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Merry Christmas 2024: क्रिसमस ट्री का रोचक इतिहास, जानें कैसे सजाते थे Christmas Tree

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हमें फॉलो करें Merry Christmas 2024: क्रिसमस ट्री का रोचक इतिहास, जानें कैसे सजाते थे Christmas Tree

WD Feature Desk

, शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024 (16:47 IST)
Christmas tree history : क्रिसमस पर तैयार किया जाने वाला क्रिसमस ट्री आज पूरे विश्व में मशहूर हो चुका है। अपनी रंगबिरंगी सजावट, तरह-तरह की रोशनियों से सजा और गिफ्ट्स यानि उपहारों से सजाया गया यह क्रिसमस ट्री बहुत ही आकर्षक होता है। माना जाता है कि क्रिसमस ट्री के तीन पॉइंट परमेश्वर के रूप पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा को दर्शाते हैं। 
 
Highlights
  • क्रिसमस ट्री वाले पेड़ को हिंदी में क्या कहते हैं
  • क्रिसमस ट्री का असली नाम क्या है?
  • क्रिसमस 25 दिसंबर को क्यों मनाया जाता है?
     
क्रिसमस का पर्व प्रभु यीशु के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। तथा इस दिवस पर सजाए जाने वाले ट्री को इंग्लिश में क्रिसमस ट्री तो हिंदी में सनोबर का पेड़ या फर का पेड़ कहते हैं। और ये पेड़ कोनिफर/ शंकुधारी यानि नीचे से चौड़े और ऊपर की ओर पतले बढ़ते जाते हैं।
 
आइए जानते हैं यहां क्रिसमस ट्री के बारे में...
 
प्राचीन काल में क्रिसमस ट्री : वैसे तो इस परंपरा की शुरुआत की एकदम सही-सही जानकारी नहीं मिलती है। पर बता दें कि सदियों पहले सदाबहार फर वाले वृक्ष तथा उसकी डाल को क्रिसमस ट्री के रूप में सजाने की परंपरा चली आ रही है। मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में रोमनवासी फर के वृक्ष को अपने मंदिर सजाने के लिए उपयोग करते थे। किंतु जीसस ख्रिस्त को मानने वाले लोग इसे येशू के साथ अनंत जीवन के प्रतीक के रूप में सजाते हैं। 
 
क्रिसमस ट्री की उत्पत्ति को लेकर कई किवदंतिया : माना जाता है हजारों साल पहले उत्तरी यूरोप से क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा की शुरुआत हुई। उस जमाने में क्रिसमस ट्री घर के सीलिंग फेन से लटकाए जाते थे। साथ ही लोग चैरी के वृक्ष को भी क्रिसमस ट्री के रूप में सजाते थे। 
अन्य जानकारी के मुताबिक माना जाता है कि संत बोनिफेस इंग्लैंड छोड़कर जर्मन लोगों को ईसा मसीह का संदेश सुनाने के उद्देश्य जर्मनी गए और वहां उन्होंने देखा कि कुछ लोग ईश्वर को खुश करने के लिए ओक वृक्ष के नीचे छोटे बालक की बलि दे रहे थेल तब संत बोनिफेस ने गुस्से में आकर वह वृक्ष कट‍वा दिया डाला और उस स्थान पर फर का नया पौधा लगाकर उसे प्रभु यीशु मसीह के जन्म का प्रतीक मानकर मोमबत्तियों से सजाया।

बस तभी से क्रिसमस पर क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा चली पड़ी। तत्पश्चात क्रिसमस सेलिब्रेट करने हेतु पहली बार सदाबहार वृक्ष का उपयोग लत्विया की राजधानी रिगा के टाउन स्क्वेयर में किया गया।
 
जर्मनी में पहली बार क्रिसमस ट्री कैसे बनाया था : जर्मनी में पहली बार सन् 1605 में कागज के गुलाब, सेब और केंडीस के द्वारा क्रिसमस ट्री सजाया गया था। इससे पहले क्रिसमस ट्री के टॉप पर बालक यीशु का स्टेच्यू रखने का चलन था। बाद में उस स्थान पर एंजल का स्टेच्यू रखा जाने लगा। फिर कुछ समय बाद क्रिसमस ट्री पर स्टार/सितारे को रखा जाने लगा। इस तरह आज भी क्रिसमस ट्री के टॉप पर सि‍तारा विशेष तौर पर लगाया जाता है।
 
जब क्रिसमस ट्री की मोमबत्ती से हुई दुर्घटना : शिकागो सन् 1885 में जब एक अस्पताल क्रिसमस ट्री की मोमबत्तियों द्वारा आग की चपेटों से घिर गया था, तब  आग के इस कारण को खत्म करने के लिए रेल्फ मॉरिस ने सन् 1895 में बिजली से जलाई जाने वाली क्रिसमस लाइट का आविष्कार किया, जो कि आज की लाइट्स से काफी मिलता-जुलता है।

और इस तरह रेल्फ मॉरिस के प्रयास से क्रिसमस को सुरक्षित तरीके से मनाया जाने लगा। आज हर कोई क्रिसमस ट्री की सजावट देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है और रोशनी में नहाया हुआ यह क्रिसमस ट्री की खूबसूरती देखकर हमारे मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
 
इन देशों में ऐसे सजाते थे क्रिसमस ट्री : 
 
* बता दें कि यूनाइटेड स्टेट में क्रिसमस ट्री की शुरुआत आजाद के युद्ध के दौरान मानी जाती है, जिसका श्रेय हैसेन ट्रूप्स को दिया जाता है। 
 
* क्रिसमस ट्री सजाने की शुरुआत ब्रिटेन में सन् 1830 में मानी जाती है। 
 
* जब सन् 1841 में क्वीन विक्टोरिया के पति प्रिंस अल्बर्ट ने विडंसर महल में कैंडल्स से क्रिसमस ट्री सजाया था, जो तारे को दर्शाती थीं। तब से यह ब्रिटेन में बहुत लोकप्रिय हुआ और क्रिसमस सेलिब्रेशन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। 

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

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