जिनेवा। संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी ने कहा कि कोविड-19 संकट के कारण दुनियाभर में लोगों की आवाजाही बाधित होने के बावजूद युद्ध, हिंसा, उत्पीड़न और मानवाधिकार उल्लंघनों से पिछले साल करीब 30 लाख लोगों को अपने घरों को छोड़कर भागना पड़ा।
यूएनएचआरसी ने शुक्रवार को जारी की अपनी ताजा 'ग्लोबल ट्रेंड्स' रिपोर्ट में कहा कि दुनियाभर में विस्थापित हुए लोगों की कुल संख्या बढ़कर 8.24 करोड़ हो गई है, जो करीब-करीब जर्मनी की आबादी जितनी है। लगातार 9वें साल मजबूरन विस्थापित लोगों की संख्या में वार्षिक वृद्धि हुई है।
संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थियों के लिए उच्चायुक्त फिलिप्पो ग्रांदी ने कहा कि मोजाम्बिक, इथियोपिया के टिग्रे क्षेत्र और अफ्रीका के साहेल इलाके जैसे स्थानों में संघर्ष और जलवायु परिवर्तन का असर शरणार्थियों के विस्थापन की मुख्य वजहों में से एक है। ग्रांदी ने रिपोर्ट के जारी होने से पहले एक साक्षात्कार में कहा कि ऐसे साल में जब हम सभी अपने शहरों, समुदायों में अपने घरों तक सिमटकर रह गए तो लगभग 30 लाख लोगों को असल में विस्थापित होना पड़ा, क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प नहीं था।
यूएनएचसीआर ने कहा कि 160 से अधिक देशों में से 99 देशों ने कोविड-19 के कारण अपनी सीमाओं को बंद कर दिया। ग्रांदी ने कहा कि अपने देश में ही विस्थापित हुए लोग एक बार सीमाएं खुलने के बाद विदेश भागेंगे। उन्होंने कहा कि इसका अच्छा उदाहरण अमेरिका है, जहां हाल के महीनों में हमने बड़ी संख्या में लोगों को आते देखा है।
अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की हाल की मध्य अमेरिका की यात्रा के दौरान भविष्य के शरणार्थियों को अमेरिका न आने के लिए कहने वाली टिप्पणी पर ग्रांदी ने उम्मीद जताई कि यह टिप्पणी संभवत: अमेरिका की संपूर्ण नीति को नहीं दर्शाती।(भाषा)