देश में कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के साथ ही कोरोना के डेल्टा वैरिएंट के केस एक बार फिर बढ़ने के बाद सरकार सतर्क और सजग हो गई है। नया वैरिएंट ओमिक्रॉन अब तक देश के 16 राज्यों में पहुंच चुका है और केस 300 के पार पहुंच गया है। ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नए सिरे से पूरे हालात की समीक्षा की।
ऐसे में एक बार कोरोना के खतरे के बढ़ते खतरे को देखते हुए देश में बूस्टर डोज की बात तेज हो गई है। बूस्टर डोज को लेकर सियासत भी तेज हो गई है। ऐसे में आखिरी बूस्टर डोज की जरुरत पड़ती है और वर्तमान में भारत में बूस्टर डोज की जरूरत है या नहीं इसको समझने के लिए वेबदुनिया ने एक्सपर्ट से बात की।
मध्यप्रदेश के राज्य टीकाकरण अधिकारी डॉक्टर संतोष शुक्ला कहते हैं कि कोरोना वैक्सीन और वैक्सीन का बूस्टर डोज कोई अलग-अलग नहीं है। बूस्टर डोज में भी वैक्सीन वहीं ही रहती है केवल अंतराल बढ़ जाता है।
बूस्टर डोज का निर्णय तीन बातों पर होता है। जिसमें पहला एंटीबॉडी है और भारत में करीब 80 फीसदी एंटीबॉडी है। वहीं दूसरा बीमारी का सर्विलेंस देख जाता है कि बीमारी तांडव कर रही है या नहीं। भारत में वर्तमान में बीमारी का कोई प्रकोप नहीं और केस भी सीमित मात्रा में आ रहे है और तीसरा वैक्सीन का कवरेज है। ऐसे में अगर इन तीनों पैरामीटर को देखा जाए तो देश में वर्तमान में वैक्सीनेशन के बूस्टर डोज की आवश्यकता तुरंत में नहीं लग रही है।
वहीं महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर देश में बूस्टर डोज लगाया जाता है तो जिसने वैक्सीन के दोनों डोज लगे है वहीं बूस्टर डोज के लिए पात्र होगा। इसके साथ बूस्टर डोज के लिए वैक्सीन के सेंकड डोज के बाद संभवत छह महीने का अंतराल भी होगा।
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे कहते हैं कि वैक्सीन के दोनों डोज के बाद शरीर में अगले तीन महीने तक एंटीबॉडी बहुत हाई रहती है और वायरस का कोई भी वैरिंयट हो वह इंफेक्ट नहीं कर पाता है। बूस्टर डोज की बात भी इसलिए हो रही है कि अगर एक वैक्सीन की एक और शॉट ले लेंगे तो शरीर में एंटीबॉडी फिर से बढ़ जाएगी।
ऐसे में जब कोरोना वायरस में लगातार म्यूटेशन हो रहे है और नए वैरिएंट आ रहे है तब बूस्टर डोज कोई विकल्प नहीं है। अगर व्यक्ति में मैमोरी सेल बन गई है तो वह उसको कोरोना संक्रमण से बचाएगी। भारत में देखा जाए तो एक बड़ी आबादी कोरोना संक्रमित हो चुकी है और अब रिइंफेक्शन का रेट भी बहुत कम है। इसलिए अभी हमको बूस्टर डोज पर जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लिया जाना चाहिए। देश अभी हर्ड इम्युनिटी के दौर में है।
वहीं अगर नए वैरिंयट ओमिक्रॉन की बात करें तो साउथ अफ्रीका में पीक पर पहुंचने के बाद भी मौत का कोई बड़ा आंकड़ा नहीं है
ICMR के संक्रामक रोग विभाग के पूर्व प्रमुख पद्मश्री डॉ.रमन गंगाखेडकर वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि वैक्सीन का बूस्टर डोज बीमारी के माइल्ड इंफेक्शन से बचने के लिए होता है। अगर दुनिया के उन देशों के बात करेंं जहां बूस्टर डोज लगाए जा रहे है वहां कोरोना संक्रमण बढ़ने के कारण यह फैसला तब लिया गया जब लोग वैक्सीन को डबल डोज लोग लगवा चुके थे।
वहीं अगर भारत की बात करें तो स्थिति बहुत अलग है। अगर आंकड़ों पर नजर डाले तो पाते है कि अभी वैक्सीन के दो डोज लगवाने वालों की संख्या कम है, वहीं फर्स्ट डोज भी अभी पूरे लोगों ने ही नहीं लिया है। अभी बेहतर होगा कि हम अभी लोगों को वैक्सीन की पहली और जिनको पहली डोज लग गई है उनको दूसरी डोज लगाने पर टारगेट करें। अभी एकदम से बूस्टर डोज पर सोचने की जरुरत नहीं है क्यों अभी वहीं लोग बूस्टर डोज लगवा लेंगे जो दो डोज लगवा चुके है। बाकी लोग ऐसे ही रह जाएंगे।