Secret of southern poll: क्या है दक्षिणी ध्रुव का रहस्य, क्यों चांद के इस हिस्से पर जाना है इतना मुश्किल?
मून मिशन से चांद के इस अंधेरे हिस्से में क्या खोजना चाहता है भारत?
chandrayaan -3 : इसरो की तरफ से कहा गया है कि मून मिशन के लिए भेजा गया चंद्रयान-3 का लैंडर (chandrayaan -3) 23 अगस्त 2023 की शाम को किसी भी वक्त चांद की सतह पर सफलतापूर्वक उतर सकता है। इसकी लैंडिंग का समय शाम के 6 बजकर 4 मिनट है। हालांकि लैंडर के ऑटोमैटिक समय में थोड़ा बहुत बदलाव हो सकता है। बता दें कि भारत ने चांद के लिए अपना चंद्रायन-3 और रूस ने लूना-25 भेजा था, लेकिन लूना -25 चांद की सतह से टकराकर क्रैश हो गया है, ऐसे में अब पूरी दुनिया की नजर भारत के चंद्रायन-3 पर टिकी है। अगर भारत का चंद्रायन-3 सफलतापूर्वक चांद पर उतर जाता है तो भारत चंद्रमा के साउथ पोल (दक्षिणी छोर) पर उतरने वाला पहला देश बन जाएगा।
अब सवाल यह है कि आखिर चांद के दक्षिणी ध्रुव में या चांद के साउथ पोल (दक्षिणी छोर) में ऐसा क्या रहस्य है कि वहां दुनिया के सभी देश पहुंचना चाहते हैं।
क्या है चांद के दक्षिणी ध्रुव में : बता दें कि चांद का दक्षिणी ध्रुव बिल्कुल पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव जैसा ही है। जिस तरह पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका में है और सबसे ठंडा इलाका है। ठीक उसी तरह चांद का दक्षिणी ध्रुव भी सबसे ठंडा इलाका माना जाता है। कोई भी अंतरिक्ष यात्री अगर चांद की दक्षिणी ध्रुव पर खड़ा होगा, तो उसे सूरज क्षितिज की रेखा पर नजर आएगा। चांद के दक्षिणी ध्रुव का ज्यादातर हिस्सा अंधेरे में रहता है, क्योंकि इस क्षेत्र तक सूरज की किरणें तिरछी पड़ती हैं। एक कारण ये भी है कि ये इलाका चांद का सबसे ठंडा इलाका है।
क्या बर्फ से ढका है : अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑर्बिटरों से जो परीक्षण किए गए उसके आधार पर ये कहा जाता है कि चांद का दक्षिणी ध्रुव (साउथ पोल) बर्फ से ढका हुआ है और बर्फ होने का मतलब है कि दूसरे प्राकृतिक संसाधन भी हो सकते हैं। दरअसल अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा के एक मून मिशन ने साल 1998 में दक्षिणी ध्रुव पर हाइड्रोजन के होने का पता लगाया था। नासा के अनुसार हाइड्रोजन की मौजूदगी उस क्षेत्र में बर्फ होने का सबूत देती है।
क्यों मुश्किल है ये मिशन : दरअसल, वैज्ञानिकों के मुताबिक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बड़े-बड़े पहाड़ और कई गड्ढे हैं। यहां सूरज की रोशनी भी बहुत कम होती है। चांद के जिन हिस्सों पर सूरज की रोशनी पड़ती है उन हिस्सों का तापमान आमतौर पर 54 डिग्री सेल्सियस तक होता है। लेकिन जिन हिस्सों पर रोशनी नहीं पड़ती, जैसे दक्षिणी ध्रुव वहां तापमान माइनस 248 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
क्या है चंद्रयान-3 का मकसद : चंद्रयान-3 का पहला टारगेट तो विक्रम लैंडर को चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग कराना है। चंद्रयान-3 का दूसरा मकसद प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह पर चलाकर दिखाना है और इसका तीसरा मकसद यह है कि वहां पहुंचने पर वैज्ञानिक इससे जुडे हुए तमाम तरह के परीक्षण कर सके।
मिशन पर कितना होता है खर्च : जब मून मिशन प्लान किया जाता है तो अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने के साथ ही उनके लिए पीने का पानी, भोजन, सांस लेने के लिए ऑक्सीजन सिलिंडर भी भेजने होते हैं। दरअसल, पृथ्वी से चंद्रमा तक पहुंचाने वाला उपकरण जितना भारी होता है, उतनी ही ज्यादा जरूरत रॉकेट और ईंधन भार की होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक चंद्रमा पर एक किलोग्राम पेलोड ले जाने के लिए लगभग 1 मिलियन डॉलर खर्च होता हैं। यहां तक की एक लीटर पीने का पानी ले जाने में भी 1 मिलियन डॉलर का खर्च होता है। अब जबकि रूस का लूना -25 क्रैश हो गया है ऐसे में पूरी दुनिया की नजर भारत के चंद्रायन-3 पर है। 23 अगस्त को यह मिशन इतिहास रचने वाला है।
Written & Edited Navin rangiyal