दिल्ली। देशभर में लॉकडाउन से आवागमन पर लगी रोक के कारण प्रयोगशालाओं में टिश्यू कल्चर से केले के पौधे तैयार करने तथा पनामा विल्ट बीमारी की रोकथाम के लिए तैयार दवा को किसानों तक पहुंचने में वैज्ञानिकों को भारी परेशानियों का सामना करना पर रहा है।
टिश्यू कल्चर से प्रयोगशलाओं में उच्च गुणवत्ता के रोग मुक्त तैयार किए जाने वाले केले के पौधे के लिए उत्तर भारत में जाने वाला केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) लखनऊ की प्रयोगशालाएं लॉकडाउन के कारण बंद हो गई थी लेकिन वैज्ञानिकों के अथक प्रयास से 70 प्रतिशत कल्चर को बचा लिया गया था।
संस्थान मार्च के अंतिम सप्ताह में इस स्थिति में नहीं था कि टिश्यू कल्चर को जारी रखा जाए या नहीं। बाद में सरकार ने लॉकडाउन के दौरान आवश्यक सेवाओं को सामाजिक दूरी बनाए रखने तथा कुछ हिदायतों के साथ जारी रखने की अनुमति दे दी।
संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक मनीष के अनुसार आने वाले मौसम के दौरान केले की फसल लगाने के लिए यह समय तैयारी करने की दृष्टि से अत्यंत महत्ववपूर्ण है। यह समय उत्तर भारत में केले की फसल लगने के लिए उपयुक्त है।
केले में घातक बीमारी पनामा विल्ट की रोकथाम के प्रयास के तहत सीआईएसएच टीकाकरण प्रौद्योगिकी के माध्यम से टिश्यू कल्चर से 35 हजार से 50 हजार केले के पौधे तैयार करने के प्रयास में लगा है। इन पौधों को उत्तर प्रदेश और बिहार के रोगग्रस्त क्षेत्र के किसानों के खेत में इस वर्ष लगाकर प्रयोग किया जाना है। यदि इसे समय पर नहीं लगाया जाता है तो नई फसल का आना मुश्किल है।
संस्थान के निदेशक शैलेन्द्र राजन ने बताया कि इस वर्ष पहली बार किसानों के खेत पर नई तकनीक से तैयार केले के पौधे का व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया जाना है। वैज्ञानिक अपनी पूरी क्षमता से प्रयोगशलाओं में पौधे तैयार कर रहे हैं ताकि इसे लगाने में देर नहीं हो। इस बार इस तकनीक से व्यावसायिक पैमाने पर केले की खेती की जाएगी।
पनामा विल्ट बीमारी मई-जून में तापमान में वृद्धि के कारण महामारी का रूप ले लेती है और एक खेत से दूसरे खेत में फैलने लगती है। इससे केले के पौधे रोगग्रस्त हो जाते हैं और इससे किसानों को भारी नुकसान होता है। अभी तापमान के कम होने से यह रोग प्राकृतिक रूप से नियंत्रण में है। वर्तमान परिस्थिति में वैज्ञानिक नवाचार और अन्य माध्यमों से केले के उच्च गुणवत्ता के पौधे तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं।
सीआईएसएच और केंद्रीय मृदा लवणता क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने पनामा विल्ट बीमारी की रोकथाम के लिए बायोकंट्रोल एजेंट आईसीएआर फुजिकांट दवा तैयार की है। इस दवा के समय पर उपयोग से इस बीमारी को प्रभावशाली तरीके से रोका गया है और किसानों को भारी नुकसान से बचाया गया है। फुजिकांट प्रौद्योगिकी से सामूहिक रूप से इस बीमारी को नियंत्रित किया जाता है।
देश में सीआईएसएच ही एकमात्र ऐसा संस्थान है, जहां पनामा विल्ट बीमारी की रोकथाम के लिए आधा टन दवा उपलब्ध है, लेकिन परिवहन सुविधाओं के अभाव के कारण इसे जरूरतमंद किसानों तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है। वैज्ञानिक किसान समूहों के साथ विभिन्न संचार माध्यमों से संपर्क में है, लेकिन रेल और सड़क यातायात के बाधित होने के कारण वे कुछ कर नहीं पा रहे हैं।
सीएसएसआरआई के प्रधान वैज्ञानिक दामोदरन ने बताया कि वह दवा दिए जाने वाले किसानों के संपर्क में हैं। बीमारी से गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों में चरणबद्ध ढंग से दवा उपलब्ध कराई जानी है। उन्होंने कहा कि दवा केवल एक ही जगह उपलब्ध है, इसलिए उनका नैतिक दायित्व है कि वे किसानों को समय पर दवा उपलब्ध कराएं।(वार्ता)