-जयंतीलाल भंडारी
ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) वास्तव में भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जो रिमोट सेंसिंग, डिजिटल तकनीक व हाईटेक विधियों से सुसज्जित यह शाखा पुराने आंकड़ों के साथ-साथ नए आंकड़ों को भी संशोधित एवं परिमार्जित करती है। आज इसके बढ़ते महत्व एवं उपयोगिता को देखते हुए विभिन्न विश्वविद्यालयों व संस्थानों में इसकी रोजगारोन्मुखी शिक्षा प्रदान की जाने लगी है।
ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम विशेषज्ञ के रूप में इस क्षेत्र में रोजगार की बहुत चमकीली संभावनाएं बन रही हैं। ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम के माध्यम से पृथ्वी की भौगोलिक आकृतियों, भू-भागों आदि को डिजिटल रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह एक हाईटेक तकनीक है, जिसमें किसी भी डाटा को एनालॉग से डिजिटल तकनीक में बदला जाता है। ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम से प्राप्त मानचित्रों को हाईटेक मानचित्र कहा जाता है ।
ये मानचित्र न केवल तकनीकी रूप से बहुत उन्नत होते हैं बल्कि उनसे भौगोलिक दृश्यों को सरलता से प्रदर्शित भी किया जा सकता है। दूसरी भाषा में ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम को रिमोट सेंसिंग तकनीक का समरूप भी कहा जा सकता है क्योंकि इसमें किसी भी स्थान की स्थिति को उस स्थान पर जाए बिना ही अपने कंप्यूटर पर देखा एवं बनाया जा सकता है।
पर्यावरणीय और भौगोलिक दृष्टि से बहुत ही अहम मानी जाने वाली यह तकनीक पश्चिमी देशों में तो बहुत उन्नत अवस्था में है ही अपितु भारत में भी यह बहुत तेजी से विकास कर रही है।
ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम से भौगोलिक परिवर्तनों को जाना जा सकता है। इसमें प्रायः त्रि -आयामी तकनीक से बने मॉडलों को आधार बनाया जाता है। ऐतिहासिक धरोहरों की मॉडलिंग में भी यह तकनीक प्रयोग होने लगी है। ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम तकनीक में एरियल फोटोग्राफी तथा डिजिटल मैचिंग तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
जीआईएस कार्यों में भूगोल, गणित, सांख्यिकी जैसे विषयों के अलावा कंप्यूटर ग्राफिक्स, कंप्यूटर, प्रोग्रामिंग, डाटा प्रोसेसिंग व संग्रहण तथा मैपिंग के लिए कंप्यूटर कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का प्राथमिकता से प्रयोग किया जाता है। मानचित्रों तथा कार्टोग्राफी के अतिरिक्त भी अन्य कई क्षेत्रों में ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम का उपयोग किया जा रहा है।