कोरोना के खतरे के बीच एक दवा मॉलनुपिराविर की काफी चर्चा हो रही है। ये वो ही दवा है, जिसे कोरोना की पहली दवाई बताया जा रहा है। जिस तरह पिछली यानी दूसरी लहर में रेमडेसिविर की काफी मांग थी, और हर कोई इसके लिए भटक रहा था, इस बार Molnupiravi की चर्चा है। हालांकि कई डॉक्टर्स से इसे हर किसी को देना उचित नहीं मान रहे हैं।
दरअसल, इस दवाई को ही कोरोना की दवाई कहा जा रहा है। यह एक पूरा कोर्स होता है, जो पांच दिन का होता है और कोरोना मरीजों को दिया जा रहा है। बता दें कि यह एक एंटीवायरल ड्रग है। इस दवा को फ्लू यानी इंफ्लुएंजा के इलाज के लिए विकसित किया गया था। यह एक ओरल ड्रग है यानी इसे खा सकते हैं। अब बात है कि ये दवा कितनी असरदार है, क्योंकि कई रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि अब इसकी मांग बढ़ने लगी है।
मॉल्नुपिराविर संक्रमण के बाद वायरस को उसकी संख्या बढ़ाने से रोकती है। जब वायरस शरीर में पहुंचता है तो वो अपना जीनोम रेप्लिकेट करता है। इसी की मदद से वो अपनी संख्या को बढ़ाता है। लेकिन, जब मॉल्नुपिराविर दवा शरीर में पहुंचती है तो कोरोना से संक्रमित कोशिकाएं इन्हें अवशोषित (एब्जॉर्ब) कर लेती हैं।
दवा के कारण संक्रमित कोशिकाओं में एक तरह की खराबी यानी डिफेक्ट आ जाता है और वायरस अपनी संख्या को नहीं बढ़ा पाता। इसलिए दवा का असर पूरे शरीर में होने पर वायरस कंट्रोल होने लगता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
इस दवा के इस्तेमाल को लेकर एम्स के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉक्टर पीयूष रंजन ने आकाशवाणी को बताया, जैसे कि पिछली बार रेमडेसिवीर का बहुत नाम सुनने में आया था, वैसे इस बार मॉलनुपिराविर नई दवा का नाम चर्चा में आया है।
100 में से 99 लोग तीन-चार दिनों में सेल्फ लिमिटेड इलनेसनेस से बिल्कुल ठीक हो जाते हैं। भ्रम की स्थित कब आती है, जब 100 में से 99 लोग खुद ही ठीक होने वाले थे, आप उन्हें कोई भी नई दवा या कोई भी दूसरी दवा देते हैं, तो जो खुद ब खुद ठीक होने वाला था वो इस दवाई की वजह से हो जाता है
यह समझने की बात है कि इस दवाई से अभी तक जो वैज्ञानिक अध्ययन आया है, उसमें कोई भी प्रोटेक्टिव या इफेक्टिव इफेक्ट को नहीं देखा गया है। कुछ इसके सेफ्टी कंसर्न भी थे, जिसमें कि आईसीएमआऱ ने इस पर रेड फ्लैग भी जारी किया था। हालांकि, कुछ थोड़ी सी ये खबरें आ रही हैं कि इसको लेने से शायद अस्पताल में भर्ती होना कम हो, लेकिन अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या इस बीमारी में 1 फीसदी से भी कम है।
पिछली बार डेल्टा वायरस के समय में 100 संक्रमित लोगों में से कम से कम 20 लोग ऐसे होते थे, जिन्हें गंभीर लक्षण होते थे और 10 लोग ऐसे होते थे, जिन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती करना जरूरी था।
ओमिक्रोन वेरिएंट में 100 में 1 से भी कम यानी 200 लोगों में से 1 व्यक्ति को लक्षण ज्यादा मिलते हैं। तो इसमें किसी भी तरह से कुछ भी एडिशनल किए जाने की जरूरत नहीं है।
क्या कहना है कंपनी का?
इस दवा को बनाने वाली अमेरिकी फार्मा कंपनी मर्क का कहना है, मॉलनुपिराविर पर हुए क्लीनिकल और प्री-क्लीनिकल ट्रायल के नतीजे बताते हैं कि यह दवा कोरोना के कई वैरिएंट्स पर असरदार है।
इन वैरिएंट में डेल्टा, गामा और म्यू शामिल हैं। बता दें कि इस दवा का ट्रायल कोविड के मरीजों पर किया गया है। नवम्बर 2021 में ट्रायल के नतीजे सामने आए थे। नतीजे कहते हैं कि जिन मरीजों को यह दवा नहीं दी गई थी उनमें से 14 फीसदी लोग या तो हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे या उनकी मौत हो गई थी। वहीं, जिन मरीजों को मॉलनुपिराविर दवा दी गई थी, उनमें से मात्र 7.3 फीसदी मरीजों के साथ ही ऐसा हुआ।