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छठ पूजा में होती है सूर्य और छठी मैया की उपासना, जानिए 10 रहस्य

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अनिरुद्ध जोशी

इस बार छठ पर्व 18 नवंबर से 20 नवंबर 2020 के मध्य मनाया जाएगा। हिन्दू धर्म में सूर्य और चंद्र की गतियों पर आधारित व्रत और त्योहार को मनाए जाने का प्रचलन है। प्राचीनकाल में सौरमास का ज्यादा महत्व था परंतु परंपरा से बाद में चंद्र पर आधरित व्रतों का महत्व बढ़ गया। सूर्य पर आधारित व्रत और त्योहार में संक्रांति और छठ पूजा का अधिक प्रचलन है। 
 
1. छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का प्रचलन और उन्हें अर्घ्य देने का विधान है। यह पर्व दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है।
 
2. छठ पूजा व व्रत का प्रारंभ हिन्दू माह कार्तिक माह के शुक्ल की चतुर्थी तिथि से होता है और षष्ठी तिथि को कठिन व्रत रखा जाता है तथा दूसरे दिन सप्तमी को इसका पारण होता है। दरअसल, छठ पूजा 4 दिनों तक चलने वाला पर्व है जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इस पर्व का समापन होता है।
 
 
3. पहले दिन नहाय खाये अर्थात साफ-सफाई और शुद्ध शाकाहारी भोजन सेवन का पालन किया जाता है, दूसरे दिन खरना अर्थात पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का सेवन करते हैं, इसके बाद संध्या षष्ठी को अर्घ्य अर्थात संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और विधिवत पूजन किया जाता है तब कई तरह के वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं। उसी दौरान प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। सूर्य देव की उपासना के बाद रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है और अंत में दूसरे अर्थात अंति दिन उषा अर्घ्य अर्थात इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। पूजा के बाद व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करती हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है।
 
 
4. यह मुख्य रूप से लोकपर्व है जो उत्तर भारत के राज्य पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लोग ही मनाते हैं। यहां के लोग देश में कहीं भी हो वे छठ पर्व की पूजा करते हैं।
 
5. भूलोक तथा द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। इसी प्रत्यक्ष सूर्य की छठ पूजा के समय उपासना होती है। सूर्य के अन्य नाम : रवि, दिनकर, दिवाकर, भानु, भास्कर, प्रभाकर, सविता, दिनमणि, आदित्य, अनंत, मार्तंड, अर्क, पतंग और विवस्वान।
 
 
6.शस्त्रों के अनुसार एक अन्य सूर्यदेव हैं जिन्हें प्रत्यक्ष सूर्यदेव से जोड़कर भी देखा जाता है। सूर्य देवता के पिता का नाम महर्षि कश्यप व माता का नाम अदिति है। इनकी पत्नी का नाम संज्ञा है जो विश्वकर्मा की पुत्री है। संज्ञा से यम नामक पुत्र और यमुना नामक पुत्री तथा इनकी दूसरी पत्नी छाया से इनको एक महान प्रतापी पुत्र हुए जिनका नाम शनि है। 
 
7. इसी तरह शास्त्रों में माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है। इन्हें ही मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन होती है। षष्ठी देवी मां को ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहते हैं। छठी माता की पूजा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। 
 
8. वेदों के अनुसार सूर्य जगत की आत्मा है और सूर्य की उपासना ही सबसे महत्वपूर्ण है। पौराणिक काल में सूर्य के उपासकों में सुग्रीव के भाई बलि का नाम लिया जाता है जो प्रतिदिन सूर्य आराधना करते थे। द्वापर में दानवीर कर्ण की सूर्य का उपासक ही था। पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी।
 
 
9.छठ पूजा का व्रत महिलाएं अपनी संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का वर मांगाने के लिए करती हैं। मान्यता अनुसार इस दिन निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हैं छठ मैया। 
 
10. पौराणिक कथा अनुसार मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने यज्ञ करवाया तब महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया परंतु वह शिशु मृत पैदा हुआ। तभी माता षष्ठी प्रकट हुई और उन्होंने अपना परिचय देते हुए मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। तभी से पूजा का प्रचलन प्रारंभ हुआ।

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