छठ पूजा एक अत्यंत कठिन और पवित्र चार दिवसीय महापर्व है, जिसमें शुद्धता और नियमों का विशेष ध्यान रखा जाता है। यह व्रत 36 घंटे तक निर्जला (बिना अन्न और जल के) रखा जाता है। छठ पूजा का व्रत एक अत्यंत कठिन और पवित्र अनुष्ठान है जो चार दिनों तक चलता है। इसमें सूर्य देव और छठी मैया की उपासना की जाती है। यह व्रत पूर्ण शुद्धता, संयम और भक्ति की माँग करता है।
छठ व्रत करने की संपूर्ण विधि और नियम इस प्रकार हैं:
पहला दिन: नहाय-खाय (शुद्धिकरण)
यह व्रत की शुरुआत होती है। 'नहाय' का अर्थ है स्नान करना और 'खाय' का अर्थ है खाना।
स्नान: व्रती (व्रत रखने वाली महिला या पुरुष) सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी, तालाब में स्नान करते हैं, या घर पर ही गंगाजल मिलाकर शुद्ध जल से स्नान करते हैं।
सफाई: पूरे घर की विशेष रूप से साफ-सफाई की जाती है।
भोजन: इस दिन केवल सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है। मुख्य रूप से कद्दू-भात (लौकी की सब्जी, चने की दाल और अरवा चावल) बनाया जाता है।
नियम: भोजन में लहसुन, प्याज और तामसिक चीजें वर्जित होती हैं। नमक के स्थान पर सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है। यह भोजन ग्रहण करने के बाद व्रती व्रत का संकल्प लेते हैं।
दूसरा दिन: खरना (लोहंडा)
खरना का दिन 36 घंटे के निर्जला उपवास की शुरुआत का प्रतीक है।
निर्जला संकल्प: व्रती पूरे दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करके उपवास रखते हैं।
प्रसाद निर्माण: शाम के समय मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर विशेष रूप से गुड़ की खीर (रसिया) और रोटी बनाई जाती है। यह प्रसाद पूर्ण शुद्धता से तैयार किया जाता है।
पूजा और भोग: सूर्य देव और छठी मैया को इस प्रसाद का भोग लगाया जाता है।
पारण (रात्रि भोजन): व्रती सबसे पहले इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं। इस प्रसाद को ग्रहण करने के साथ ही व्रती का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। इसके बाद व्रती अगले दिन सूर्य को अर्घ्य देने तक कुछ भी नहीं खाते-पीते हैं।
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (डूबते सूर्य की पूजा)
यह छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है।
प्रसाद की तैयारी: घर पर ठेकुआ, फल और अन्य पारंपरिक पकवानों को बांस की टोकरी (दउरा) में सजाया जाता है।
घाट पर प्रस्थान: व्रती अपने परिवार के साथ ये प्रसाद और अर्घ्य सामग्री लेकर किसी नदी या तालाब के घाट पर जाते हैं।
अर्घ्य: सूर्यास्त के समय, व्रती कमर तक जल में खड़े होते हैं। वे सूर्य की ओर मुख करके, तांबे के लोटे में दूध और जल भरकर डूबते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य अर्पित करते हैं।
उपासना: इस दौरान छठी मैया के लोकगीत गाए जाते हैं, और परिवार की सुख-समृद्धि, आरोग्य तथा संतान की दीर्घायु के लिए सूर्य देव से प्रार्थना की जाती है।
जागरण: अर्घ्य के बाद कुछ व्रती घाट पर ही रातभर जागरण करते हैं और छठ माता की कथा सुनते हैं।
चौथा दिन: उषा अर्घ्य और पारण (व्रत तोड़ना)
यह पर्व का अंतिम दिन होता है, जिसे 'पारण' के साथ समाप्त किया जाता है।
उगते सूर्य की प्रतीक्षा: व्रती और परिवार के सदस्य सूर्योदय से पहले ही वापस घाट पर पहुँच जाते हैं और जल में खड़े होकर सूर्य के उगने की प्रतीक्षा करते हैं।
अंतिम अर्घ्य: सूर्य उदय होते ही, व्रती उसी प्रकार तांबे के लोटे में जल भरकर उगते हुए सूर्य को दूसरा और अंतिम अर्घ्य देते हैं।
पारण (व्रत तोड़ना): अर्घ्य देने के बाद व्रती घाट पर मौजूद लोगों में प्रसाद बांटते हैं। इसके बाद वे छठ का प्रसाद (मुख्य रूप से अदरक और गुड़ का मिश्रण) खाकर 36 घंटे का निर्जला व्रत पूरा करते हैं।
व्रत के दौरान ध्यान रखने योग्य कुछ मुख्य नियम:
शुद्धता: छठ की पूजा सामग्री को कभी भी अशुद्ध हाथों से न छुएं।
शयन: व्रती जमीन पर एक चादर या कंबल बिछाकर सोते हैं (बिस्तर का त्याग)।
वस्त्र: व्रती चारों दिन साफ और नए या धुले हुए वस्त्र धारण करते हैं, जिसमें पीले या लाल रंग को शुभ माना जाता है।
लोटा/सूप: अर्घ्य के लिए तांबे या पीतल के लोटे और बांस के सूप का ही प्रयोग किया जाता है।
खाने-पीने पर प्रतिबंध: व्रत के दौरान किसी भी प्रकार का मांस, मदिरा या तामसिक भोजन पूरे परिवार में वर्जित होता है।