Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Corona Effect : चिंतित हैं गांव लौटे प्रवासी, पता नहीं अब क्या होगा...

हमें फॉलो करें Corona Effect : चिंतित हैं गांव लौटे प्रवासी, पता नहीं अब क्या होगा...
जयपुर , मंगलवार, 2 जून 2020 (13:01 IST)
जयपुर। कोरोना वायरस से उपजे संकट और लॉकडाउन के कारण अपने घर लौट आए श्रवण दास आने वाले दिनों को लेकर चिंतित हैं। ब्याह योग्य 2 बेटियां और 2 बेटों सहित 6 लोगों का परिवार, घर बाहर के खर्च और कमाई का कोई जरिया नहीं। वह कहते हैं, 'बड़ा संकट है, पता नहीं क्या होगा?'
 
श्रवण दास की तरह यह सवाल राजस्थान के उन लाखों प्रवासी श्रमिकों के लिए यक्ष प्रश्न बन गया है जो लॉकडाउन के कारण घर लौट आए हैं। उन लोगों के लिए यह और भी बड़ा सवाल है जो किन्हीं कारणों से मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) से नहीं जुड़ सकते या सरकारी मदद के दायरे में नहीं आते।
 
राजधानी जयपुर से 220 किलोमीटर दूर नागौर जिले के मेड़ता रोड कस्बे में रहने वाले 42 वर्षीय श्रवण दास पिछले 8 महीने से पुणे में एक घर में रसोइए का काम कर रहे थे। करीब 20000 रुपए महीने की आमदनी से उनका गुजारा ठीक ठाक चल रहा था। कोरोना वायरस संक्रमण फैलने के बाद महीने भर पहले वह अपने गांव आ गए।
 
श्रवण ने कहा कि यहां करने के लिए कुछ नहीं है। मनरेगा में जा नहीं सकते। रसोइये जैसा कोई काम यहां मिल नहीं रहा। बड़ा संकट है।
 
उन्होंने कहा कि बेटियां शादी करने लायक हो रही हैं... कम से कम इस समय तो यह संकट नहीं आना चाहिए था। उन्हें चिंता यह भी है कि यह संकट कब खत्म होगा और बाद में भी क्या वह अपने पुराने काम पर लौट सकेंगे? उनकी पत्नी ने मनरेगा में नाम लिखवाया है लेकिन अभी नंबर नहीं आया।
 
श्रवण ने कहा कि वह अभी इधर उधर से लेकर खर्च चला रहे हैं और किसी तरह के सरकारी कर्ज या सहायता की जानकारी अभी नहीं मिली है।
 
लॉकडाउन के कारण अपने घरों को लौट आए लाखों श्रमिकों के पास ऐसी हजारों कहानियां व करोड़ों चिंताएं हैं। वह चाहे गांव हूडास का रघुबीर सिंह हो या जेठाराम आंचरा।
 
सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले हफ्ते तक चार लाख से अधिक प्रवासी राजस्थान आए हैं जिनमें बड़ी संख्या उन लोगों की है जो महाराष्ट्र, दिल्ली व तमिलनाडु सहित दूसरे राज्यों में कोई न कोई काम कर रहे थे।
 
नागौर जिले के ही बुंडेल गांव के खेमराज गौड़ (45) की कहानी कुछ अलग है। वह 22- 23 साल पहले पुणे गए थे और वहां कैटरिंग का काम कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कैटरिंग का काम अच्छा खासा चल रहा था, 14 -15 लोगों की टीम थी सबका गुजारा हो रहा था।
 
लॉकडाउन के बाद खेमराज अपने गांव आ गए हैं। वे कहते हैं, 'क्या करें? मनरेगा में काम मिलेगा नहीं। कैटरिंग का काम यहां है नहीं, तो बैठे हैं। उन्होंने कहा कि भले ही लॉकडाउन खुल गया लेकिन हालात कब सामान्य होंगे, कारोबार कब बहाल होगा, यह बड़ा सवाल है। इसमें ज्यादा उम्मीद नहीं दिखती।
 
खेमराज के परिवार में पत्नी, दो बेटे व एक बेटी है। तीनों बच्चे स्कूल जाते हैं। निराशा और सोच में डूबे हुए खेमराज कहते हैं कि यहां आय का एकमात्र जरिया थोड़ी बहुत खेती बची है। समझ नहीं आता आगे क्या होगा?
 
गांव में अपना काम करने के लिए सरकारी योजना के तहत रिण लेने के सुझाव पर खेमराज सवाल करते हैं, 'लोन लें लेकिन किसके सिर पर... मतलब दिखाने और चुकाने के लिए आमदनी भी तो होनी चाहिए।'
 
चेन्नई में मिठाई की दुकान में काम करने वाले जुगल किशोर के परिवार में पत्नी और तीन बच्चे हैं। वे लॉकडाउन के बाद अपने डीडवाना गांव आ गए हैं। कहते हैं, 'क्या करें? वहां काम बंद हो गया था। यहां भी सब ठप है। महीने भर से ठाले बैठे हैं। आगे का भी अभी कुछ पता नहीं। घर बाहर के खर्चे तो हो ही रहे हैं। पता नहीं कब तक चलेगा।'
 
वे 15 साल पहले चेन्नई गए थे और पहली बार इतने दिन लगातार खाली बैठे हैं। महीने के 18-20 हजार रुपये आराम से कमा रहे थे। तीन बच्चे हैं। सबसे बड़ा 23, उससे छोटा 20 और सबसे छोटा 18 साल का। तीनों पढ़ते हैं। जुगल किशोर ने बताया कि गांव में उनकी कुछ बीघा जमीन है बाकी आय का और कोई स्थाई जरिया नहीं है।
 
राज्य सरकार का कहना है कि वह ऐसे श्रमिकों को मनरेगा में काम देगी। ऐसे 1.77 लाख प्रवासी श्रमिकों के जॉब कार्ड भी जारी किये जा चुके हैं। वहीं श्रमिकों को सुगमता से रोजगार मिल सके एवं उद्योगों के लिए श्रमिकों की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके इसके लिए 'राज कौशल राजस्थान एम्पलॉयमेंट एक्सचेंज' भी बनाया जा रहा है।
 
लेकिन जानकारों के अनुसार सबसे बड़ा संकट उन प्रवासी श्रमिकों, मजदूरों के लिए है जो न मनरेगा में जा सकते हैं और न ही यहां अभी अपना कारोबार शुरू कर सकने की स्थिति में हैं। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

अमेरिका में Covid 19 से जान गंवाने वालों में एक तिहाई नर्सिंग होम के मरीज