ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह को माना जाता है। दुनियाभर में ईसाई धर्म को मानने वालों की संख्या ज्यादा है। आओ जानते हैं ईसा मसीह के बार में 25 खास और दिलचस्प बातें।
1. ईसा मसीह का जन्म बेथलेहम में हुआ था। यह वर्तमान में फिलिस्तीन क्षेत्र में है। मदर मरियम और योसेफ अपना नाम लिखवाने नाजरथ से येरुशलम जा रहे थे तभी रास्ते में बेथलेहम में कहीं भी जगह न मिलने पर वे एक गुफा में रुक गए जो शहर से बाहर एकांत में थी। वहीं पर यीशु का जन्म हुआ।
2. ईसा मसीह का जन्म नाम येशु या येशुआ था। ईसा मसीह को इब्रानी में येशु, यीशु या येशुआ कहते थे परंतु अंग्रेजी उच्चारण में यह जेशुआ हो गया। यही जेशुआ बिगड़कर जीसस हो गया।
3. ईसा मसीह की माता का नाम मरियम था। यीशु का जन्म हुआ तब माता मरियम कुंआरी थीं। मरियम योसेफ की धर्म पत्नी थीं। एक यहूदी बढ़ई की पत्नी मरियम (मेरी) के गर्भ से यीशु का जन्म बेथलेहेम में हुआ।
4. ईसा के माता पिता नाजरथ के रहने वाले थे जो वर्तमान में फिलिस्तीन क्षेत्र में है। इसीलिए ईसा मसीह को नाजरथ का येशु कहते थे।
5. परंपरा से ईसा मसीह का जन्म समय 25 दिसंबर सन् 6 ईसा पूर्व माना जाता है। इसीलिए हर वर्ष 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है।
6. एक अन्य शोध के अनुसार उनका जन्म बसंत ऋतु में हुआ था। रशिया में क्रिसमस का पर्व जनवरी में मनाया जाता है। संभवत: 7 जनवरी को मनाया जाता है। हालांकि बाइबल में ईसा के जन्म का कोई दिन नहीं बताया गया है। न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया और इनसाइक्लोपीडिया ऑफ अरली क्रिश्चियानिटी में भी इसका कोई जिक्र नहीं मिलता है। बाइबल में यीशु मसीह के जन्म की कोई निश्चित तारीख नहीं दी गयी है।
7. यह भी कहा जाता है कि मरिया को यीशु के जन्म के पहले एक दिन स्वर्गदूत गाब्रिएल ने दर्शन देकर कहा था कि धन्य हैं आप स्त्रियों में, क्योंकि आप ईश्वर पुत्र की माता बनने के लिए चुनी गई हैं। यह सुनकर मदर मरियम चकित रह गई थीं।
8. कहते हैं कि यीशु के जन्म के बाद उन्हें देखने के लिए बेथलेहेम में तीन विद्वान पहुंचे थे जिन्हें फरिश्ता कहा गया। जहां उनका जन्म हुआ वहां आज एक चर्च है जिसे आज 'चर्च ऑफ नेटिविटी' कहा जाता है।
9. रविवार को यीशु ने येरुशलम में प्रवेश किया था। इस दिन को 'पाम संडे' कहते हैं। शुक्रवार को उन्हें सूली दी गई थी इसलिए इसे 'गुड फ्राइडे' कहते हैं और रविवार के दिन सिर्फ एक स्त्री (मेरी मेग्दलेन) ने उन्हें उनकी कब्र के पास जीवित देखा। जीवित देखे जाने की इस घटना को 'ईस्टर' कहते हैं।
10. ईसा जब 12 वर्ष के हुए, तो येरुशलम में 2 दिन रुककर पुजारियों से ज्ञान चर्चा करते रहे। 13 वर्ष की उम्र में वे कहां चले गए थे, यह कोई नहीं जानता। बाइबल में उनके 13 साल से 30 साल की उम्र के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं मिलता है।
11. 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने येरुशलम में यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा ली। दीक्षा के बाद वे लोगों को शिक्षा देने लगे और अपना संदेश सुनाने लगे। कई लोगों को यह पसंद नहीं आया।
12. ज्यादातर विद्वानों के अनुसार सन् 29 ई. को प्रभु ईसा गधे पर चढ़कर येरुशलम पहुंचे और वहीं उनको दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया। अंतत: उन्हें विरोधियों ने पकड़कर क्रूस पर लटका दिया। उस वक्त उनकी उम्र थी लगभग 33 वर्ष।
13. एक थ्योरी यह भी कहती है कि ईसाया की बुक ओल्ड टेस्टामेंट के अनुसार येशु जब गधे के बच्चे पर बैठकर आते हैं येरुशलम में तो खजूर की डालियां उठाकर लोग उनका स्वागत किया जाता हैं, जो यह मान रहे थे कि यह बनी इस्राइल के तामाम दुश्मनों को यह हरा देगा।
14. कहते हैं कि लोगों के बीच लोकप्रिय ईसा मसीह ने अपने मसीही होने और ईश्वर का पुत्र होने का दावा किया था, जिसके चलते यहूदियों में रोष फैल गया था।
15. कहते हैं कि यहूदियों के कट्टरपंथियों के दबाव के चलते रोमनों के गवर्नर पितालुस ने यहूदियों की यह मांग स्वीकार कर ली की ईसा को क्रूस पर लटका दिया जाए, क्योंकि रोमनों को हमेशा यहूदी क्रांति का डर सताता रहता था।
16. एक अन्य मान्यता अनुसार यीशु येरुशलम में प्रवेश करने के बाद पवित्र टेम्पल ऑफ मांउट में प्रवेश करते हैं तो वे वहां देखते हैं कि रोमनों के टैक्स कलेक्टर बैठे हैं। यह देखकर वे अपने कमरबंध को निकालकर उससे उन्हें मारकर भगा देते हैं। बाद में जब रोमनों के गवर्नर पितालुस को यह पता चलता है तो वे इसकी सजा के तौर पर यीशु को सूली देने का ऐलान कर देते हैं।
17. अक्सर चित्रों में ईसा मसीह को एक सुंदर गोरा व्यक्ति बताया जाता है, लेकिन 2001 में प्रकाशित बीबीसी की एक रिपोर्ट Looking for the historical Jesus के अनुसार फॉरेंसिक साइंटिस्ट रिचर्ड नैवे ने ईसा मसीह के चेहरे का मॉडल दुनिया के सामने पेश किया है जिसके अनुसार जीसस को एक मिडल ईस्ट के ट्रेडिशनल यहूदी की तरह दिखाया है। उनका फेस उत्तरी इसराइल के गेलिली शहर के लोगों से मिलता है। जीसस के इस नए फेस के अनुसार उनका चेहरा बड़ा, काली आंखें, छोटे घुंघराले काले बाल और एक जंगली दाढ़ी के साथ चेहरे का रंग गहरा गेहूंआ। हालांकि एक्सपर्ट यह दावा नहीं करते हैं कि यहीं ईसा मसीह का चेहरा होगा लेकिन यह उनके चेहरे से सबसे करीबी चेहरा जरूर हो सकता है।
18. बहुत से लोग दावा करते हैं कि वे क्रॉस पर चढ़े जरूर थे लेकिन उनकी मौत नहीं हुई थी। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि भारत के कश्मीर में जिस बौद्ध मठ में उन्होंने 13 से 29 वर्ष की उम्र में शिक्षा ग्रहण की थी उसी मठ में पुन: लौटकर ईसा ने अपना संपूर्ण जीवन वहीं बिताया। लोगों का यह भी मानना है कि सन् 80 ई. में हुए प्रसिद्ध बौद्ध सम्मेलन में ईसा मसीह ने भाग लिया था। एक रूसी अन्वेषक निकोलस नोतोविच ने भारत में कुछ वर्ष रहकर प्राचीन हेमिस बौद्ध आश्रम में रखी पुस्तक 'द लाइफ ऑफ संत ईसा' पर आधारित फ्रेंच भाषा में 'द अननोन लाइफ ऑफ जीजस क्राइस्ट' नामक पुस्तक लिखी है। इसमें ईसा मसीह के भारत भ्रमण के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है।
19. बहुत से विद्वान मानते हैं कि कश्मीर के श्रीनगर के पुराने शहर की एक इमारत को 'रौजाबल' के नाम से जाना जाता है। इमारत में एक मकबरा है, जहां ईसा मसीह का शव रखा हुआ है। बड़ी संख्या में लोग यह मानते हैं कि यह नजारेथ के यीशु यानी ईसा मसीह का मकबरा या मजार है।
20. एक नए शोध के अनुसार यीशु ने उनकी शिष्या मेरी मेग्दलीन से विवाह किया था जिनसे उनको दो बच्चे भी हुए थे। ब्रिटिश दैनिक 'द इंडिपेंडेंट में प्रकाशित रिपोर्ट में 'द संडे टाइम्स' के हवाले से बताया गया है कि ब्रिटिश लाइब्रेरी में 1500 साल पुराना एक दस्तावेज मिला है जिसमें एक दावा किया गया है कि ईसा मसीह ने न सिर्फ मेरी से शादी की थी बल्कि उनके दो बच्चे भी थे। प्रोफेसर बैरी विल्सन और लेखक सिमचा जैकोविक ले. 'लोस्ट गौस्पेल' के नाम से जाने जाने वाले इस दस्तावेज को अरामाइक भाषा से अनूदित करने में महीनों लगे रहे। ट्रांसलेटेड किताब को पीगैसस प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। चर्च ने इसकी तुलना डैन ब्राउन के 2003 के उपन्यास विंची कोड से की है जिसमें मेरी और ईसा मसीह के बीच संबंधों की बात कही गई थी। हालांकि चर्च इसे मिथ्या मानता है।
21. यीशु के कुल 12 शिष्य थे- 1. पीटर, 2. एंड्रयू, 3. जेम्स (जबेदी का बेटा), 4. जॉन, 5. फिलीप, 6. बर्थोलोमियू, 7. मैथ्यू, 8. थॉमस, 9. जेम्स (अल्फाइयूज का बेटा), 10. संत जुदास, 11. साइमन द जिलोट, 12. मत्तिय्याह।
22. यह बात 2014 की है। टॉम डी कास्टेला कहते हैं कि ईसा मसीह जिन स्थानों पर रहे, वहां कई भाषाएं बोली जाती हैं इसलिए यह सवाल मौजूं है कि वे कौन सी भाषा जानते थे? इसराइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहु और पोप फ्रांसिस के बीच इस मसले पर एक बार तकरार भी हो चुकी है। नेतन्याहु ने येरुशलम में एक सार्वजनिक बैठक में पोप से कहा था, "ईसा मसीह यहां रहते थे और वे हिब्रू बोलते थे। पोप ने उन्हें टोकते हुए कहा, 'अरामीक'। नेतन्याहु ने इस पर जवाब देते हुए कहा, "वे अरामीक बोलते थे, लेकिन हिब्रू जानते थे।"
23. शुक्रवार को ईसा मसीह को सूली दी गई। उस दौरान यीशु के क्रूस के पास उसकी मां, मौसी क्लोपास की पत्नी मरियम, और मरियम मगदलिनी खड़ी थीं। ईसा मसीह को सूली पर से उतारने के बाद उनका एक अनुयायी शव को ले गया और उसने शव को एक गुफा में रख दिया गया था। यरुशलम के प्राचीन शहर की दीवारों से सटा एक प्राचीन पवित्र चर्च है जिसके बारे में मान्यता है कि यहीं पर प्रभु यीशु पुन: जी उठे थे। जिस जगह पर ईसा मसीह फिर से जिंदा होकर देखा गए थे उसी जगह पर यह चर्च बना है। इस चर्च का नाम है- चर्च ऑफ द होली स्कल्प्चर। स्कल्प्चर के भीतर ही ईसा मसीह को दफनाया गया था। माना यह भी जाता है कि यही ईसा के अंतिम भोज का स्थल है।
रविवार की सुबह जब अन्धेरा था तब मरियम मगदलिनी कब्र पर आई और उसने देखा कि कब्र से पत्थर हटा हुआ है। फिर वह शमौन पतरस और उस दूसरे शिष्य के पास पहुंची और उसने कहा कि वे कब्र से यीशु की देह को निकाल कर ले गए। सभी वहां पहुंचे और उन्होंने देखा की कफन के कपड़े पड़े हैं। सभी ने देखा वहां यीशु नहीं थे। तब सभी शिष्य चले गए, लेकिन मरियम मगदलिनी वहीं रही। रोती बिलखती मगदलिनी ने कब्र में फिर से अंदर देखा जहां यीशु का शव रखा था वहां उन्होंने श्वेत वस्त्र धारण किए, दो स्वर्गदूत, एक सिरहाने और दूसरा पैताने, बैठे देखे। स्वर्गदूत ने उससे पूछा, तू क्यों विलाप कर रही है? तब मगदलिनी ने कहा कि वे मेरे प्रभु को उठा ले गए हैं। यह बोलकर जैसी ही वह मुड़ी तो उसने देखा कि वहां यीशु खड़े हैं। यीशु ने मगदलिनी से कहा मैं अपने परमपिता के पास जा रहा हूं और तु मेरे भाइयों के पास जा। मरियम मग्दलिनी यह कहती हुई शिष्यों के पास आई और उसने कहा कि मैंने प्रभु को देखा है।...ऐसा भी कहा जाता है कि यीशु ने कुछ शिष्यों को भी दर्शन दिए।- बाइबल यूहन्ना 20
24. ओशो रजनीश ने अपने एक प्रवचन में कई तथ्यों के आधार पर कहा कि जीसस और मोजेज दोनों की मृत्यु भारत में ही हुई थी। पंटियास जिसने ईसा को सूली पर चढ़ाने के आदेश दिए थे वह यहूदी नहीं था वह रोम का गवर्नर था और उसके मन में ईसा के प्रति हमदर्दी थी। उसने सूली ऐसे मौके पर दी कि सांझ के पहले, सूरज ढलने के पहले जीसस को सूली से उतार लेना पड़ा।
बेहोश हालत में वे उतार लिए गए। वे मरे नहीं थे। फिर उन्हें एक गुफा में रख दिया गया और गुफा उनके एक बहुत महत्वपूर्ण शिष्य के जिम्मे सौंप दी गई। मलहम-पट्टियां की गईं, इलाज किया गया और जीसस सुबह होने के पहले वहां से निकल लिए और फिर रविवार की सुबह मरियम मग्दलिनी ने उन्हें एक ऐसी कब्र के पास देखा जिसके बारे में कहा गया कि यह ईसा की कब्र है। बाद में ईसा मसीह श्रीनगर पहुंच गए। वहां वे कई वर्षों तक रहे और वहीं रौजाबल में उनकी कब्र है। कहते हैं कि वे 100 वर्ष से ज्यादा जिए थे।
25. हिन्दुओं के एक पुराण भविष्य पुराण में ईसा मसीह का उल्लेख मिलता है, परंतु यह पुराण कब लिखा गया इस बारे में संदेह और विवाद है। भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग में ईसा मसीह के जन्म एवं उनकी भारत यात्रा संबंधी उल्लेख मिलता है।
नोट : उपरोक्त लिखी गई बातें विभिन्न स्रोत से संकलित है, इनके सही या गलत होने के हम दावा नहीं करते हैं।