज्ञों की भारी डिमांड बढ़ गई है। एक मीडिया रिर्पोट बताती है कि अकेले कांग्रेस और बीजेपी ने साल 2015 से 2020 तक कुल 4990 करोड़ रुपए चुनावों पर खर्च किए हैं। 
 
इसी तरह अन्य नेशनल पार्टियां भी इलेक्शन मैनेजमेंट पर खासा खर्च करती हैं। क्षेत्रीय राजनैतिक दल और निर्दलीय प्रत्याशियों द्वारा किए जाने वाले खर्चों को भी जोड़ लें तो यह एक बहुत विशाल खर्च वाला क्षेत्र बन जाता है। स्वाभाविक है कि इलेक्शन मैनेजमेंट के विशेषज्ञों की आवश्यकता होती ही है। ये वे लोग या संस्थाएं होती हैं हो पार्टियों ओर प्रत्याशियों के लिए चुनाव जीतने की रणनीति बनाकर तैयार करने के साथ उसे जमीनी स्तर पर क्रियान्वित भी करवाते हैं। इलेक्शन या पालिटिक्स मैनेजमेंट में पीआर, ग्राउंड रिसर्च, कम्युनिकेशन, इवेंट्स मैनेजमेंट, डॉक्युमेंटेशन, मीडिया मैनेजमेंट, सोशल मीडिया और आउटरीच आदि प्रोग्राम्स का मैनेजमेंट शामिल है। इलेक्शन मैनेजमेंट के लिए इन विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है।
 
कौन बन सकता है इलेक्शन या पॉलिटिकल स्ट्रैटेजिस्ट : 
 
चुनावी या राजनैतिक रणनीतिकार बनने के लिए कुछ योग्यताओं और कौशल का होना जरूरी है। वही व्यक्ति इस फील्ड में सफल हो सकता है जिसकी दिलचस्पी राजनीति में हो। जो चुनावों में रूचि रखता हो। ऐसा व्यक्ति जिसमें मैनेजमेंट के स्किल्स हों, जिसका कम्युनिकेशन शानदार हो। वही व्यक्ति इस फील्ड में टिक सकता है जिसके पब्लिक रिलेशंस अच्छे हों। पॉलिटिकल कंसल्टैंट बनने के लिए समाज विज्ञान, राजनीति शास्त्र, मीडिया या कम्युनिकेशन की डिग्री होना बहुत मददगार हो सकता है। देश के राजनैतिक माहौल इतिहास की बुनियादी जानकारियों का होना बहुत ही जरूरी है। तो अगर किसी व्यक्ति में इस तरह की योग्यताएं और कौशल हों तो वह इलेक्शन मैनेजमेंट या पॉलिटिकल रणनीतिकार बतौर इस क्षेत्र में बेहतरीन काम कर सकते हैं।
 
आय और तरक्की की संभावनाएं : 
 
चूंकि चुनावों में प्रत्याशी हर कीमत पर जीत चाहते हैं इसलिए इलेक्शन मैनेजमेंट पर सभी प्रत्याशी और पार्टियों खूब जमकर खर्च करती हैं। इस सेक्टर में काम करने वाले लोग किसी कंसल्टेंसी कंपनी के साथ भी काम करते हैं और बतौर फ्रीलांस कंसल्टैंट भी वे अपनी सेवाएं देते हैं। किसी एजेंसी में शुरुआती तौर पर 25 से 30 हजार तक का वेतन मिल सकता है। अनुभव बढ़ने के साथ यह आंकड़ा लाखों तक पहुंच सकता है। इसके अलावा चुनावों के दौरान या किसी विशेष असाइनमेंट के वक्त रहना, खाना और यात्रा आदि बिल्कुल फ्री होता है।

अगर आप अपने खुद के स्तर पर काम कर रहे हैं या काम करने की सोच रहे हैं तो इसके लिए आपका अनुभव, प्रेजेंटेशन आदि ही आपको उचित दाम या फीस दिलवा सकेगा। वैसे बेहतर है कि शुरुआत में किसी कंसल्टेंसी के साथ जुड़कर काम सीखें और बाद में स्वतंत्र रहकर भी काम किया जा सकता है। इससे बुनियादी बातें समझ आ जाएंगी। बहरहाल इस सेक्टर में अच्छी आय और तरक्की की खूब सारी संभावनाएं मौजूद हैं।
 
*इलेक्शन और पॉलिटिकल मैनेजमेंट में पीआर, कम्युनिकेशन विजुअल आर्ट्स आदि फील्ड वाले लोगों के लिए बहुत स्कोप मौजूद।
 
*शुरुआती वेतन 25 से 30 हजार तक, अनुभव के साथ वेतन या फीस लाखों रुपए तक होने की संभावनाएं।
 
*इस सेक्टर में फुल-टाइम, पार्ट-टाइम या कंसल्टेंसी बतौर काम करना आसान।
 
*नए आइडियाज और पॉजिटिव एनर्जी और एटिट्यूड वाले प्रोफेशनल्स की इस सेक्टर में सबसे अधिक डिमांड।
 
तो अगर आपकी दिलचस्पी राजनीति में है और आप चुनावों, इवेंट्स पीआर, मीडिया मैनेजमेंट आदि क्षेत्रों में करियर तलाश रहे हैं तो आने वाले वक्त में इलेक्शन और पॉलिटिकल मैनेजमेंट का क्षेत्र आपके लिए करियर की बहुत सी बेहतरीन संभावनओं के द्वार खोल सकता है।

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