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मेरठ मेडिकल कॉलेज से Corona सैंपल ले गए बंदर, संक्रमण का खतरा बढ़ा

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, शनिवार, 30 मई 2020 (16:05 IST)
-हिमा अग्रवाल, मेरठ से
मेरठ मेडिकल कॉलेज के कोरोना वार्ड की बदहाली और अव्यवस्थाओं के वीडियो देशभर में वायरल हुए और खूब छीछालेदर हुई थी। लेकिन मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने उसे गंभीरता से नहीं लिया।
 
इसी लापरवाही का परिणाम गत 26 मई को सामने आया, जहां कोविड वार्ड से तीन कोरोना पीड़ितों का लिया ब्लड सैंपल लैब असिस्टेंट से छीनकर पेड़ पर ले गए। पेड़ पर बैठकर बंदर सैंपल और किट और दस्तानों की चीरफाड़ काफी समय तक करते रहे।
 
मेडिकल प्रशासन ने आनन-फानन में इन तीनों मरीजों के सैंपल तो ले लिए लेकिन इस मामले को दबाने का प्रयास किया। बीते गुरुवार को बंदरों का सैंपल चबाते हुए वीडियो वायरल हुआ तो कॉलेज प्रशासन सफाई दे रहा है कि अभी ऐसी कोई रिचर्स नहीं आई कि बंदरों से कोरोना फैलता है।
 
मेरठ के मेडिकल कॉलेज में कोरोना रोगियों के ब्लड सैंपल बंदरों द्वारा छीनकर भाग जाने का मामला सामने आने के बाद हड़कंप मच गया है। लैब तकनीशियन से बंदर यह सैम्पल व अन्य सामान तब झपट्टा मारकर ले गए थे, जब वह उनकी जांच के लिए बायोलॉजिकल लैब में लेकर जा रहा था।
 
सैंपल चबाते नजर आया बंदर : इस घटना का वीडियो बीते गुरुवार को वायरल हुआ जिसमें बंदर सैम्पल और सर्जिकल ग्लब्स चबाते हुए नज़र आ रहा था। इसके बाद लोगों में दहशत फैल गई। पर जब इस मामले में मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य से पूछा गया तो उन्होंने बड़े हल्के में लेते हुए कहा कि यह सैम्पल कोविड19 के लिए नहीं बल्कि रोगी के रक्त की सामान्य जांच के लिए भेजे गए थे।
 
प्राचार्य ने इस घटना की गंभीरता को कम करने के लिए कह दिया कि अभी तक ऐसी कोई स्टडी नहीं आई है जिसमें बंदरों में कोरोना फैलने की बात सामने आई हो। 
 
इस मामले के बाद मेडिकल कॉलेज के आसपास रहने वाले लोगों में दहशत है कि बंदरों से संक्रमण का विस्तार न हो जाए क्योंकि यह सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति भी समझता है कि जो वायरस चमगादड़ों से मनुष्यों तक पहुंच सकता है, वह बंदरों के माध्यम से विस्तार पा सकता है।
 
मेडिकल प्रशासन को लगाई फटकार : अब मामले के तूल पकड़ने के बाद शासन ने मेरठ प्रशासन और मेडिकल कॉलेज प्रशासन को फटकार लगाई है, जिसके बाद मेरठ के डीएम ने प्राचार्य एसके गर्ग को तलब किया और लैब तकनीशियन को फटकार लगाते हुए पूरे मामले पर जांच समिति गठित कर दी है। यह जांच समिति दो दिन में अपनी रिपोर्ट डीएम को सौंपेगी। 
 
टेक्नीशियन ने ही बनाया था वीडियो : बंदरों का सैंपल और ग्लब्ज चबाने का यह वीडियो लैब टेक्नीशियन ने ही बनाया और वायरल किया। मिली जानकारी के मुताबिक बंदरों के ब्लड सैंपल ले जाने की जानकारी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों को लैब टेक्नीशियन ने दे दी थी, लेकिन डॉक्टरों ने उसे हल्के में लेकर टाल दिया। जब यह वीडियो वायरल हुआ तो देश में हड़कंप मच गया और मेडिकल कॉलेज प्रदेश सरकार के निशाने पर आ गया है।
 
लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य एसके गर्ग का कहना है कि यह कोविड19 टेस्ट के सैंपल नहीं थे बल्कि उन रोगियों के रक्त की सामान्य जांच के सैम्पल थे।
 
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मान भी लिया जाए कि यह सैम्पल कोविड-19 के परीक्षण के लिए नहीं लिए गए थे, पर उन रोगियों के तो थे ही, जिनका वहां उपचार चल रहा है। इन दिनों मेरठ परिक्षेत्र के कई जिलों से रोगी इलाज के लिए लाला लाजपत राय अस्पताल में ही भर्ती हैं क्योंकि मेडिकल कॉलेज परिसर के इस अस्पताल को कोरोना के लिए ही डेडिकेटेड किया गया है। यहां महामारी के अलावा सभी तरह के उपचार और ओपीडी बंद हैं।
 
ऐसे में रक्त में कोरोना संक्रमण से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसके बावजूद यह कहना नाजायज है कि यह सैम्पल कोविड टेस्ट के नहीं बल्कि रोगियों की सामान्य जांच के लिए ले जाए जा रहे थे और पता चलते ही उन रोगियों के सैम्पल फिर से लेकर जांच के लिए भेज दिए गए।
 
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य का कहना है कि कोरोना पाजिटिव मरीज के गले व नाक के स्वैब का सैंपल संक्रमण फैलता है, किंतु कोरोना मरीज का ब्लड लेने वालों की पीपीई किट और दस्ताने संक्रमित हो सकते हैं। पेड़ पर बैठे बंदर के वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि सैंपल के साथ वह दस्ताने भी चबा रहा है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
 
बंदरों में भी एसीई-2 रिसेप्टर : जैनेटिक वैज्ञानिक मानते हैं कि मनुष्य की तरह बंदरों में भी एसीई-2 रिसेप्टर होते हैं, जिसके जरिए वायरस बॉडी में आसानी से प्रवेश पा जाते है। कहा जाता है कि हमारे पूर्वज आदिमानव चिम्पैंजी हैं, जिसके चलते बंदर की जैनेटिक संरचना मानव से मेल खाती है। देश-विदेश में अधिकांश ट्रायल बंदरों पर किए जाते हैं। 
 
यह मामला प्रकाश में भी नहीं आता, यदि तकनीशियन अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर सच्चाई का प्रमाण देने के लिए अपने अधिकारियों को बनाकर न दिखाता। बाद में यह वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर हो गया। यह मामला मीडिया में उछला तो प्रशासन को पसीने आने लगे।
 
बंदरों का आतंक : मेडिकल कॉलेज में कई सालों से बंदरों का आतंक है। बंदरों का समूह अक्सर वार्डों में घुसकर उत्पात मचाते देखा जाता है। मरीजों के बिसरों पर बंदरों द्वारा उत्पात मचाने के साथ वहां से सामान लेकर भाग जाना आम बात है। मरीज़ों की देखभाल को साथ के तीमारदारों से खाने-पीने का सामान छीन लेना भी आम बात है।
 
बंदरों के इस कृत्य पर विरोध करना तीमारदारों को मंहगा पड़ता है, क्योंकि बंदरों का समूह हमला कर देता है। सवाल यह भी उठता है कि मेडिकल कॉलेज परिसर को बंदरों से मुक्त कराने की पहल अब तक वहां के प्रशासन ने क्यों नहीं की? हालांकि अब इस घटना के लाला लाजपत राय चिकित्सालय के प्रमुख अधीक्षक ने मेरठ के नगर आयुक्त को एक औपचारिक पत्र लिखकर मेडिकल कॉलेज परिसर से बंदरों को पकड़वाने की व्यवस्था सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है।

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