रमज़ान के पवित्र महीने में ख़ुदा के कुछ नेक बंदे कोविड मरीजों की सेवा कर इंसानियत का धर्म निभा रहे हैं। ये फरिश्ते एक सच्चे हिंदुस्तानी होने का फर्ज अदा कर रहे हैं। खुदा का कोई बंदा कहीं अंतिम संस्कार कर रहा है, तो कोई हमवतनों की जान बचाने के लिए प्लाज़्मा खुशी से दे रहा है। कोई ऑक्सीजन सिलेंडर मुफ्त उपलब्ध करा रहा है। कहीं मस्जिदें ही कोविड सेंटर बना दी गई हैं। देशभर से आ रहीं ऐसी खबरें समाज को नफरत से दूर मुहब्बत और सौहार्द का संदेश दे रही हैं। ये खबरें बताती हैं कि मुसीबत में नफरत नहीं, भाईचारा ही देश के लोगों के काम आता है।
ट्रांसपोर्टर प्यारे खान नागपुर और उसके आसपास के इलाकों में सैकड़ों मरीजों की जान बचा चुके हैं। वे अब तक 400 मीट्रिक टन ऑक्सीजन अस्पतालों को सप्लाई कर चुके हैं। अपनी जेब से करीब 1 करोड़ रुपए खर्च कर चुके हैं। इस मिसाल ट्रांसपोर्टर का इरादा अपना यह फ़र्ज़ आगे भी अदा करते रहने का है।
उदयपुर के अकील मंसूरी ने प्लाज़्मा देने के लिए अपना रोज़ा ही तोड़ दिया। उन्हें कोविड के 2 मरीज़ों की जान बचानी थी। डॉक्टर ने कहा, कुछ खाकर यह काम करना होगा। उन्होंने अल्लाह से माफी मांगी और इबादत मानकर फौरन यह नेक काम अंजाम दे दिया।
वडोदरा के जहांगीरपुरा में एक मस्जिद को 50 बिस्तरों का कोविड सेंटर बना दिया गया है। मस्जिद से जुड़े ट्रस्ट के लोग हर मज़हब के बंदों की सेवा में जुट गए हैं। ऑक्सीजन का भी यहां इंतज़ाम है। अब 50 बिस्तर और बढ़ाकर 100 बिस्तरों का सेंटर बनाया जा रहा है। दिल्ली के शाहीन बाग, ओखला में शारिब हसन और उनकी सेवा टीम फ्री ऑफ कॉस्ट ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध कराने का काम कर रही है। लोगों से वे अपील कर रहे हैं कि वे सिलेंडर स्टॉक करके न रखें। सिलेंडर की कमी होने से बहुत से मरीजों को ऑक्सीजन नहीं पहुंच रही है।
नवी मुंबई की फूलवाली मस्जिद में भी कोविड मरीजों को मुफ्त में ऑक्सीजन सिलेंडर देने का काम हो रहा है, खासकर उन मरीजों को जिन्हें अस्पताल में बेड नहीं मिल पा रहे हैं। मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने पिछले साल कोविड के दौरान ऑक्सीजन की ज़रूरत के मद्देनजर यह काम शुरू किया था। यह काम सभी समाज के लोगों के लिए बड़ी राहत का काम बन गया है। रमज़ान के इस महीने में हम इस तरह से एक हिंदुस्तानी होने का फर्ज निभाकर जितनी इबादत करें, उतनी ही कम है।
इस बार मुस्लिम समाज को कोविड मरीजों के लिए ही ज़कात (दान-दक्षिणा), इमदाद और मदद करने की ज़रूरत है। आखिर सभी हमवतन हमारे अपने ही हैं। बहुत-सी पारमार्थिक संस्थाएं आज यही कर रही हैं, जैसे कि संकट की इस घड़ी में सोनू सूद की निःस्वार्थ सेवा बताती है कि एक अकेला भी अगर कुछ बेहतर करने की कोशिश करे तो बहुत कुछ हो सकता है।
आज ज़्यादा से ज़्यादा ऑक्सीजन लंगर और कोविड सेंटरों, फ्री मेडिसिन किट और प्लाज़्मा के दानदाताओं की समाज को ज़रूरत है। मुंबई, देवास और सूरत में काम कर रहीं उन सेवक कमेटियों की भी, जो शवों के अंतिम संस्कार और जनाज़े को सुपुर्दे खाक करने के काम में मदद कर रही हैं। बीते साल मेरे एक जर्नलिस्ट दोस्त इक़बाल ममदानी ने मुंबई में कोविड प्रभावित कई लोगों के अंतिम संस्कार का काम किया। आज इंदौर वाले जैसे ग्रुप्स और प्लेटफॉर्म की भी सख्त जरूरत है, जो इस दौर में लोगों को जोड़ने और उनकी मदद का काम कर रहे हैं।
असल में सरकारी मदद से भी बढ़कर जनशक्ति बड़ी है। आज इंदौर के राधास्वामी सत्संग ब्यास के अहिल्या कोविड सेंटर और इंदिरापुरम दिल्ली, बंगला साहिब और गाज़ियाबाद गुरुद्वारा कमेटियों की बेमिसाल सेवाओं और मोबाइल ऑक्सीजन लंगरों की ज़रूरत है।
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, आश्रम, चर्च वो अच्छे हैं, जो इस वक़्त हर हिंदुस्तानी के काम आएं। ऐसे कामों में लगे भले लोगों को हम सभी सलाम करते हैं। जय हिन्द कहते हैं। आप अपना ख़याल रखिए और दूसरों का ख़याल कीजिए।
और हां... पिछली बार बीमारी का मज़हब ढूंढने की कोशिश हुई, मगर इस बार ऐसी किसी भी बात से बचिए। यह सरजमीं हम सबकी है। अपनों की सेवा से इसे बचाना और सजाना हमारा फ़र्ज़ है। आंखों के सामने ही इसे खाक और दफन होने से बचाना है। एक सच्चे हिन्दुस्तानी होने का धर्म निभाना है। आप भी अपने स्तर पर अपना फर्ज निभाते रहिए और शेयर कीजिए ऐसे सच्चे और हमदर्द हिन्दुस्तानियों की खबरें। कहिए देश के सच्चे नायकों को सलाम। जयहिन्द।