इस बार ये जो लाल रंग का गरम कपड़े का बना कोट जो पहने हो न, वो खतरे का रंग नजर आ रहा है। इस खतरे की कीमत अब बच्चों को पीढ़ियों तक चुकानी होगी। तुम तो फिनलैंड में अपने उस गांव में जहां 6 महीने दिन और 6 महीने रात वाले देश, जो 12 महीने बर्फ की चादर से ढंका रहता है, में आराम से रहते हो, पर यहां अनगिनत लोग बेघर हो चुके हैं।
सुना है तुम्हारे इस कॉटेज में हाथ से सामान बनाने की अलग जगह है। तुम्हारे एल्व्स तुम्हारे चहेते बच्चों के लिए कई तरह के ग्रीटिंग कार्ड समेत कई दूसरे गिफ्ट तैयार करते हैं। तुम्हारे इसी घर में रहती है पत्नी व एक प्यारी-सी लड़की मैगी। वो भी तुम्हारे जैसी ही टोपी पहनती है। उसको बाली, नेकलेस समेत दूसरी चीजों को बनाने का बड़ा शौक है और घर के एक हिस्से में एक डाकघर भी है। यहां से दुनियाभर के बच्चों को खत भेजते हो और पूछते हो कि उन्हें क्रिसमस पर क्या गिफ्ट चाहिए? इस पोस्ट ऑफिस का सारा कामकाज तुम्हारे साथ रहने वाले एल्व्स ही संभालते हैं। ये तो तुम्हारी दुनिया के वो छोटे कद के जादुई लोग हैं न, जो खुशी फैलाने के काम में तुम्हारा हाथ बंटाते हैं। छोटे कद के लोग बेहद समझदार और काम करने में बेहद फुर्तीले होते हैं।
तो उन्हें कहो न कि संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के अध्ययन में सामने आया है कि कोरोना महामारी का सबसे ज्यादा प्रभाव छात्रों पर पड़ा है। दुनिया के 191 देशों के करीब 157 करोड़ छात्र इस से प्रभावित हुए हैं। इन प्रभावित छात्रों में भारत के 32 करोड़ छात्र भी शामिल हैं। लेकिन इसने देश में एक नई तरह की असमानता को जन्म दे दिया है। इस ऑनलाइन पढ़ाई में गांव के छात्र वंचित हो गए हैं और शहरों के भी वे छात्र वंचित हो गए हैं जिनके पास स्मार्टफोन, लैपटॉप या महंगे गैजेट नहीं हैं। तो उनको इस बार यही तोहफा दो।
तुम कहोगे तो मोजे उसी नाप के लटका देंगे न हम, क्योंकि सोने जाने से पहले एक मोजे को किसी ऐसी जगह पर टांग देते हैं, जहां तुम उसे आसानी से देख पाओ। मोजे को अधिकतर चिमनी पर (जिन जगहों में आग जलने की व्यवस्था होती है) टांगा जाता है। पर यहां तो अब चूल्हों में आग भी खाना पकाने के लिए जलाना मुश्किल हो चुका है। इसे खिड़की के बाहर भी लटकाया जाता है (जिन घरों में आग जलने की व्यवस्था नहीं होती)। पर जो लोग बेघर हो चुके उनका क्या? घर के बाहरी दरवाजे पर ताला नहीं लगाया जाता ताकि तुम आसानी से घर में प्रवेश कर सको तो इस बार उसकी भी जरूरत नहीं पड़ेगी और हम बाहर ही सोते मिलेंगे, वहीं ये तोहफे रख देना।
वैसे तो तुम सभी हालात जानते ही होंगे, फिर भी एक सर्वे के मुताबिक भारत में ऑनलाइन शिक्षा कितनी सफल है, जानते हो? भारत में 30 करोड़ छात्र स्कूल-कॉलेजों में पढ़ते हैं जिनमें से 27% छात्रों के पास स्मार्टफोन या लैपटॉप उपलब्ध नहीं है और 28% छात्रों को बिजली जाने की समस्याओं का सामना करना पड़ता है जबकि 33% छात्रों का ऑनलाइन शिक्षा-पढ़ाई में मन नहीं लगता और सबसे ज्यादा समस्या गणित और विज्ञान के छात्रों को आती है, क्योंकि उन्हें समझ नहीं आता और 50% छात्रों के पास पढ़ने के लिए किताबें ही नहीं हैं।
भारत में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 90 लाख छात्रों के पास ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने की कोई सुविधा नहीं है जबकि भारत में 24% परिवार ही इंटरनेट से जुड़े हुए हैं और 11% के पास न कोई मोबाइल है, न ही कोई लैपटॉप जबकि ग्रामीण भारत में और भी बुरा हाल है। भारत के ग्रामीण में इलाकों में 11% ऐसे इलाके हैं, जहां पर 1 दिन में 1 से 8 घंटे तक बिजली आती है। 16% ऐसे गांव हैं, जहां पर 12 घंटे बिजली आती है। 47% ऐसे गांव हैं, जहां पर 12 घंटे से अधिक बिजली उपलब्ध हो पाती है।
भारत की कुल आबादी का 66% भाग गांवों में रहता है। इनमें से सबसे गरीब गांव में 20% आबादी में 3% परिवारों के पास ही कम्प्यूटर है और 24 पर्सेंट जनसंख्या इंटरनेट से जुड़ी हुई है ग्रामीण भारत की। और जो 3% परिवार इंटरनेट से जुड़े भी हुए हैं, उनमें से 53% लोगों के घरों में नेटवर्क कनेक्शन बहुत ही खराब आता है। भारत के 3 राज्य दिल्ली, हरियाणा व केरल को छोड़कर व उत्तर-पूर्व में असम को छोड़कर पूरे उत्तर-पूर्व में इंटरनेट की समस्या हमेशा रहती है।
अभी हाल में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने ऑनलाइन शिक्षा पर एक सर्वे जारी किया है। यह सर्वे ऑनलाइन शिक्षण और शिक्षा की एक अलग तस्वीर पेश करता है। एनसीईआरटी ने यह सर्वे ऑनलाइन शिक्षण को प्रभावी बनाने के कदम के तौर पर किया था, लेकिन इसके नतीजे भारत में ऑनलाइन शिक्षा की दशा और दुर्दशा को स्पष्ट करते हैं। सर्वे केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और सीबीएसई से जुड़े स्कूलों के छात्रों, शिक्षकों, प्रधानाचार्यों और माता-पिता को मिलाकर 34,598 लोगों पर किया गया है।
भारत के स्कूलों में पढ़ने और पढ़ाने वाले शिक्षकों के अनुपात में यह बहुत ही छोटा है। इस सर्वे रिपोर्ट के आरंभ में ही एनसीईआरटी बताती है कि भारत में स्कूल में पढने वाले छात्रों की जो संख्या है, वह कई यूरोपीय और अफ्रीकी देशों से भी ज्यादा है। इस रिपोर्ट के अनुसार 240 मिलियन स्टूडेंट्स और 8.5 मिलियन टीचर प्राथमिक से लेकर सीनियर सेकंडरी स्कूल में हैं। ऐसे में यह सैम्पल छोटा ही कहा जाएगा। लेकिन इसके जो परिणाम आए हैं, वे कुछ हद तक ऑनलाइन टीचिंग को आईना दिखाने वाले हैं।
भारत में ऑनलाइन शिक्षा और शिक्षण को लेकर जो सवाल खड़े किए जा रहे थे, उनको यह सर्वे पुख्ता करता है। इस सर्वे के अनुसार 3 में से केवल 1 विद्यार्थी ही ऑनलाइन कक्षा से संतुष्ट है। साथ ही गणित, विज्ञान और भाषा व साहित्य के विषयों को समझने में अधिकांश बच्चों को ऑनलाइन माध्यम से कठिनाई हो रही है। सर्वे में केंद्रीय विद्यालय के 39.5% बच्चों को गणित, 14.5% बच्चों को भाषा और 25% बच्चों को विज्ञान के विषय समझने में परेशानी हो रही है। इस तरह के ही आंकड़े सीबीएसई और नवोदय स्कूलों के भी हैं।
बच्चे ऑनलाइन कक्षा में इन विषयों को ठीक से नहीं समझ पा रहे हैं। इन विषयों को लैपटॉप या फोन की स्क्रीन के माध्यम से एकालाप के जरिए समझा पाना भी मुश्किल है। यह बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों के लिए मुश्किल है। ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा की गंभीरता और परिणाम पर विचार करना होगा। अगर बच्चे समझ ही नहीं पा रहे हैं तो सिर्फ पढ़ा देना या कोर्स खत्म कर देना ही शिक्षा और शिक्षण नहीं है।
ऑनलाइन शिक्षा की पहुंच और संसाधनों की उपलब्धता भी एक महत्वपूर्ण पक्ष है। भारत में एक बड़ी आबादी, जो गांवों में रहती है, के पास स्मार्टफोन नहीं है। अगर किसी के पास स्मार्टफोन है भी तो इंटरनेट की पहुंच और स्पीड एक बड़ी समस्या है। शहरों में रहने वाले मध्यमवर्गीय परिवारों में भी सबके पास स्मार्टफोन नहीं होता है। ऐसे में अगर परिवार के 2 बच्चों को एक ही समय पर ऑनलाइन क्लास लेना हो तो क्या करेंगे?
हाल में बहुत सारी ऐसी खबरें भी आईं, जहां माता-पिता ने बहुत कुछ दांव पर लगाकर बच्चों की पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन खरीदा। इसके बावजूद यह सर्वे बताता है कि तकरीबन 28% बच्चों के पास स्मार्टफोन और लैपटॉप की सुविधा नहीं है। इसका सीधा अर्थ हुआ कि 28% विद्यार्थी इस सिस्टम में शिक्षा से वंचित रह गए और जिनके पास स्मार्टफोन हैं भी तो उनको भी कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। इसमें इंटरनेट की पहुंच और स्पीड से लेकर बिजली की कटौती तक शामिल है। सर्वे में 28 प्रतिशत बच्चे और माता-पिता बिजली कटौती से परेशान हैं और वे मानते हैं कि इस कारण पठन-पाठन में बाधा पहुंचती है। बच्चा पढाई पर फोकस भी नहीं कर पाता है। इसके साथ ही डेटा रिचार्ज का आर्थिक बोझ और एक घर में अगर 2-3 बच्चे पढने वाले हैं तो क्या सबको स्मार्टफोन दिया जा सकता है? यह भी विचारणीय प्रश्न है।
इस कोविड-19 के दौर में जहां लोगों की नौकरियां जा रही हैं और मध्यमवर्गीय परिवारों का बजट गड़बड़ा चुका है, ऐसे में क्या वे इस अतिरिक्त आर्थिक बोझ को उठाने में सक्षम हैं। इस तरह के कई सवाल हैं, जो इस सर्वे का हिस्सा नहीं हैं। साथ ही सर्वे यह भी नहीं बताता है कि जो संख्या उन्होंने ली है, उसमें कितने प्रतिशत ग्रामीण इलाकों के बच्चों, शिक्षकों और माता-पिता को शामिल किया है, क्योंकि इस तकनीक आधारित शिक्षा का सबसे ज्यादा असर उन्हीं पर पड़ रहा है। उनकी समस्याओं का जिक्र तो सर्वे में दिखाई ही नहीं देता है। सभी बोझिल, लाचार व मजबूर जिंदगी जीने को बाध्य हो रहे हैं।
हे सांता! जो तुम बच्चों के सच्चे सेवक हो, उनकी गुहार सुनते हो, उन्हें प्यार करते हो, धरती पर खुशियों के रंग बिखेरना चाहते हो तो अपने उन हवा की गति से दौड़ने वाले रेनडियर के समान की गति का नेटवर्क भी इन तोहफों के साथ भेजना मत भूलना। तुम्हारे वो जादुई बौने हम बच्चों के सारे कष्टों को दूर करें, ऐसा उन्हें कहना। मैगी और तुम्हारी पत्नी सभी बच्चों के चेहरे की मुस्कान को चिरंजीवी करे, ऐसा भी कह देना, क्योंकि जिनको इस माध्यम से समझ नहीं आ रहा है, उनके लिए क्या? क्या इसका भी कोई विकल्प है?
बच्चों की एक बड़ी आबादी को जब इस माध्यम के जरिए समझने में ही दिक्कत हो रही और दूसरी ओर बड़ी संख्या में बच्चों के पास संसाधन नहीं हैं। ठंडी बर्फ पर जिस गति से तुम स्लेज पर सवारी कर हमें खुशी देने की इच्छा रखते हो न, वैसी ही निर्बाध, गतिमान, खुशबुओं से भरी, लहकती, महकती हमारी भी जिंदगी कर दो। कर दो न ताकि निर्ममता, क्रूरता हमारा मासूम बचपन न छिनने पाए। सांता, ओ सांता! सुन रहा है न तू...!