नई दिल्ली। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज कहा कि किसी भी महामारी को नियंत्रित करने में दो खुराक वाली वैक्सीन ज्यादा प्रभावी साबित होती है। डॉ. हर्षवर्धन ने संडे संवाद में कहा कि किसी भी महामारी को नियंत्रित करने में एक खुराक वाली वैक्सीन की अपेक्षा दो खुराक वाली वैक्सीन ज्यादा कारगर साबित होती है।
वैक्सीन की पहली खुराक व्यक्ति में अपेक्षित मात्रा में रोगप्रतिरोधक क्षमता का निर्माण नहीं कर पाती है जबकि दूसरी खुराक देने पर अपेक्षित मात्रा में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है।
उन्होंने रूस की कोरोना वैक्सीन ‘स्पूतनिक वी’ का तीसरे चरण का मानव परीक्षण भारत में किए जाने के सवाल पर बताया कि इस बारे में अभी विचार ही किया जा रहा है और इस संबंध में अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तथा दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित कोरोना वैक्सीन के मानव परीक्षण के दौरान 50 में से 12 वालेंटियर पर विपरीत प्रभाव पड़ने की बात पर कहा कि यह सामान्य बात है कि वैक्सीन देने के बाद वैक्सीन देने की जगह पर लाल निशान बन जाता है, दर्द होता है और हल्का बुखार आता है।
वैक्सीन लेने के बाद बेचैनी होने के कारण घबराहट होना और धड़कन बढ़ना भी आम बात है क्योंकि ये प्रभाव अपने आप ही कुछ समय बाद खत्म हो जाता है और इसका कोई असर वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता पर नहीं पड़ता है। उन्होंने कहा कि अगर इसके अलावा वैक्सीन का कोई अन्य गंभीर विपरीत प्रभाव नहीं सामने आया है तो इसका परीक्षण जारी रखने में कोई दिक्कत नहीं है।
उल्लेखनीय है कि पुणे स्थिति सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भारत में एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन के लिए दूसरे और तीसरे चरण का मानव परीक्षण कर रहा है। ब्रिटेन में एक वालंटियर के बीमार पड़ने की खबर के बाद वैक्सीन का परीक्षण रोक दिया गया था, लेकिन बाद में भारत में इसे दोबारा शुरू कर दिया गया है।
डॉ. हर्षवर्धन ने बताया कि भारत में सभी प्रस्तावित क्लीनिकल परीक्षण निर्धारित सिद्धांत के अनुसार किए जाएंगे और उनकी समीक्षा भारतीय औषधीय महानियंत्रक (डीसीजीआई) द्वारा गठित विषय विशेषज्ञ समिति द्वारा की जाएगी। हाल ही में डीसीजीआई ने भारत में कोविड-19 वैक्सीन की लाइसेंस की नियामक आवश्यकताओं को लेकर मसौदा दिशा-निर्देश तैयार किया है।
प्लाज्मा दान करने से न घबराएं : डॉ. हर्षवर्धन ने आज कहा कि कोरोना संक्रमण मुक्त हुए लोगों को प्लाज्मा दान करने से घबराना नहीं चाहिए क्योंकि यह रक्तदान से भी आसान है। डॉ. हर्षवर्धन ने लोग प्लाज्मा देने से कतराते हैं क्योंकि शायद उन्हें इससे कुछ डर लगता है। केंद्रीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कुछ चुनिंदा संस्थानों को ही प्लाज्मा थैरेपी के परीक्षण की मंजूरी दी है।
प्लाज्मा के दानकर्ता को तलाशना मुश्किल काम है क्योंकि इसके लिए लोग आगे नहीं आते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को यह बताने की जरूरत है कि प्लाज्मा दान क्या होता है। लोगों के अंदर से इसके प्रति भय को हटाने की आवश्यकता है। प्लाज्मा दान देने वालों को कोई खतरा नहीं होता है। यह वास्तव में रक्तदान से भी आसान है। प्लाज्मा दान करने वालों का हीमोग्लोबिन का स्तर भी नहीं घटता है।
आजकल किसी को पूर्ण रक्त नहीं चढ़ाया जाता है। हमारे रक्त में चार महत्वपूर्ण चीजें होती हैं जैसे डब्ल्यूबीसी यानी सफेद रक्त कोशिका, आरबीसी यानी लाल रक्त कोशिका, प्लैटलेट और प्लाज़्मा। इन्हें रक्त से अलग-अलग करके जरूरत के हिसाब से जरूरतमंद लोगों को चढ़ाया जाता है।
प्लाज़्मा, रक्त में 55 प्रतिशत से अधिक मात्रा में मौजूद हल्के-पीले रंग का पदार्थ होता है, जिसमें पानी, नमक और अन्य एंजाइम होते हैं। कोविड-19 से ठीक हुए लोग 28 दिन बाद प्लाज़्मा दान कर सकते हैं, क्योंकि उनमें तब तक एंडीबॉडी विकसित हो जाती है। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि इस दिशा में दिल्ली पुलिस ने बेहतर काम किया है। कोरोना से संक्रमण मुक्त हुए दिल्ली पुलिसकर्मियों ने एम्स में प्लाज्मा किया और तब मैंने इन्हें प्लाज्मा वॉरियर्स कहा था।
पत्रकार भी रहें सुरक्षित : केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि लेकिन यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि कोरोना न देश में फर्क करता है और न पेशे में इसलिए पत्रकारों को भी कोरोना का खतरा उतना ही है, जितना हम लोगों को है। उन्हें भी उन्हीं दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए, जो आम इंसान के लिए है। कुछ समय पहले जब यह खबर आई थी कि बड़े पैमाने पर मीडियाकर्मी कोरोना के शिकार हो रहे हैं तब सरकार ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को पत्र लिखकर इस पर चिंता जताई थी।
पत्र में कोरोना से जुड़ी खबर को कवर करने वाले पत्रकारों को कोरोना से सावधानी बरतने की भी सलाह दी गई थी। उस समय हमने मीडिया संस्थानों को अपने पत्रकारों के बचाव के लिए जरूरी कदम उठाने को कहा था। उन्होंने कहा कि चाहे वो मुम्बई के पत्रकार हों या फिर दिल्ली के, मेरी सभी मीडियाकर्मियों से अपील है कि काम करते हुए वे कोरोना से बचाव के सभी तरीकों को अपनाएं।
जब वे किसी राजनेता और अन्य का बयान अपने कैमरे पर रिकॉर्ड करते हैं, तो उन्हें कुछ सावधानी बरतनी चाहिए। पत्रकारों को चाहिए कि वे मिलकर आपस में यह तय कर लें कि वे 6 फुट की दूरी बनाकर रखेंगे ताकि वे एक-दूसरे के संपर्क में न आए। सामाजिक दूरी का ख्याल रखें और चेहरा ढंकने के लिए फेस मास्क का इस्तेमाल जरूर करें।