देश में कोरोनावायरस का कहर थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। शहरों के साथ ही अब तो गांवों में भी लोग संक्रमण से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग इसकी चपेट में हैं। एक तरफ पीएम मोदी लोगों से 'दवाई भी और कड़ाई भी' भी की बात करते हैं तो दूसरी तरफ मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के ही स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी के कार्यक्रम में ही सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ जाती हैं। इंदौर के इस कार्यक्रम में मध्यप्रदेश सरकार को दो और जिम्मेदार मंत्री तुलसी सिलावट और उषा ठाकुर भी मौजूद थे।
बड़ा सवाल यह है कि क्या इस तरह से कोरोना की लड़ाई को जीता जा सकता है? जब राज्य सरकार के मंत्री और भाजपा से जुड़े लोग ही प्रधानमंत्री मोदी की बातों को ठेंगा दिखाएंगे तो आम आदमी से तो फिर आप उम्मीद ही क्या कर सकते हैं। यह कैसी व्यवस्था है जिसमें लोग परिजनों के इलाज के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं और मंत्री 'कंफर्ट' झोन में हैं।
आश्चर्य की बात तो यह है कि मंत्री बनने के बाद प्रभुराम चौधरी ने पहली बार राज्य के सबसे बड़े शहर का रुख किया है। रेमडिसिविर की मारामारी, वैक्सीन की कमी, अस्पतालों में बेड की कमी, श्मशानों में शवों की कतारें जैसे सवालों तो पर मंत्री जी स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए, लेकिन वे यह कहने में बिलकुल भी नहीं चूके कि अब हम 'कंफर्टेबल' हैं। अब पता नहीं चौधरी किस बात को लेकर कंफर्टेबल हैं।
क्या शहर में मौतों का सिलसिला थम गया या रेमडिसिविर के लिए लोगों को मशक्कत नहीं करना पड़ रही है या फिर लोगों को आसानी से अस्पतालों में बेड मिलने लग गए हैं? इन सवालों के जवाब शायद ही किसी 'जिम्मेदार' के पास हों। वैक्सीन की ही बात करें तो सेंटरों पर भीड़ जरूर जुटती है, लेकिन वैक्सीन नहीं मिलती। पहला डोज तो छोड़िए, 45 साल से ऊपर वालों को दूसरे डोज के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
कोरोना से जंग में स्वास्थ्य मंत्री का रवैया वाकई हैरान करने वाला है। प्रदेश में जब कोरोना के ज्यादा मामले सामने आ रहे थे तब मंत्री दमोह में चुनाव प्रचार में व्यस्त थे। अब जब मुख्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि स्थिति नियंत्रण में है तो स्वास्थ्य मंत्री अपना चेहरा दिखा रहे हैं। मुश्किल वक्त में स्वास्थ्य मंत्री द्वारा इंदौर की सुध नहीं लेना सरकार की संवेदनहीनता की ओर ही इशारा करता है।
एक तरफ दुनिया भर के एक्सपर्ट्स भारत को लॉकडाउन और सख्ती करने की सलाह दे रहे हैं तो दूसरी तरफ राज्य सरकार संक्रमण दर कम होने का दावा करते हुए 17 मई के बाद धीरे-धीरे कर्फ्यू हटाने की बात कर रही है। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने साफ कहा है कि जहां संक्रमण दर 5 प्रतिशत से ज्यादा है वहां कर्फ्यू जारी रहेगा। बहरहाल कोरोना से जंग में केंद्र और राज्य सरकारों की रणनीति में अंतर आम जनता पर भारी पड़ रहा है।
कोरोना की शुरुआत में मोदीजी ने सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और सैनेटाइजर के इस्तेमाल पर जोर दिया था। इस पर अभी तक पूरी तरह अमल नहीं किया जा सका है। सभी कड़ाई की बात कर रहे हैं, मगर यह सड़कों पर कम और विज्ञापन कैंपेनों में ज्यादा दिखाई दे रही है।
इधर कोरोना का कहर बढ़ रहा है तो उधर सियासी दांव-पेंच में तेजी दिखाई दे रही है। सरकार और उससे जुड़े लोग अपनी तथाकथित सफलता को लेकर 'आत्ममुग्ध' हैं, विपक्ष हमलावर और जनता किंकर्त्वयविमूढ़।