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जो एक क्षण में मर गए, श्‍मशान तक पहुंचने में उनके पांवों में छाले पड़ गए!

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नवीन रांगियाल

उसके लिए मरना बेहद आसान था, ऑक्‍सीजन के एक सिलेंडर की कमी ने उसकी जान ले ली। उसकी सांस किसी सूखे पत्‍ते की तरह टूटकर गिर गई। कहीं कोई आवाज नहीं हुई। कहीं कोई आहट नहीं थी।

एक क्षण में वर्तमान से वो किसी अज्ञात अनंत काल में प्रवेश कर गई। उसने भी सोचा नहीं होगा इतना आसान होता है मर जाना। एक सांस को धीमे से तोड़कर उस पार चले जाना। कितना आसान था मृत्‍यु को पा लेना।

जो सबसे ज्‍यादा दुश्‍वार था वो था घर से निकलकर अपनी देह के लिए श्‍मशाम को ढूंढना और वहां तक पहुंचना।
एक अनजान दुपहर में उसकी मौत हो गई। इसके बाद उसे सिर्फ अपने घर के सबसे करीब वाले मुक्‍तिधाम तक पहुंचना था। देह चाहती थी अपने लिए अग्‍नि से सजी हुई एक नाव, जिसमें सवार होकर वो किसी अनजान दुनिया में गुम हो सके। लेकिन मरने के बाद देह को उसका हक नहीं मिल सका। घर के सबसे करीब वाले घाट पर और भी कतारें थीं। निस्‍तेज और ठंडी देहों की लंबी-लंबी कतारें। उन कतारों को तोड़ा नहीं जा सकता था, क्‍योंकि वो सब वहां पहले से मौजूद थीं। मुक्‍तिधाम में पहले आओ और पहले पाओ का नियम सबसे सख्‍त था।

जो जीवि‍त थे, उन्‍हें नहीं पता था कि जो पहले मरेगा, उसे पहले जगह मिलेगी। अगर पता होता तो वो दुपहर की बजाए सुबह जल्‍दी मरते। ठीक उसी तरह जैसे हम जल्‍दी पहुंचने के लिए सुबह की सबसे पहली बस पकड़ते हैं।


लेकिन उसने मरने में देर कर दी। वो दुपहर में मरी। इसलिए उसे अपने घर के पास वाला श्‍मशान घाट नहीं मिल सकता। देह को बताया गया कि उसे अगली सुबह तक प्रतीक्षा करना होगी। लेकिन देह यह तय नहीं कर सकती कि उसे प्रतीक्षा  करना है या जाना है। देह दुनिया की सबसे तटस्‍थ अवस्‍था थी।

मृत देह कुछ नहीं जानती, उसे हां और न कहना नहीं आता। तय किया गया कि उसे दूसरे मुक्‍तिधाम ले जाया जाए। लेकिन वहां भी कतार थी। बल्‍कि ज्‍यादा लंबी कतारें थीं।

जिसने चिताओं को टोकन बांटकर उन्‍हें जगह देने का ठेका ले रखा था, उसे मृत देहों पर रहम भी आता था। उसने कहा, उधर प्‍लेटफॉर्म से दूर कचरे के ढेर के पास आप अपनी देह को जला सकते हो, लेकिन वहां हमारी गारंटी नहीं है अगर देह कुत्‍तों का भोज बन जाए।

जो देह आग की है वो कुत्‍तों के लिए क्‍यों छोड़ी जाए। हमने अपनी देह को कुत्‍तों की बजाए आग को देना चुना।

तय किया गया शहर के तीसरे मुक्‍तिधाम ले जाया जाए। लेकिन वहां जाने से पहले ही मना कर दिया गया। तीसरे मुक्‍तिधाम के ठेकेदार ने साफ इनकार कर दिया, यहां लेकर मत आओ, कोई फायदा नहीं है।

जो लोग अपनी सबसे प्र‍िय देह को कांधों पर ढोहकर एक श्‍मशान से दूसरे श्मशान भटक रहे थे उन्हें भी अपना फायदा-नुकसान देखना था यह पहली बार महसूस हुआ।

अब हमें चौथा विकल्‍प दिया गया। शहर के एक मुहाने पर एक ऐसा श्मशान घाट है, जि‍सके बारे में जीवित लोगों को ज्‍यादा जानकारी नहीं है। वहां कतारें छोटी होगीं, वहां ले जा सकते हो।

अब तक देह के पावों में छाले पड़ चुके थे और जो जीवि‍त थे उनके कांधे छ‍िल चुके थे। दोनों की ही आत्‍मा में घाव हो चुके थे।

सूरज ढल चुका और अंधेरा घि‍र आया था ऐसे में चौथा विकल्‍प अब ठीक लग रहा था। लेकिन वहां पहले ही शर्त रख दी गई। कहा गया जो जिंदा हैं उन्‍हें देह से पहले श्‍मशान पहुंचना होगा और चिता सजाकर अपनी जगह रोक लेना होगी। अगर इस बीच किसी दूसरी देह ने आकर चिता पर दावा ठोक दिया तो हमारी जवाबदारी नहीं रहेगी।

दरअसल, किसी के लिए कोई जवाबदार नहीं था। न जीवित के लिए और न मृत के लिए। वाज‍िब भी था, कोई जिंदों के लिए जवाबदार नहीं है तो मृत के लिए कोई क्‍यों होगा?

अब हमें सिर्फ यही करना था, मुक्‍तिधाम पहुंचकर अपनों की देह के लिए जगह रोककर रखना थी, ठीक उसी तरह जैसे हम बसों और ट्रेनों में अपना रुमाल रखकर सीट रोक लेते हैं।

शहर के एक अनजान मुहाने पर स्‍थि‍त श्‍मशान घाट में हमने अपनी मृत देह के लिए एक जगह पर कब्‍जा जमा लिया।

उस वक्‍त जगह हासिल कर के हम उतने ही खुश थे जितना दुखी हम उसकी मृत्‍यु के वक्‍त थे।

अपने मुर्दे के लिए श्‍मशान में जगह हासिल कर के हमने एक ही समय में सुख और दुख के दोनों स्‍तर को छू लिया था।

अंतत: जब चिता को आग दी गई। देह की किरचें और फूल आग में धीमे- धीमे तिड़कने लगे और लपटों के साथ उसका धुआं चारों तरफ छाने लगा तो हमें जरा भी अंदाजा नहीं था कि इस जीवन से हमें सबसे ज्‍यादा सुख मिला हैं या हम दुनिया में सबसे ज्‍यादा दुख भोगने वाले लोग हैं!

उसकी मौत का दुख और श्मशान में जगह मिलने का सुख,
(आप बीती)

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