कोरोना से ठीक होने वालों को हो सकती है ये लाइलाज बीमारी।
कोरोना से ठीक हुए लोगों में मिल रही नई बीमारी
क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम का नहीं है कोई इलाज
अलग-अलग लोगों में अलग अलग हैं इस सिंड्रोम के लक्षण
पिछले कुछ महीनों में कोरोना ने तकरीबन हर देश को अपनी चपेट में ले लिया है। अभी इसकी कोई वैक्सीन भी नहीं आई है, ऐसे में एक चौंकाने वाली स्टडी सामने आ रही हैं, जिसमें दावा किया गया है कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बावजूद लोग क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम (Chronic fatigue syndrome) के शिकार हो सकते हैं, जिसका कोई स्थाई इलाज ही नहीं है। यानी अब यह कहा जा रहा है कि भले कोरोना से जान बच जाए, लेकिन ठीक होने पर ये एक दूसरी बीमारी आपको दे जाएगा।
अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रेवेंशन सेंटर (Disease Control and prevention center) का दावा है कि कोरोना से ठीक हुए 35 फीसदी लोगों में क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम पाया जा रहा है, जो बेहद चिंताजनक बात है। यह रिपोर्ट 24 जुलाई तक के मामलों की स्टडी के बाद बनी है।
सीडीसी ने कोरोना संक्रमण से ठीक हुए 229 लोगों के बीच ये स्टडी की, जिसमें से 35 फीसदी लोग इस सिंड्रोम से पीड़ित पाए गए। इस सिंड्रोम का कोई एक लक्षण नहीं है। सबमें इसके अलग अलग या कई लक्षण हो सकते हैं।
चिंता वाली बात यह है कि इससे ठीक होने में कई बार कई साल लग सकते हैं। यानी कोरोना संक्रमण मरीज में क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम छोड जाएगा।
क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम पर रिसर्च कर रहे ओपन मेडिसिन फाउंडेशन इसके हल के लिए प्रयासरत है। ओपन मेडिसिन फाउंडेशन, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय और हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय मिल कर इस पर शोध कर रहे हैं।
क्या है क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम?
क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम (सीएफएस) में मरीज को हमेशा थकान महसूस होती है। इसमें शारीरिक और मानसिक थकान अलग-अलग हो सकती है। लंबे समय तक शारीरिक थकावट रहे तो वह मानसिक थकान का कारण भी बनती है। इसे ही क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम कहते हैं। क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम होने की मुख्य वजह खराब लाइफ स्टाइल के अलावा कुछ बीमारियां जैसे एनीमिया, थायरॉयड, डायबिटीज, फेफड़े और हृदय रोग हो सकते हैं। तनाव, दुख, नशा करना, चिंता, निराशा और पर्याप्त नींद न लेना भी इसकी वजह बन सकते हैं। इसके लक्षणों में मांसपेशियों में दर्द, हमेशा उदासी, कुछ नया करने का मन नहीं करना, दिन में आलस्य रहना, ज्यादा नींद आना जैसी समस्याएं होती हैं। इस रोग का अब तक कोई इलाज नहीं है। क्योंकि हर मरीज में इसका असर अलग-अलग होता है।