Cover Story : हे सिस्टम ! अगर तुम में जान हो तो जाग जाओ ?
घर लौट रहे प्रवासी मजूदर बन रहे सिस्टम की लापरवाही का शिकार
स्टोरी के शीर्षक में आप जिस तस्वीर को देख रहे है उसमें एक डेढ़ साल का अबोध मासूम संसार की सबसे क्रूर सच्चाई से अंजान होकर अपनी मां को उस चिर निद्रा से जगाने की कोशिश कर रहा है जहां से किसी का जागना अंसभव है। संसार की सच्चाई से अंजान मासूम रहमत शायद अंजाने में उस सिस्टम को जगाने की कोशिश कर है जो संकट की इस घड़ी में सोता नजर आ रहा है।
कलेजे को चीर कर रखने देने वाले ये तस्वीर उस बिहार के मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन से आई है जहां सुशासन बाबू यानि नीतीश कुमार का राज है। डेढ़ साल के अबोध बेटे को इस क्रूर संसार में अकेला छोड़कर जा चुकी ये अभागी मां लॉकडाउन के चलते जीवन को बचाने के संघर्ष में गुजरात से बिहार तक का सफर उस श्रमिक स्पेशल ट्रेन में कर रही थी जिसके सहारे सियासी दल इन दिनों अपने राजनीतिक सफर को आगे बढ़ाने के लिए पूरा माइलेज लेने में जुटे हुए है। मृतक महिला के परिजनों का आऱोप है कि भीषण गर्मी में ट्रेन में सफर के दौरान अचानक महिला की तबियत बिगड़ने लगी और कोई मदद नहीं मिलने पर उसकी मौत हो गई, वहीं रेलवे महिला की मौत के लिए उसकी बीमारी को जिम्मेदार बता रहा है।
सोते सिस्टम को जगाने के लिए दूसरी खबर भी बिहार के मुजफ्फरपुर से ही आई है जहां एक पिता अपने बेटे के दूध के लिए भटकता रहा और बेटा उसकी आंखों के सामने ही भूख से तड़प- तड़पकर चला बसा। मकसूद आलम नाम का ये अभागा मजदूर लॉकडाउन के चलते श्रमिक स्पेशल ट्रेन से हमेशा के लिए दिल्ली छोड़कर अपने घर सीतामढ़ी वापस लौट रहा था।
कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच प्रवासी मजदूरों की मौतों का अंतहीन सिलसिला जारी है। घर की चौखट तक पहुंचने की जद्दोजहद में प्रवासी मजदूर पिछले दो महीने से काल के गाल में समाते जा रहे है। अलग- अलग घटनाओं में हादसे का शिकार बनने वाले प्रवासी मजदूर और उनके परिजनों की मौत के पीछे कारण भूख,लापरवाही और बदइंतजामी है।
डेढ़ साल का मासूम रहमत तो अपनी मां को तो नहीं जगा पाया लेकिन शायद ये तस्वीर उस सिस्टम को जगा दें जिसकी बदइंतजामी और लापरवाही के चलते अब तक सैकड़ों प्रवासी मजदूर और उनके परिजन अपनी जान गंवा बैठे है।
कहने और देखने के लिए तो सिस्टम जाग रहा है, लेकिन केवल अपनी कमियों को छिपाने के लिए। ऑलीशान दफ्तरों में एयरकंडीशन की हवाओं के बीच बैठे अफसर सड़क पर लू के थपेड़े खाते अपने घर की चौखट पर पहुंचने वाले मजदूरों को कोरोना विस्फोट के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे है।
मजदूरों के सिर कोरोना का ठीकरा फोड़ने में जुटा सिस्टम इस सच्चाई से आंख मूंद कर बैठा है कि आखिर प्रवासी मजूदरों की मौतों और उनके कोरोना पॉजिटिव होने का जिम्मेदार कौन है।
यह सही है कि बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर कोरोना पॉजिटिव पाए गए है लेकिन यह देखना जरूरी है कि इसके पीछे असली वजह क्या है। बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक से देशव्यापी तालाबंदी (लॉकडाउन) करना और उसके लगातार बढ़ते रहने से मजदूरों के सब्र का बांध टूट गया और वह अपने घरों की ओर चल दिए।
पलायन करने वाले प्रवासी मजदूर ने एक तरह से अपने मन में ठान लिया था कि अगर मरना ही है तो अपने गांव की मिट्टी में पहुंचकर मरे। इस सोच ने लाखों के संख्या में लोगों को पलायन की ताकत दे दी है और वह बिना किसी साधन के सैकड़ों- हजारों किलोमीटर का सफर तय कर घर पहुंच गए।
इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता है कि भारत में कोरोना का संक्रमण विदेशों से आया है। ऐसे में कसूरवार वह प्रवासी मजदूर कैसे हुआ जो गांव पहुंचने की जद्दोजहद में कोरोना का शिकार हो रहा है। क्या सारा दोष उस सिस्टम और सरकार का नहीं है जो सही समय पर जागकर समय रहते सही फैसले नहीं ले पाई।