कोरोना से ठीक हो जाने के बाद भी यह वायरस लोगों को लॉन्ग टाइम तकलीफें दे रहा है। अब तक की गई रिसर्च में सामने आया है कि कोरोना से ठीक होने के बाद यह वायरस लोगों में कोई न कोई तकलीफ दे ही रहा है, लेकिन अब एक शोध में सामने आया है कि जो मरीज कोरोना की वजह से अस्पताल में भर्ती थे, उनके ठीक हो जाने के एक साल बाद भी कमजोरी, थकान और चलते वक्त बुरी तरह से हांफ जाने की परेशानी दे रहा है।
जबकि सांस लेने में तकलीफ, थकान,चलते चलते हांफ जाना, कमर या हाथ में दर्द, बाल झड़ना, कमजोरी लगभग उन सभी मरीजों में पाया गया है जो कोरोना से संक्रमित थे लेकिन घर पर ही ठीक हो गए थे।
दरअसल, लैंसेट जनरल की स्टडी सामने आई है। चीन के नेशनल सेंटर फॉर रेस्पिरेट्री मेडिसिन की रिसर्च के मुताबिक कोरोना से अस्पताल में भर्ती होने वाले करीब आधे मरीजों में 12 महीने बाद भी कम से कम एक लक्षण बना हुआ है।
द लैंसेट फ्राइडे की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 के लगभग आधे मरीज अस्पताल से छुट्टी मिलने के एक साल बाद भी लगातार कम से कम एक लक्षण से पीड़ित हैं। ज्यादातर मरीजों में थकान या मांसपेशियों में कमजोरी पाई गई।
गंभीर कोविड इन्फेक्शन होने के बाद हफ्तों या महीनों तक उसका असर झेलने वाले लाखों लोग हैं। ऐसे लोगों में सुस्ती और थकान से लेकर ध्यान भटकने या सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण भी हो सकते हैं। लॉन्ग कोविड के रूप में पहचानी जाने वाली स्थिति पर अब तक की सबसे बड़ी रिसर्च में कहा गया है कि रिकवरी के एक साल बाद भी तीन रोगियों में से एक को सांस की तकलीफ है। बीमारी से अधिक गंभीर रूप से प्रभावित रोगियों में यह संख्या और भी अधिक है।
रिसर्च के लिए डिस्चार्ज होने के 6 और 12 महीने बाद मरीजों के लक्षणों और उनके स्वास्थ्य से संबंधित अन्य जानकारी के लिए टीम ने जांच की। इसमें शारीरिक परीक्षण, लैब टेस्ट, 6 मिनट तक मरीजों को पैदल चलाने जैसी जांचें की गई।
कोरोना से ठीक होने के 6 महीने बाद 68 प्रतिशत मरीजों में कम से कम एक लक्षण था, जबकि एक साल बाद ऐसे मरीजों की संख्या 49 प्रतिशत थी। मरीजों में सबसे अधिक थकान या मांसपेशियों में कमजोरी की शिकायत मिली। हर तीन में से एक मरीज को सांस लेने में तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है, जबकि कुछ रोगियों में फेफड़ों से जुड़ी समस्या की शिकायत बनी रही।