-पं. अशोक पंवार मयंक
जब-जब धर्म की हानि होगी, तब-तब मैं इस धरा पर जन्म लेकर दुष्ट आत्माओं का संहार करूंगा।
गीता के उपदेश में श्रीकृष्ण ने यह बात कही थी। उनका जन्म ही पृथ्वी पर धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने के लिए हुआ था। लेकिन जीवनकाल में श्रीकृष्ण के चरित्र में पराक्रम के साथ प्रेम और विभिन्न प्रकार की अदभुत कलाएं देखने को मिली। आखिर उनमें ये गुण आए कहां से? उनकी जन्मपत्रिका में आखिर कौन से विलक्षण सितारे थे?
आइए, जानते हैं श्री कृष्ण की प्रचलित जन्म कुंडली के आधार पर कैसे हैं भगवान श्रीकृष्ण के जगमगाते सितारे...
श्रीकृष्ण की जन्मपत्रिका में 9 में से 6 ग्रह अपनी उच्च स्थिति में विराजमान हैं और लग्न में एक ग्रह अपनी स्वराशि में स्थित है, अत: श्रीकृष्ण सामने वाले की मन:स्थिति को जानने वाले तथा पराक्रमी बने।
पराक्रम भाव में उच्च का एकादशेश व अष्टम भाव का स्वामी होने से श्रीकृष्ण से मृत्यु पाने वाले उनकी मृत्यु का कारण भी बने। पंचम भाव में उच्चस्थ बुध के साथ राहु ने आपको अत्यंत विलक्षण बुद्धि तथा गुप्त विद्याओं का जानकार बनाया।
षष्ठम भाव में उच्चस्थ शनि होने से श्रीकृष्ण प्रबल शत्रुहंता हुए। सप्तमेश मंगल उच्च होकर नवम भाव है अत: भाग्यशाली रहे। चतुर्थेश सूर्य स्वराशि में होने से हर समस्याओं का समाधान श्रीकृष्ण कर सके। उनके समक्ष बड़े से बड़ा शत्रु भी न टिक सका। सर्वत्र सम्मान के अधिकारी बने।
उच्च के चन्द्रमा के कारण वे चतुर, चौकस, चमत्कारी, अत्यंत तेजस्वी, दिव्य और अनेक विलक्षण विद्याओं के जानकार रहे।
यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर:।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रवा नीतिर्मतिर्मम।।